पूरे देश को इंतजार था कि 14 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या कहेंगे, वो अब पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है। लॉकडाउन का दूसरा चरण 15 अप्रैल से 3 मई तक लागू रहेगा। उनकी पूरी बात का निष्कर्ष यह भी है कि यह दूसरा चरण पहले से ज्यादा कठोर होगा। क्योंकि वैश्विक परिदृश्य में कोरोना वायरस ने जो तबाही मचायी है। उससे सतर्क रहते अब यह हर हाल में यह जरूरी हो गया है कि सभी स्तरों पर इसका कड़ाई से पालन हो। राज्य सरकारों ने अब तो जो भूमिका अदा की है, उसे आगे भी विस्तार देने की बात कही गई है। जनता की सहभागिता भी रेखांकित की गई। साथ में यह भी साफ किया गया कि 20 अप्रैल तक यदि कोरोना के खिलाफ लड़ाई का असर यदि धरातल पर दिखा तो सशर्त कुछ ढील भी दी जा सकती है। इसका मतलब यह है कि इस चरण को और अधिक गंभीरता से लेने की जरूरत है। उनके संबोधन में इस महामारी को लेकर अब तक सरकार के स्तर पर बढ़ती गई सावधानी और सुविधाओं का उल्लेख किया गया है।
खास बात यह भी रही कि नये हॉट स्पाट न बने। इसे सुनिश्चित करने की जिमेदारी प्रशासन के साथ नागरिकों के कंधे पर डाली गई है। प्रोत्साहन के साथ यह अपेक्षा भी उनके संबोधन में ध्वनित हुई है। यह सही है कि लॉक डाउन के पहले दौर के नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि सोशल डिस्टेंसिंग एक मात्र बड़ा आधार है। जिसके अभाव में संसाधन भी महत्वहीन साबित होगा। इस नये दौर में अब कस्बों-गांवों तक इस सतर्कता की अपेक्षा होगी कि वहां नये हॉट स्पाट न उभरे। हालांकि यह काफी चुनौतिपूर्ण होगा। क्या जिले स्तर पर ऐसी कोई निगरानी व्यवस्था है। जिसके आधार बढ़ते-घटते मरीजों के आंकड़े सामने लाये जा सके। अभी पूरा फोकस शहरी इलाकों तक का, गांवों की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल होगा। इस वक्त देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा 10 हजार के पार जा चुका है। रैपिड टेस्टिंग की भी शुरूआत हुई है। लगभग एक लाख बेड के इंतजाम किये जा चुके है।
इस सब के बीच एक समस्या उस बड़े तबके की जरूर है, जो लॉकडाउन के कारण बेकार हो गया है। हालांकि प्रधानमंत्री ने एक बार फिर आश्वस्त किया है कि इस बृहद तबके का पूरा ध्यान केन्द्र और राज्य सरकारें मिलकर करेगी। उन्होंने अपने संबोधन में यह भी कहा है कि कंपनियां इस अवधि में अपने कर्मचारियों का पैसा न काटे और न ही नौकरी से निकाले। इस कठिन समय में संवेदना और धैर्य का परिचय दे। उनकी बात का कितना असर होता है, यह समय बतायेगा लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि लॉकडाउन की अवधि अभी तो 3 मई तक है, यदि संकट को देखते हुए आगे और बढ़ी तब मालिकों के सामने भी बड़ी चुनौती होगी। छोटे-मोटे उद्योग धंधों में करोड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। इस आवश्यक बंदी का प्रतिकूल असर इस क्षेत्र पर भी पड़ा है। उम्मीद करें, कोरोनो से उपजे संकट से चुनौती इस बड़ी अवधि में और कम हो ताकि धीरे-धीरे देश पटरी पर लौट सके।