लोगों के ‘गिलहरीपन’ को पहचानें

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मेरे एक दोस्त को कभी-कभी शराब पीना पसंद है, जबकि उसकी पत्नी को इससे सख्त नफरत है। महामारी के बाद जबसे दोनों का वर्क फ्रॉम होम (डब्ल्यूएफएच) शुरू हुआ है, उसे यह इच्छा पूरी करने का मौका ही नहीं मिलता। इस साल की शुरुआत में उसने छोटी बोतलें खरीदना शुरू किया और उन्हें डब्ल्यूएफएच वाले कमरे में छिपाने लगा।

यह मजेदार है क्योंकि वह उन्हें इतने संभाल के रखता है कि खुद भूल जाता है, जैसे गिलहरियां भूल जाती हैं कि उन्होंने पिछले दिन खाना कहां जमा किया था (गिलहरियों की इस आदत को अंग्रेजी में ‘स्क्विरल अवे’ कहते हैं)। उसकी पत्नी को सफाई में बोतलें मिल जाती हैं और झगड़ा शुरू हो जाता है।

कल बेंगलुरु यात्रा के दौरान मैंने उसे मिलने बुलाया। बात करने के लिए जगह ढूंढते समय उसने मुझसे पूछा, ‘तुम्हें वैक्सीन के दोनों डोज लग गए?’ मैंने बिना उसकी मंशा जाने ही कहा, ‘हां।’ उसने तुरंत मेरा हाथ पकड़ा और पास के मेक्सिकन रेस्त्रां ले जाकर बोला, ‘घर में बैठने की जगह चलो हम यहां बैठकर बातें करें।’ मैंने पूछा, ‘यहां क्यों’, तो उसने बार काउंटर की ओर इशारा किया।

वहां बोर्ड पर लिखा था, ‘गॉट अ शॉट, गेट अ शॉट’ (वैक्सीन लगवाई है तो मुफ्त ड्रिंक पाएं)। तब मुझे इस रेस्त्रां में आने की उसकी मंशा समझ आई। दोस्त मेरा वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट दिखाकर एक मुफ्त ड्रिंक पाना चाहता था। वहीं रेस्त्रां उन लोगों को लुभाना चाहता था, जिन्होंने पिछले 16 महीने के डब्ल्यूएफएच के दौरान कुछ शॉट्स पीने की इच्छा ‘स्क्विरल अवे’ की थी।

मैं अपना नींबू पानी पीते हुए देख रहा था कि दोस्त ड्रिंक पाकर बच्चे की तरह खुश है। तभी मुझे अचानक ख्याल आया कि मैं कैसे कॉलेज के दिनों में केवल पांच रुपए की अपनी पॉकेट मनी को ‘स्क्विरल अवे’ करता था। मुझे अहसास हुआ कि कहीं आने-जाने के लिए अब भी टीकाकरण का इंतजार कर रहे 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों ने भी पॉकेट मनी ‘स्क्विरल अवे’ की होगी, जो इन दिनों हजारों रुपए तक होती है। स्वाभाविक है कि उनकी जरूरतों से जुड़ी दुकानें पिछले 16 महीनों से बंद हैं, तो उन्हें पॉकेट मनी खर्चने के कम मौके मिले होंगे। हम दोनों चर्चा करने लगे कि स्वाभाविक रूप से 18 से कम उम्र के बच्चों ने पैसा ‘स्क्विरल अवे’ किया होगा।

लंदन में हुए एक सर्वे का दावा है कि यूके में बच्चों ने 3.8 करोड़ पाउंड जमा कर रखे हैं और चाइल्ड बिहेवियर पर कंसल्टेंसी फर्म बिआनो ब्रेन का कहना है कि प्रतिबंध कम होने पर 18 वर्ष से कम के बच्चे दुकानों पर जाकर फास्ट फूड से लेकर खिलौनों तक, अपनी पसंदीदा चीजें खरीदना चाहते हैं। यूके में करीब 59% बच्चों ने सर्वे में कहा कि वे दुकानों से खरीदना चाहते हैं, ऑनलाइन नहीं। इसलिए हैरानी नहीं कि इस बड़े खर्च को देखते हुए ‘हायपरजार’ ने मंगलवार को यूके में अपनी मुफ्त सेवाएं शुरू कर दीं।

यह मास्टरकार्ड से जुड़ी कंपनी है, जिसका सेविंग अकाउंट्स और पेमेंट कार्ड (डेबिट) के साथ मनी मैनेजमेंट एप है। (यह उन 41% बच्चों को आकर्षित करना चाहती है, जो कुछ भी ऑनलाइन खरीदना चाहते हैं) यह यूके का पहला 100% फ्री मनी एप है, जिसमें 6 से 17 वर्ष के बच्चों के लिए प्रीपेड कार्ड हैं। वे एटीएम से बस कैश नहीं निकाल सकते, बाकि वह सब कर सकते हैं, जो हमारे कार्ड करते हैं। इस सेग्मेंट में चार बड़ी कंपनियां है, लेकिन पूरी तरह मुफ्त कोई नहीं है।

एन. रघुरामन
(लेखक मैनेजमेंट गुरु हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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