मदन मोहन मालवीय के पास एक विद्यार्थी पहुंचा। उसकी समस्या ये थी कि बीमारी की वजह से कक्षा में उसकी उपस्थिति काफी कम हो गई थी, उसे परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं मिली थी। विद्यार्थी ने मालवीय जी से निवदेन किया, कि मुझे इस बात की छूट दे दी जाए कि मैं परीक्षा दे सकूं। अगर ऐसा नहीं होता है तो मेरा पूरा एक साल खराब हो जाएगा। मुझे फिर से पुरानी कक्षा में पढऩा पड़ेगा। मालवीय जी ने उसकी बात पूरी सुनी और कहा कि देखो बेटा, नियम तोडऩा अच्छी बात नहीं है।
तुहारी उपस्थिति कम इसलिए रही कि तुम अस्वस्थ हो, बीमारी की वजह से तुम पढ़ भी नहीं सके हो। तो कम पढ़ाई या बिना पढ़ाई के परीक्षा देने का क्या लाभ है? नंबर भी अच्छे नहीं आएंगे। रहा सवाल पुरानी कक्षा में पढऩे का, एक साल खराब होने का, तो ध्यान रखो कि विद्या अध्ययन महत्वपूर्ण है। जीवनभर ये क्रम चलना चाहिए। तुम इस बात पर ध्यान दो कि तुहें बहुत पढऩा है और जो भी परीक्षा दो, उसमें बहुत अच्छे नंबरों के साथ पास होना है।
उस विद्यार्थी को मालवीय जी ने पढ़ाई का महत्व समझाकर विदा किया। उन्होंने हमें भी एक बात समझाई है कि अनुशासन भी बना रहे और सामने वाले का मनोबल भी न टूटे। इस ढंग से बच्चों को बात समझानी चाहिए। पढ़ाई महत्वपूर्ण है। अगर मालवीय जी उस विद्यार्थी को परीक्षा में बैठने की अनुमति दे देते तो अनुशासन टूट जाता। उन्होंने बच्चे का मनोबल बढ़ाया और पढ़ाई का महत्व समझाया।
कोई भी विद्यार्थी दो तरीके से ज्ञान हासिल करता है। पहला, शिक्षण संस्थान से। दूसरा, शिक्षण संस्थान से बाहर निकलकर वास्तविक जीवन से। दोनों की तरीकों में अध्ययन लगातार होना चाहिए। तभी जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। वीरता उसी को कहते हैं जो साधनहीन होकर भी परिस्थितियों का मुकाबला कर सके। वीर पुरुष कभी भी हालात से नहीं घबराते बल्कि वह धैर्य के साथ संघर्ष करते हुए विजय प्राप्त करते हैं।
प. विजयशंकर मेहता
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)