वैक्सीन विरोधी एक्टिविस्टों के झूठे दावे

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गत 9 फरवरी को ऑनलाइन जारी एक लेख की शुरुआत वैक्सीनों की कानूनी परिभाषा के संबंध में एक अटपटे सवाल से होती है। फिर अगले 3400 शब्दों में कहा गया है कि कोरोना वायरस वैक्सीन मेडिकल फ्राड हैं। वे संक्रमण और बीमारी नहीं रोकतीं हैं। लेख में दावा है कि वायरस से आपकी जेनेटिक कोडिंग बदल जाएगी।

आप वायरल प्रोटीन फैलाने वाली फैक्टरी बन जाएंगे। अगले कुछ घंटों में आर्टिकल अंग्रेजी से स्पेनिश, पोलिश में अनुवाद होकर सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। वैक्सीन विरोधी एक्टिविस्टों ने इस झूठे दावे को बार-बार फैलाया है। इस अभियान के प्रमुख शिल्पकार हैं, केपकोरल, अमेरिका के 67 साल के डॉक्टर मर्कोला।

वे ऑनलाइन ऐसे झूठे दावे फैलाते रहते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है,उन्होंने भ्रामक जानकारी फैलाकर बहुत पैसा कमाया है। अमेरिका में वायरस वैक्सीनोंं के खिलाफ कई लोग ऑनलाइन अभियान चला रहे हैं। इससे वैक्सीनेशन की गति धीमी पड़ी है।

मर्कोला के खिलाफ सरकारी नियामक एजेंसियां अमान्य दवाइयों और गैर मान्यता प्राप्त इलाज करने के लिए कार्रवाई कर चुकी हैं। उन्होंने महामारी फैलने के बाद सोशल मीडिया पर प्रसारित 600 से अधिक लेखों में कोविड-19 की वैक्सीनों पर संदेह खड़े किए हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स के विश्लेषण के अनुसार डा. मर्कोला की ऑनलाइन पहुंच बहुत व्यापक है। स्वयंसेवी संगठन- काउंटरिंग डिजिटल हेट सेंटर का कहना है, प्राकृतिक चिकित्सा के हिमायती डॉ. मर्कोला गलत जानकारी फैलाने वाले 12 लोगों (डिसइंफर्मेशन डजन) की सूची में शिखर पर हैं।

97% संक्रमित लोगों को वैक्सीन नहीं लगी

फॉक्स न्यूज के टकर कार्लसन और लारा इंग्राम सहित मीडिया की कुछ प्रमुख हस्तियां वैक्सीन का विरोध करती हैं। इनमें रॉबर्ट कैनेडी भी शामिल हैं। अमेरिका में वैक्सीनेशन की रफ्तार धीमी पड़ने से डॉ. मर्कोला और डिसइंफर्मेशन डजन के अन्य लोग सुर्खियों में हैं। उधर, अति संक्रामक डेल्टा वैरिएंट से अमेरिका में कोरोना वायरस संक्रमण फिर से उभर आया है।

बीमारी नियंत्रण और रोकथाम सेंटरों के अनुसार अस्पतालों में कोविड-19 से बीमार 97 प्रतिशत से अधिक लोगों को वैक्सीन नहीं लगी है।

राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वैक्सीन पर जारी हिचक के लिए ऑनलाइन झूठ को जिम्मेदार बताया है। उन्होंने, सोशल मीडिया कंपनियों से गलत जानकारी के संबंध में कुछ कदम उठाने के लिए कहा है। शोधकर्ताओं का कहना है, बीते दस वर्षों में डॉ. मर्कोला ने प्राकृतिक चिकित्सा का विशाल तामझाम खड़ा कर लिया है।

वैक्सीन विरोधी कंटेंट और प्राकृतिक चिकित्सा से भरपूर पैसा कमाया है। उन्होंने, 2017 में दाखिल एक हलफनामे में अपनी संपत्ति लगभग 745 करोड़ रुपए बताई थी। वे ऑनलाइन सीधे नहीं कहते कि वैक्सीन कारगर नहीं हैं। इसकी बजाय उसकी सुरक्षा पर सवाल उठाते हैं। उन अध्ययनों का हवाला देते हैं जिन्हें दूसरे डॉक्टर नामंजूर कर चुके हैं। फेसबुक और ट्विटर ने उनकी कुछ पोस्ट को चेतावनी के साथ साइट पर रहने दिया है।

काउंटरिंग डिजिटल हेट सेंटर के डायरेक्टर इमरान अहमद का कहना है, डॉ. मर्कोला को सोशल मीडिया ने नया जीवन दिया है। वे जनता को प्रभावित करने के लिए निर्ममता से उसका शोषण करते हैं। सेंटर की डिसइंफर्मेशन डजन रिपोर्ट का अमेरिकी संसद की सुनवाई और व्हाइट हाउस के बयानों में जिक्र हो चुका है।

एक ई मेल में डॉ. मर्कोला ने अपने खिलाफ चल रहे अभियान को राजनीतिक बताया है। उन्होंने व्हाइट हाउस पर सोशल मीडिया कंपनियों की मिलीभगत से अवैध सेंसरशिप लागू करने का आरोप लगाया है।

शीरा फ्रेंकेल
(लेखिका पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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