वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आम बजट में आम लोगों तथा वेतनभोगियों को खुश करने और उद्योग जगत को राहत पहुंचाते हुए मंद पड़ी अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मांग, निजी निवेश और राजस्व संग्रह में वृद्धि के उपाय करते हुए सरकारी व्यय बढ़ाने के साथ ही राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने की बड़ी चुनौती होगी। निर्मला सीतारमण वित्त मंत्री के तौर पर अपना पहला पूर्ण बजट पेश कर रही है । वह ऐसे समय में यह बजट पेश करने जा रही हैं जब आर्थिक गतिविधयां छह वर्ष के निचले स्तर पर आ चुकी हैं और खुदरा महंगाई पांच वर्ष के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है। ऐसे में उनके लिए वास्तविकता और बजट को लेकर उम्मीदों के बीच तालमेल बनाना चुनौतीपूर्ण होगा। आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाकर वर्ष 2024-25 तक पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए लोगों, विशेषकर मध्यम वर्ग, की क्रय शक्ति को बढ़ाने के उद्देश्य से आयकर में बड़ी राहत दिए जाने की उम्मीद है लेकिन इससे राजस्व संग्रह प्रभावित हो सकता है। विश्लेषक ऐसी उम्मीद कर रहे हैं कि वित्त मंत्री कॉरपोरेट कर में कमी की तर्ज पर आयकर में भी छूट देकर लोगों की क्रय शक्ति को बढ़ा सकती हैं। उनका कहना है कि ढाई लाख रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक के पहले स्लैब पर कर की दर पांच फीसदी बनी रह सकती है, लेकिन पाँच लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की आय पर कर को 20 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी किया जा सकता है। इसी तरह 10 लाख रुपये से 25 लाख रुपये तक की सालाना आय पर कर को भी 30 प्रतिशत से कम कर 20 प्रतिशत किया जा सकता है। कुछ अर्थशास्त्रियों ने 25 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये तक की आय पर कर को 25 प्रतिशत रखने की वकालत करते हुए कहा है कि एक करोड़ से अधिक की आय पर 30 फीसदी कर लगाया जाना चाहिये
क्योंकि इतनी आमदनी वाले लोग ज्यादा कर दे सकते हैं। उन्होंने अमीरों पर आयकर पर लगे अधिभार को समाह्रश्वत करने की अपील करते हुए कहा है कि सरकार कर की दर जितना अधिक रखती है, कर संग्रह उतना ही कम होता है। उद्योग संगठनों के साथ आर्थिक विश्लेषकों और प्रमुख हस्तियों ने भी सरकार से आयकर स्लैब में बदलाव करने की अपील की है। इसके साथ ही मंद पड़े रियलटी उद्योग को गति प्रदान करने के लिए भी बजट में कुछ विशेष प्रावधान किये जाने की उम्मीद जतायी जा रही है। बजट में आयकर कानून के स्थान पर प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) को लाये जाने का अनुमान भी जताया जा रहा है। इससे जुड़ी समिति ने मध्यम वर्ग के लिए आयकर का बोझ कम करने की सिफारिश की थी। अगर ये सिफारिशें लागू होती हैं तो मध्यम वर्ग पर कर का बोझ कम हो सकता है। समिति की रिपोर्ट के अनुसार, कर स्लैब में बदलाव से कुछ वर्षों के लिए तो राजस्व का नुकसान हो सकता है, लेकिन लंबे समय में इसका फायदा देखने को मिलेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि रिपोर्ट में प्रत्यक्ष कर संहिता में प्रस्तावित कर स्लैब सरकार की मंशा के मुताबिक हैं। अगर सरकार चाहे तो इसे अमली जामा पहना सकती है हालाँकि उनका कहना है कि कर स्लैब में ऐसे बदलाव करने पर सरकार के राजस्व पर असर पड़ेगा।