विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका सही नहीं !

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विश्व स्वास्थ्य संगठन का ऐसा लग रहा है कि एकमात्र काम कोरोना वायरस को लेकर पैनिक बनाना, लोगों में घबराहट पैदा करना, डराना और लॉकडाउन लगवाए रखना हो गया है। जब भी कोरोना वायरस से लडऩे के प्रयासों को लेकर कोई सकारात्मक खबर आती है तब सबसे पहले डब्लुएचओ उसका खंडन करने के लिए आगे आता है। हालांकि जब उसकी भूमिका की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब उसने चुप्पी साध ली थी। पिछले साल नवंबरदिसंबर का समय सबसे अहम था, जब ताइवान जैसे देश ने डब्लुएचओ को बता दिया था कि चीन में ऐसा वायरस निकला है, जो इंसान से इंसान में फैल रहा है, तब अगर डब्लुएचओ ने त्वरित कार्रवाई की होती तो वायरस को चीन के वुहान में ही रोका जा सकता था। उस समय डब्लुएचओ चीन को बचाने में लगा रहा। ऐसा नहीं है कि इस विश्व संस्था ने यह काम दो-चार दिन किया। उसने महीनों इस मामले को छिपाए रखा या दबाने का प्रयास किया, जिसका नतीजा यह हुआ कि वुहान से निकल कर कोरोना का वायरस सारी दुनिया में पहुंच गया। अमेरिका ने सारी फंडिंग रोक दी है और अपने संबंध तोड़ लिए हैं।

रूस ने भी वैसीन बनाई तो डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया और अब चीन भी उसकी कोई बात नहीं सुन रहा है। ले-देकर भारत और कुछ छोटे छोटे एशियाई, अफ्रीकी व लैटिन अमेरिकी देश ही अब डब्ल्यूएचओ की बात सुन रहे हैं। डब्ल्यूएचओ का काम कैसे सिर्फ पैनिक फैलाने का रह गया है यह वैसीन को लेकर आए उसके ताजा बयान से जाहिर होता है। उसने कहा कि वैसीन के मामले में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। फिर आगे उसने कहा कि अगले साल के मध्य तक वैसीन आ पाएगी। जब वैसीन बनाने वाली दुनिया की जिम्मेदार और जानकार कंपनियां अगले महीने तक वैसीन लाने की तैयारी कर रही हैं तो इस टाइमलाइन को छह- आठ महीने आगे बढ़ाने का या मतलब है? या डब्ल्यूएचओ को पास ऑसफोर्ड के वैज्ञानिकों से बेहतर वैज्ञानिक हैं? ऑसफोर्ड के वैसीन के तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा है और जिस कंपनी के साथ उसका करार हुआ है वह अगले महीने इसे अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन के सामने मंजूरी के लिए पेश करने की तैयारी कर रही है। सो, अब डब्ल्यूएचओ की बात पर कौन भरोसा करेगा?

असल में डब्ल्यूएचओ का कोई ऐसा छिपा हुआ एजेंडा है, जिसके लिए लगातार वह ऐसे काम कर रहा है। कोरोना के बाद जो नया वल्र्ड ऑर्डर बनने वाला है उसमें दुनिया के कुछ बड़े उद्योगपतियों और उनकी बनाई संस्थाओं की भूमिका रहनी है। वे सारे उद्योगपति कोरोना वायरस की वैसीन निर्माण के काम से भी जुड़े हैं। लेकिन उनकी वैसीन के आने में अभी समय है। उससे पहले अगर दूसरी कंपनियों के वैसीन आ जाते हैं और वैसीन को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए उनके ग्लोबल एलायंस की जरूरत नहीं पड़ती है तो यह उनके लिए बड़ा झटका होगा। अब सारी दुनिया कोरोना वायरस को लेकर अलग तरह से सोचने लगी है। जर्मनी में लॉकडाउन के खिलाफ हजारों लोगों ने सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया। स्पेन और कुछ दूसरे यूरोपीय देशों में भी ऐसे प्रदर्शन हुए हैं।

ऐसे ही कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में भी दुनिया के अनेक देशों ने डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों को मानना बंद कर दिया है, जिससे उन देशों में मौत के आंकड़े कम होने लगे हैं। ब्रिटेन ने पिछले दिनों देश में हुए मौतों के आंकड़ों में से एक दिन में पांच हजार मौतें कम कर दीं। असल में कोरोना की गाइडलाइंस के मुताबिक चाहे कितनी भी गंभीर बीमारी का मरीज हो और चाहे जैसे उसकी मौत हुई हो पर अगर उसको कोरोना हुआ है तो उसकी मौत कोरोना से हुई मौत मानी जाएगी। चाहे वैसीन का मामला हो, सत लॉकडाउन का मामला हो, मौतों का मामला हो, ऐसे हर मामले में जहां भी डब्ल्यूएचओ को बिना सिर पैर के दिशा-निर्देशों का आंख मूंद कर पालन किया गया वहां संकट गहरा हो गया। कोरोना के हमले से बचने के लिए हाथी रूपी अर्थव्यवस्था को खाई में गिरा दिया गया है। निश्चित रूप से इसमें डब्ल्यूएचओ ने बडी भूमिका निभाई है।

तनमय कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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