शाह और मात

1
520
उन्नति के पथ पर
उन्नति के पथ पर

सभा स्थल के आस-पास गाड़ियों की इतनी भीड़ थी कि किशोर को अपनी कार काफी दूर खड़ी करनी पड़ी। वहां से पैदल ही सभा-स्थल की ओर चलना होगा। रूप किशोर चलते हुए मन ही मन सोच रहे थे, “इन्हें मेरी गाड़ी के लिए रास्ता छोड़ना चाहिये था। सीधे हाल तक मेरी गाड़ी जाती, वहां अर्दली कार का दरवाजा खोलता और मेरे उतरते ही भीड़ मुझे घेर लेती। इस तरह, होने वाले अध्यक्ष का एक फर्लांग दूर से अकेले पैदल जाना कितना अनुचित है। आखिर यह व्यक्ति नहीं वरन् पद की प्रतिष्ठा का प्रश्न है। मैं अध्यक्ष बनते ही यह नियम बना दूगां के एक फर्लांग तक कार के जाने के लिए चूने से लकीरें खींच दी जाएं जिससे सदस्य उन लाइनों के बाहर ही अपने वाहन खड़े करें। पुराने अध्यक्ष जी तो बड़े प्रभावहीन थे। मैं तो एस.एस.पी. तथा जिलाधिकारी से बात कर प्रत्येक सभा की व्यवस्था के लिए ट्रैफिक पुलिस का प्रबन्ध करवाऊँगा। रास्ते की भरपूर सफाई भी होनी चाहिए। पर अध्यक्ष के लिए एक साल का कार्यकाल कम है, कम से कम तीन वर्ष तो होना ही चाहिए।”

रूप किशोर जी सभा-स्थल पर पहुंचने ही वाले थे। बस दस-बीस गज की दूरी थी। रास्ता कारो, स्कूटरों से खचाखच भरा था। बाहर स्कूटरों, कारों को देख कर ही इस बात का अनुमान लगया जा सकता था कि अन्दर कतिनी भीड़ होगी। बल्लियों उछल रहा था। कितना स्वागत होगा आज। लो, सोच पूरी भी नहीं हुई कि सभा-स्थल आ गया।

शाह और मात
शाह और मात

रूप किशोर जी मुख्य द्वार से होते हुए बाहर के कम्पाउण्ड में प्रविष्ट हुए। यहां से भी सभा कक्ष दिखता है। पर यह क्या, सभा-कक्ष तो खाली है। “कहां गए सभी लोग? ढाई सौ-तीन सौ लोग तो होने ही चाहिये।” उत्सुकतावश बाहर ही अर्दली से पूछा

“अरे छिद्दा, कहां है सब?”

“नमस्कार साहब । सब नीचे बेसमैन्ट के हॉल में हैं।” छिद्दा बोला।

“पर वहां क्या हो राह है?”

“पार्टी चल रही है, साहब।”

पार्टी तो हमेशा सभा के बाद होती थी, आज पहले कैसे हो रही है? “खैर, देखूं क्या बात है।” रूप किशोर यह सोचते और जल्दी-जल्दी पहुंच कर दूर से ही देखा कि माला पहने चरन सिंह खड़े हैं। चारों तरफ प्रेस रिपोर्टर माइक लेकर उनसे बाते कर रहे हैं। एक वीडियो वाले ने अपना कैमरा चरन सिंह साबह के चेहरे पर केन्द्रित कर रखा है। रूप कशोर के मस्तिष्क में विचारों का भूचाल आ रहा था। सभी अच्छे-बुरे विचार सता रहे थे। अभी भूचाल थमा नहीं कि श्याम सुन्दर ने आवाज लगाई, “रूप किशोर साहब! अरे, इतनी देर कहां कर दी आपने?”

रूप किशोर ने मुड़ कर देखा तो श्याम सुन्दर उन की ही तरफ तेजी से आ रहे थे। रूप किशोर ने घड़ी देखी।

“अभी साढ़े चार ही तो बजा है।”

“तो फिर। मीटिंह कितने बजे थी? तीन बजे थी न”… श्याम सुन्दर ने टोका।

“हां पर इण्डियन टाइम से तो डेढ़-दो घन्टा विलम्ब से शुरू होती है। साढ़े चार-पांच बजे शुरू होती है। आप लोगों से पार्टी पहले कर ली, यह अच्छा किया।” उत्सुकता और संदेह भरी आवाज में रूप किशोर जी बोले।

श्याम सुन्दर वे तपाक से उत्तर दिया, “नहीं जी, पार्टी तो बाद में ही होती है। पहले पार्टी हो जाए तो मीटिंग के लिए कौन रुकगा?

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)

लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण

(अभी जारी है… आगे कल पढ़े)

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here