बिहार के चुनाव और मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश और कर्नाटक में हुए उप-चुनावों के स्पष्ट नतीजे अभी तक सामने नहीं आए हैं लेकिन वोटों की गिनती से जो लहरें पैदा हो रही हैं, उनकी ध्वनि यह है कि भाजपा का सितारा अभी भी बुलंद है। भारत के लोगों में मोदी-प्रशासन के प्रति अभी तक थकान पैदा नहीं हुई है। लोगों ने नोटबंदी की विभीषिका, जीएसटी के कुलांचे, कोरोना की महामारी और बेरोजगारी आदि कई समस्याओं का सामना किया लेकिन इसके बावजूद मोदी-सरकार के प्रति उसका विश्वास डिगा नहीं।
यह हो सकता है कि बिहार में विपक्ष की सरकार बन जाए, हालांकि उसकी संभावना कम ही है, फिर भी भाजपा को मिल रही बढ़त किस बात का संकेत कर रही है ? यह बढ़त इसलिए ज्यादा ध्यातव्य है कि नीतीश की सीटें घट रही हैं, जबकि दोनों पार्टियों ने लगभग बराबर संख्या में अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। इस वक्त टीवी चैनलों पर वोटों की गिनती से जो अंदाज लगाए जा रहे हैं, यदि वे खरे भी उतरे तो बिहार में सरकार भाजपा और जदयू (नीतीश) की ही बनेगी लेकिन वहां सवाल यह उठेगा कि अब मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? क्या नीतीश बनेंगे ? शायद वे खुद न बनें। वे केंद्र में मंत्री बन सकते हैं। वे किसी भी वक्त लोकसभा या राज्यसभा में पहुंच सकते हैं।
भाजपा ने वायदा किया था कि इस बार नीतीश ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन हो सकता है कि भाजपा में ही मुख्यमंत्री पद के कुछ दावेदार उठ खड़े हों। जो भी बिहार का मुख्यमंत्री बनेगा, इस बार उसके सामने चुनौतियां काफी भयंकर होंगी। तेजस्वी की जन-सभाओं में आए लाखों जवान अब चुप नहीं बैठेंगे। हिंदी राज्यों में बिहार का पिछड़ापन सर्वज्ञात है। यदि राजग की सरकार बनती है तो उस महागठबंधन में जमकर व्यक्तिगत, दलीय, जातीय और वैचारिक खींचतान तो होगी ही, उस सरकार को सबल विपक्ष का भी सामना करना होगा। नीतीशकुमार पिछले 15 साल में जितने अच्छे और उल्लेखनीय काम कर पाए हैं, उतने भी काम राजग सरकार कर पाएगी या नहीं, यह देखना होगा। सरकार किसी की भी बने, भाजपा सत्ता में रहे या विपक्ष में, बिहार में वह सबसे मजबूत शक्ति बन गईं है।
डा.वेदप्रताप वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)