शाह और मात

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उन्नति के पथ पर
उन्नति के पथ पर

आज 13 दिसम्बर है। दिन मंगलवार है।
आज का दिन श्रीमती लक्ष्मी के परिवार के लिए बड़े महत्व का दिन है। श्रीमती लक्ष्मी घर में सबसे अधिक समझदार हैं तथा अनुशासन इनका स्वभाव है।

रूप किशोर एक मस्तमौला आदमी हैं। वे एक शिक्षक हैं पर शिक्षा को व्यवसाय से अधिक नहीं समझते।

रूप किशोर एक बड़े सामाजिक क्लब के सदस्य हैं। इस क्लब का अध्यक्ष बहुत प्रभावशाली होता है। सारे अधिकारी, सेठ-साहूकार आदि सभी अध्यक्षक जी की बातों को अनसुना नहीं करते। कल्ब जी की बातों को अनसुना नहीं करते। कल्ब में सबसे बड़ी बात यह है कि नगर सदस्य बने रहने से यह लाभ होता है कि क्लब के संचालन में कभी कोई समस्या नहीं आती। क्लब के अध्यक्ष जी का सभी अधिकारियों से सीधा सम्बन्ध जो हो जाता है। पूरा नगर जानता है कि कोई काम किसी भी अधिकारी से करवाना हो तो क्लब के अध्यक्ष को पकड़ लो। उसे प्रसन्न कर दो तो वह आपका काम उस अधिकारी से करवा देगा। बड़े सौभाग्य से क्लब की अध्यक्ष बनने के लिए बड़ा पैसा भी खर्च करने को तैयार रहते हैं।।

परम्परा यह है कि नामांकन पहले से नहीं होता। साथ के साथ नामाकंन और फिर आवश्यकता हो तो चुनाव। आज 13 दिसम्बर की शाम को क्लब की आम सभा है। इसमें नये अध्यक्ष का चयन होना है।

शाह  और मात
शाह और मात

अभी रूप किशोर खाना खाकर अपने बेटे सुनील के साथ शतरंज खेल रहे हैं।

“शतरंज ही खेलते रहोगे…समय का भी कुछ ध्यान है कि नहीं …।” श्रीमती लक्ष्मी एक व्यंग्य भरे स्वर में बोलते हुए अपने कमरे से निकली और रसोई घर में चली गई। न तो किसी ने कोई जवाब दिया और न ही श्रीमती लक्ष्मी ने जवाब सुनने की प्रतीक्षा की।

शतरंज की बाजी चलती रही।

थोड़ी देर में श्रीमती लक्ष्मी ने पुनः प्रवेश किया।

“पता नहीं किस मिट्टी के बने हैं बाप-बेटे? सुनील, तुम्हारे पिता जी ने तो अपना जीवन जैसे-तैसे काट दिया, पर तुम्हारे लिए जो जीवन की शुरुआत है… अब कुछ पढ़-लिख भी….।”

रूप किशोर ने व्यंग्यात्मक भाव में टोका, “वाह-वाह बड़ा अच्छा भाषण देती हो। मेरे बदले तो आज तुम्हें ही इलैक्शन में खड़े होना चाहिये।”

श्रीमती लक्ष्मी आवेश में आ गई और बोली, “तुम्हे तो हस समय मजाक ही सूझता है। कल्ब के अध्यक्ष बनने चले हैं और समय का ध्यान नहीं। ऐसों को तो….। समय निकल गया तो बैठ कर ताकते रहना। भाग्य बार-बार दरवाजा नहीं खटखटाता।”

लक्ष्मी ने उत्तर की प्रतीक्षा नहीं की। जानती थी कि फिर कोई मूर्खतापूर्ण या व्यंग्यपूर्ण बात सुननी पड़ेगी और वह ऐसी बात सुनना नहीं चाहती थी।

साभार
उन्नति के पथ पर (कहानी संग्रह)

लेखक
डॉ. अतुल कृष्ण

(अभी जारी है… आगे कल पढ़े)

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