कांग्रेस-जैसी महान पार्टी कैसी दुर्दशा को प्राप्त हो गई है? उसकी कार्यसमिति जैसी अंधी गुफा में आजकल फंसी हुई है, वैसी वह सुभाषचंद्र बोस और पट्टाभि सीतारमय्या तथा नेहरु और पटेल की टक्कर के समय भी नहीं फंसी थी। उस समय महात्मा गांधी थे। सही या गलत, जो भी उन्हें ठीक लगा, वह रास्ता उन्होंने कांग्रेस के लिए निकाल दिया लेकिन राहुल गांधी के बाल हठ ने कांग्रेस की जड़ों को हिला दिया है।
कांग्रेस के सांसद और कई प्रादेशिक नेता रोज-रोज पार्टी छोड़ने का ऐलान कर रहे हैं। मुझे तो डर यह लग रहा है कि यही दशा कुछ माह और भी खिंच गई तो कहीं कांग्रेस का हाल भी राजाजी की स्वतंत्र पार्टी, करपात्रीजी की रामराज्य परिषद, लोहियाजी की समाजवादी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तरह न हो जाए।
भारतीय लोकतंत्र के लिए यह अत्यंत चिंताजनक चुनौती होगी। अभी कांग्रेस की बड़ी समस्या यह है कि उसका अध्यक्ष किसे बनाया जाए? राहुल गांधी का अपने इस्तीफे पर डटा रहना दो बातों का सबूत लगता है। एक तो यह कि यह युवा नेता काफी पानीदार है, स्वाभिमानी है। जिस बात पर अड़ा, उसी पर अड़ गया। उसके सपनों का महल ध्वस्त होते ही वह भी बिखर गया। दूसरा, यह भी कि राहुल अभी भी अपरिपक्वता का शिकार है।
इस युवा नेता को शायद इस बात का अंदाज नहीं है कि चुनाव-अभियान का समापन होने तक उसकी छवि निरंतर बेहतर होती चली जा रही थी। इंटरव्यू देने के मामले में वह नरेंद्र मोदी से ज्यादा दमदार दिखाई देने लगी थी। यदि राहुल रणछोड़दास की भूमिका की बजाय रणेन्द्र की भूमिका में रहते तो शायद कांग्रेस में कुछ जान पड़ जाती। बेचारे कांग्रेसियों की हालत आज इतनी गई-बीती है कि कोई नेतागीरी का झंडा थामने के लिए सामने नहीं आना चाहता है। उसका नाम ही है एन.सी. याने नौकर-चाकर कांग्रेस।
तो उन्होंने अपनी बंदूकें अपनी पुरानी मालकिन के कंधों पर रख दी हैं। सोनियाजी अपनी सेहत का ख्याल रखें या कांग्रेस की? कांग्रेस पार्टी हिम्मत करे तो मैं एक सुझाव दूं। वह अपनी कार्यसमिति को अ-कार्यसमिति घोषित कर दे। पार्टी-अध्यक्ष का चुनाव या तो पार्टी के सभी साधारण सदस्य करें या अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी करे। जो भी लोकप्रिय और दमदार नेता होगा, पार्टी उसे चुन लेगी।
वह कोई राहुल से भी युवा और सोनियाजी से भी ज्यादा बुजुर्ग हो सकता है। कांग्रेस में दर्जनों श्रेष्ठ और अनुभवी नेता हैं। वे चाहें तो कांग्रेस को एक सच्ची लोकतांत्रिक पार्टी बना सकते हैं। इस समय देश को एक मजबूत, परिपक्व और जिम्मेदार विपक्ष की बहुत जरुरत है। उसके बिना भारत एक बिना ब्रेक की मोटर कार बनता चला जाएगा।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं