भारत अब शादियों के मामले में क्रांतिकारी कदम उठानेवाला है। अभी तक भारतीय कानून के मुताबिक वर की आयु 21 वर्ष और वधू की आयु 18 वर्ष है। इससे कम आयु के विवाह अवैध माने जाते हैं। यह कानून मुसलमानों पर लागू नहीं होता है। वे शरिया के मुताबिक विवाह की आयु तय करते हैं। देश में विवाहों के आंकड़े अगर सही तौर पर इकट्ठे किए जा सकें तो हमें पता चलेगा कि देश में ज्यादातर विवाह कम आयु में ही हो जाते हैं। उनमें ज्यादातर ग्रामीण, पिछड़े गरीब और अशिक्षित परिवारों के युवा लोग ही होते हैं। भारतीय शास्त्रों में 25 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचारी रहने का विधान है लेकिन इस परंपरा के भंग होने के कई कारण रहे हैं। उनमें एक कारण तो यह भी रहा है कि अपनी कुंवारी बेटियों को विदेशी हमलावरों के बलात्कार से बचाने के लिए उनके शैशव-काल में ही उनका विवाह घोषित कर दिया जाता था। गरीबी से बचने के लिए बेटियों को शादी के नाम पर बेच देने का अपकर्म भी शुरु हो गया है लेकिन अब सरकार की मंशा है कि शादी के लिए कन्या की उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 साल कर दिया जाए। वधू की आयु वर के बराबर कर दी जाए।
यह अच्छा होगा लेकिन भारत सरकार से उम्मीद है कि वह इससे भी बेहतर करेगी। थोड़ा आगे बढ़ेगी। भारत में वर और वधू की न्यूनतम आयु 25-25 साल क्यों नहीं कर दी जाती ? दुनिया के वे देश काफी पिछड़े हैं, जिनमें कम आयु के लोग शादी करते हैं। जो देश संपन्न है, शक्तिशाली हैं और जिनमें आम आदमियों का जीवन-स्तर बेहतर है, उनमें वर-वधू की आयु प्रायः 30 वर्ष के आस-पास होती है। वहां भी छोटी उम्र में कुछ विवाह हो जाते हैं और विवाहरहित यौन-संबंध तो होते ही हैं, फिर भी देर से शादी करने के कई फायदे राष्ट्रीय और व्यक्तिगत स्तर पर भी दिखाई पड़ते हैं। एक तो स्त्रियां रोजगार में ज्यादा स्थान पाती हैं। दूसरा, गृहस्थ आत्म-निर्भर बन जाता है। तीसरा, प्रजनन में मृत्यु-दर घट जाती है। चौथा, जनसंख्या नियंत्रण स्वतः हो जाता है। पांचवां, वर-वधू दीर्घजीवी हो जाते हैं। इसीलिए मै। शादी की न्यूनतम आयु 25 वर्ष रखने पर जोर देता हूं। वर-वधू की आयु समान रखना स्त्री-पुरुष समानता का भी प्रमाण है। इस संबंध में जो भी कानून बने, वह सब नागरिकों पर समान रुप से और सख्ती से लागू होना चाहिए। जो सरकार कानून बनाकर तीन तलाक की कुप्रथा को समाप्त कर सकती है, वह वर-वधू की आयु को 25 वर्ष क्यों नहीं कर सकती ? सरकार करे या न करे, जनता को इस राह पर चलने से किसने रोका है ?
डॉ वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)