लाइन हो या नहीं – हेललाइन बन ही जाती है

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इसमें नयी बात तो कुछ है नहीं, आजादी में कुर्बानी भले ही बड़े चेहरों और क्रांतिकारियों ने दी ही लेकिन आजादी के बाद तो कुर्बानी केवल जनता ही देती आई है। एक नाम अगर किसी नेता का किसी को याद हो जिसने 70 के बाद देश में जनता के लिए कुर्बाी दी हो?

कम से कम एक बार और अंतरिम बजट पर लिखा जा सकता है। हम इसमें नहीं जाना चाहते कि ये चुनाव बजट से ही देश की जनता का कल्याण होना है तो फिर ये जनता को समझना है कि चुनाव पांच साल बाद हुआ करें या फिर हर साल। हर साल होने से देश की दुर्गत होती और पांच साल बाद होने से जनका की। बड़ा तो देश ही है और उसे बचाना ही नहीं बल्कि बढ़ाना है लिजाहा कुर्बानी तो जनता को ही देनी पड़ेगी। इसमें नयी बात तो कुछ है नहीं, आजादी में कुर्बानी भले ही बड़े चेहरों और क्रांतिकारियों ने दी हो लेकिन-आजादी के बाद तो कुर्बानी केवल जनता ही देती आई है। एक नाम अगर किसी को याद हो जिसने 70 के बाद देश में जनता के लिए कुर्बानी दी हो?

समर्थक और अंधभक्त जिस तरह बजट के गुणगान कर रहे हैं आखिर इस बजट में ऐसा है क्या, जिस पर इतना इतरा भी रहे हैं और अहंकार से भले बोल रहे हैं? आखिर करदाता को क्या मिला? पांच लाख तक की छूट का जिस तरह गुणगान किया जा रहा है उसमें ऐसा कै क्या? अगर देश में 23 करोड़ से ज्यादा युवा रोजगार के लिए धक्के खा रहे हैं तो ये पांच लाख तक की छूट क्या उनके जले पर नमक छिड़क रही होगी? अगर 50 फीसद के आसपास आबादी की आय हर महीनें 20 हजार भी नहीं हैं तो उसे इस पांच लाख की छूट का क्या लाभ?

जिन थोड़े-बहुत को इससे लाभ होगा वह जरूर इतरा रहे हैं, लेकिन ऐसों की संख्या होगी ही कितनी? पूरे बजट में रोजगार पर आखिर पीयूष गोयल कुछ क्यों नहीं बोले? क्या इसलिए की रोजगार के ताजा आंकड़ों ने सरकार की पोल खोलकर रख दी है और पूरे देश को बता दिया है कि बेरोजगारी महामारी का रूप ले चुकी है? या फिर सरकार चाहती है कि इंटरनेट पर सारी युवा पीढ़ी लगी रहे और मस्त रहे? कहीं दोनों हाथों में मोबाइल को ही तो सरकार ने हर हाथ को काम नहीं मान लिया है? मोदी सरकार के पास रोजगार के डाटा हैं ही कहां तो वो कुछ भी सोच सकती है, मान सकती है और अंधभक्तों के जरिए मनवा भी सकती है?

मजदूरों के लीए तीन हजार की पेंशन के बारे में भी तह में जाकर पता चलता है कि ये केवल छलावा है। अगर 29 साल का कोई युवक अब असंगठित क्षेत्र में जाता है और हर महीनें 100 रुपये जमा कराता है तो 2050 में जब वो साठ साल का होगा और 31 साल पैसा कटवाएगा तो उसे तीन हजार की पेंशन नसीब होगी। ये कैसी डेडलाइन है या केवल हेडलाइन बनाने के लिए ऐलान किया गया? उस वक्त इन तीन हजार की क्या वैल्यू होगी। चवन्नी या बंद हो चुके पांच व दस पैसे के बराबर? सरकार ने क्यों नहीं बताया कि अटल पेंशन योजना के तहत कितनों को पेंशन मिल रही है? हैरानी की बात तो ये हैं कि असंगठित क्षेत्र में 40 करोड़ से ज्यादा मजदूर हैं लेकिन योजना केवल दस करोड़ के वास्ते। बाकी क्या करें? नौकरी देने वाला सबसे बड़ा सेक्टर है टेक्सटाइल। वहां लाख रोजगार पैदा करने का दावा कैसे पूरा हो सकता है जब उसके बजट को ही घटा दिया गया? बजट में जबसे किसानों के लिए ऐलान हुआ है तबसे हर गांव गली से खबरें आ रहीं हैं किसान रातोंरात खुशहाल हो गया है? कल यही सब सुनाई देगा। पहले ही लिखने में हर्ज ही क्या है?

लेखक
डीपीएस पंवार

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