श्रीगणेश चतुर्थी व्रत से होगी सुख-सौभाग्य में अभिवृद्धि श्रीगणेशजी के दर्शन-पूजन से होंगे मनोरथ पूर्ण
हिन्दू सनातन धर्म में पौराणिक मान्यता के अनुसार 33 कोटि देवी-देवताओं में भगवान श्रीगणेश जी को प्रथम पूज्यदेव माना जाता है। इन्हीं की पूजा-अर्चना से सभी कार्य प्रारम्भ होते हैं। सर्वविघ्नविनाशक अनन्तगुण विभूषित बुद्धिप्रदायक सुखदाता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेशजी की महिमा अपरम्पार है। वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है । मास के दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेशजी को समर्पित है।
प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि को संकष्टी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है जबकि शुक्लपक्ष की मध्याह्न व्यापिनी चतुर्थी तिथि को वरद विनायक श्री गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को किये जाने वाला वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत इस बार 28 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि 28 अक्टूबर, शुक्रवार को प्रातः 10 बजकर 34 मिनट पर लगेगी जो कि 29 अक्टूबर, शनिवार को प्रातः 8 बजकर 15 मिनट तक रहेगी। मध्याह्न व्यापिनी वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी व्रत 28 अक्टूबर, शुक्रवार को रखा जाएगा। इस दिन श्रीगणेश भक्त श्रीगणेशजी का व्रत-उपवास रखकर विधि-विधानपूर्वक श्री गणेश जी की पूजाअर्चना करके पुण्यफल प्राप्त करेंगे।
ऐसे करें श्रीगणेशजी की आराधना-ज्योतिर्विद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होने के उपरान्त अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करके वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। श्रीगणेशजी का श्रृंगार करके उन्हें दूर्वा एवं दूर्वा की माला, मोदक (लड्डू), अन्य मिष्ठान्न ऋतुफल आदि अर्पित करना चाहिए। धूप-दीप, नैवेद्य के साथ पूजा करके श्रीगणेश जी की महिमा में उनकी विशेष अनुकम्पा प्राप्ति के लिए श्रीगणेश स्तुति, श्रीगणेश चालीसा, श्रीगणेश सहस्रनाम, श्रीगणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए। साथ ही श्रीगणेश जी से सम्बन्धित विभिन्न मन्त्रों का जप करना श्रेयस्कर रहता है। श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत महिला-पुरुष तथा विद्यार्थियों के लिए समानरूप से फलदायी है। जिन्हें केतुग्रह की महादशा, अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो अर्थात् जिन्हें अपने कार्यव्यवसाय, घर परिवार में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो, उन्हें वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत-उपवास रखकर श्रीगणेशजी की पूजा-अर्चना करके लाभान्वित होना चाहिए। श्रीगणेश पुराण के अनुसार भक्तिभाव व पूर्ण आस्था के साथ किए गए वरद् वैनायकी श्रीगणेश चतुर्थी के व्रत से जीवन में सौभाग्य की अभिवृद्धि होती है, साथ ही जीवन में मंगल कल्याण होता रहता है।