लाचार क्यों हैं एजेंसियां

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पाहाल में राज्यसभा की एक तदर्थ समिति द्वारा उप राष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को सौंपी रिपोर्ट में चाइल्ड पॉर्नोग्रफी पर तत्काल रोक लगाने की सिफारिश की गई है। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश के नेतृत्व वाली इस समिति ने रिपोर्ट में चाइल्ड पॉर्नोग्रफी से जुड़े कॉन्टेंट को इंटरनेट, खासतौर पर सोशल मीडिया के जरिए प्रचार-प्रसार पाने से रोकने के लिए 40 सिफारिशें की हैं। इसमें प्रटेशन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेशुअल ऑफेंसज (पोस्को) कानून और आईटी कानून में संशोधन की सिफारिश भी शमिल है। समिति ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि जिस प्रकार उन्होंने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक पहल करते हुए अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का गठन किया है, उसी प्रकार उन्हें चाइल्ड पॉर्नोग्रफी के संकट से निपटने के लिए भी वैश्विक राजनीतिक गठजोड़ बनाने के लिए पहल करनी चाहिए। समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि प्रधानमंत्री इस दिशा में जी-20 या संयुक्त राष्ट्र समेलन में कारगर पहल कर सकते हैं।

गौरतलब है कि गत दिसंबर (2019) में ही सभापति वेंकैया नायडू ने इस समस्या से निपटने के लिए एक समिति का गठन कर उसे एक महीने के अंदर रिपोर्ट देने को कहा था। चाइल्ड पॉर्नोग्रफी एक व्यापक सामाजिक सरोकार वाला मुददा है और इसके प्रसार-प्रसार के खिलाफ फौरन युद्धस्तर पर कार्रवाई करने की जरूरत है। संसद की समिति ने बेशक अपनी सिफारिशें भेज दी हैं, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि इलेट्रॉनिस और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आधिकारियों ने इसी समिति के सामने लाचारी जताते हुए बताया था कि वाट्सऐप जैसे प्लैटफॉर्म ‘एंड-टु-एंड एन्क्रिप्शन’ का हवाला देते हुए कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ सहयोग नहीं करते हैं। यहां तक कि वह कानून के जरिए किए गए अनुरोध का भी समान नहीं करते हैं। जब सूचना या जांच की बात कही जाती है तो वे दावा करते हैं कि वे अन्य देश के कानून से संचालित हैं। भारत में सोशल मीडिया पर चाइल्ड पॉर्नोग्रफी अपलोड से संबंधित आंकड़े हमारे समाज की एक भयावह तस्वीर तो पेश करते ही हैं पर इसके साथ-साथ सरकार और कानून पर अमल कराने वाली संस्थाओं को भी कटघरे में खड़ा करते हैं।

गौरतलब है कि भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में चाइल्ड पॉर्नोग्रफी पर प्रतिबंध है, लेकिन इसके बावजूद इसका बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार जारी है। भारत की बात करें तो यहां पिछले पांच महीनों के रेकॉर्ड खुलासा करते हैं कि हर 10 मिनट में एक बाल यौन शोषण का पॉर्न विडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किया जा रहा है। अगस्त 2019 से लेकर 23 जनवरी 2020 तक ऐसे मामलों की संख्या 25,000 है। अमेरिका के नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एसप्लॉइटेड चिल्ड्रन ने भारत के नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के साथ सूचनाएं साझा की हैं। ये आंकड़े सामाजिक, मानसिक रुग्णता से जुड़ी उस सामाजिक अवधारणा को भी तोड़ते हैं जिसके निशाने पर असर ग्रामीण, अनपढ़, गरीब लोग होते हैं। आंकड़ों के मुताबिक जिन इलाकों में यह सब हो रहा है, उनमें मुल्क की राजधानी दिल्ली पहले नंबर पर है। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, और पश्चिम बंगाल आते हैं।

केंद्र व राज्य सरकारों के सामने सवाल यह है कि चाइल्ड पॉर्नोग्रफी देखना व ऐसी सामग्री अपलोड करना भी कानूनन जुर्म है तो इस तक पहुंच को सख्ती से रोका क्यों नहीं जा रहा। आखिर ऐसा क्यों है कि वाट्सऐप के आला अधिकारी कानून लागू करने वाली एजेंसियों से सहयोग नहीं करते/ उन पर कड़ी कार्रवाई के रास्ते तलाशना व उन पर दबाव बनाना सरकार की ही जिमेदारी है। दिग्गज टेक कंपनियां सोशल मीडिया के जरिए अरबों रुपये कमा रही हैं और उससे मुल्क को भी आर्थिक लाभ होता है, लेकिन यहां बिजनेस हित से ऊपर उठकर बच्चों व समाज को बुरी तरह से प्रभावित करने वाली इस सामाजिक मानसिक रुग्णता को दूर करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। यह मसला इसलिए भी अत्यधिक गंभीर है क्योंकि गरीब, बेसहारा और सबसे वंचित तबकों के बच्चे ही प्राय चाइल्ड पॉर्नोग्रफी का शिकार बनते हैं।

अलका आर्य
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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