देश के गृहमंत्री अमित शाह मंगलवार को लखनऊ में थे। उन्होंने आयोजित सीएए समर्थन रैली में साफ कर दिया कि नागरिकता संशोधन कानून का विपक्ष जितना चाहे विरोध कर ले लेकिन सीएए वापस नहीं होगा। इस मुद्दे पर विपक्ष को बहस की दावत भी दी। कांग्रेस, सपा-बसपा को कथित तौर पर अराजनीतिक ढंग से एनआरसी यानि नेशनल सिटीजन रजिस्टर से जोड़ते हुए सुनियोजित ढंग से कानून को लेकर प्रबल विरोध की तस्वीर पेश की जा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में भी सीएए विरोध सुर्खियां पा रहा है। दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर लखनऊ के घंटाघर पार्क तक महिलाओं और बच्चों को आगे कर के एक अवास्तविक धारणा बनाने की कोशिश हो रही है। वजह यह है कि सीएए में आपत्तिजनक क्या है, इसका जवाब विरोधियों और उनक बुद्धिजीवियों के पास भी नहीं है। इसीलिए असम एकार्ड के तहत हुए एनआरसी में उजागर हुई विसंगतियों को आधार मानकर भय का माहौल बनाया जा रहा है। सत्तारूढ़ पार्टी की तरफ से इन कानून को लेकर जन-जन तक पहुंचाना समय की मांग है।
यह सच है कि प्रदर्शनों का हिस्सा बन रहे बहुतेरे ऐसे हैं कि उन्हें पता ही नहीं किसलिए धरना-प्रदर्शन में आये हैं। वैसे संसद में जब नागरिकता संशोधन बिल आया था तब इसकी पहले से सभी पार्टी के माननीयों को बिल की प्रति सौंप दी गई थी ताकि विस्तृत चर्चा का हिस्सा बनकर सर्वानुमति बना सकें। सबके पास तीन पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ संबंधी मामलों को खारिज नहीं कर पाये। हालांकि पूर्व में भी देश की संसद ने एक औचित्यपूर्ण सीमित संदर्भ में नागरिकता कानून में संशोधन कर पहले बांग्लादेशी शरणार्थियों और बाद में तमिल शरणार्थियों को नागरिकता देने का काम किया है। दरअसल असल चिंता विपक्ष की अपनी घरेलू राजनीति को लेकर है। इसीलिए तथ्य को नजरअंदाज करते हुए अहमदिया और हजारा मुसलमानों को भी नये कानून में जगह देने की मांग उठी। तर्क यह है कि ऐसा करके देश के धर्मनिरपेक्ष ढांचे को मजबूती ही मिलेगी। पर सवाल है कि दशकों से धार्मिक प्रताडऩा से तंग आकर भारत आये अल्पसंख्यकों की नागरिकाता की मांग पहले क्यों नहीं उठी? अब जब उस विसंगति को न्यायपूर्ण ढंग से दूर करने की दिशा में मोदी सरकार ने काम किया है तो अहमदिया फिरके की बात हो रही है, जिसे गैर अहमदिया मुसलमान ही मुसलमान नहीं मानते ।
कथित धर्मनिरपेक्षतास के पैरोकार असुद्दीन ओवैसी ने खुद हैदराबाद में आयोजित होने वाले अहमदिया मुसलमानों के सम्मेलन को रोकने की मांग तत्कालीन सरकार से की थी। इसीलिए बहुत जरूरी है कि विरोधियों के कल्पित भय को निर्मूल करने का सत्तापक्ष मजबूती से प्रयास करें। हालांकि सीएए समर्थक रैलियों से भी विपक्ष नाराज है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को एहसास है कि सीएए का सच जन-जन तक पहुंचने पर भ्रम का संजाल बिखर जाएगा। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने भी बुधवार को इस कानून पर रोक लगाने से इंकार करते हुए केन्द्र सरकार एवं अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया है। यह एक तरह से उन लोगों के लिए झटका है, जो दशकों से जारी अन्याय के खात्मे को आये नागरिकता कानून को अदालती पेचीदीगियों में उलझााना चाहते थे। जवाब के लिए चार हफ्ते भाजपा के लिए अहम है। लोगों तक पहुंचे और को लेकर उसके असल मंतव्य से परिचित कराये। यह जरूरी इसलिए भी है कि इसकी आड़ में देश के भीतर तात्कालिक सियासी लाभ के लिए नफरत और विभाजनकारी सोच को हथियार बनाने की मुहिम चल रही है। वैसे भी झूठ के पांव नहीं होते।