राहत की कवायद

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आर्थिक मोर्चे पर जो तस्वीर है, उसमें निश्चित तौर पर देश को बड़ा राहत की दरकार थी। इस दिशा में अर्थव्यवस्ता को रफ्तार देने के लिए वित्तमंत्री का मूल फोकस हाउसिंग और एक्सपोर्ट सेक्टर्स पर है। देशभर में लटके हाउसिंग प्रॉजेक्ट को पूरा करने की दिशा में वित्तमंत्री ने एक बड़ा स्ट्रेस फंड बनाने की घोषणा की है, जिसका रियल एस्टेट सेक्टर लंबे समय से मांग कर रहा था। हालांकि एनारॉक प्रॉपर्टीज के मुताबिक, देशभर में करीब 5.6 लाख हाउसिंग यूनिट लॉन्च होने के पांच साल या इससे ज्यादा समय बाद भी तैयार नहीं हो सकी हैं, इनकी कुल कीमत करीब 4.5 लाख करोड़ पये है। इनमें 38 फीसदी यूनिट सिर्फ एनसीआर में हैं, जिनकी वैल्यू 1.31 लाख करोड़ है।

सरकार की ओर से उठाए गए कदम जैसे रेरा और अदालती सख्ती के बावजूद लटके पड़े हाउसिंग प्रॉजेक्ट को पूरा कराने में अभी भी बहुत ज्यादा तेजी नहीं आ पायी है। ऐसे में सरकार का 10,000 करोड़ का फंड इन लटकी परियोजनाओं को पूरा करने में बेहद मददगार साबित हो सकता है। दिल्ली.एनसीआर में सबसे ज्यादा कुल 2 लाख 10 हजार 200 यूनिट अटके पड़े हैं। ग्रेटर नोएडा में 1.04 लाख यूनिट अभी लटकी हुई है, जिनकी वैल्यू करीब 45,039 करोड़ रुपये बैठती है। इसी तरह नोएडा में 44,082 घरों पर अभी तक काम पूरा नहीं हो पाया है, जिनकी कीमत 38,511 करोड़ रुपये है। गाजियाबाद में 24,728 यूनिट अटकी है, जिनकी कीमत 9,664 करोड़ रुपये है। इसी तरहए गुरुग्राम में 23,287 यूनिट अटकी हैं, जिनकी वैल्यू 25,086 करोड़ रुपये है। इसके अलावा, दिल्ली में भी 4,102 यूनिट अधर में लटकी पड़ी हैं।

जिनकी कीमत 9,930 करोड़ रुपये है। जिन बिल्डर्स के पास पैसों की कमी है, उनके प्रॉजेक्ट को तो सरकारी मदद मिल सकती है, लेकिन जो प्रॉजेक्ट एनपीए और एनसीएलटी में हैं, उनका क्या होगा। सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि उसने 10,000 करोड़ रुपये का जो स्ट्रेस फंड बनाया है, उससे उन्हीं प्रॉजेक्ट्स को मदद मिलेगी, जो एनपीए नहीं हुए हैं या एनसीएलटी में नहीं हैं। इस समय सरकार विपक्ष के निशाने पर है और सरकार के सामने यह चुनौती है कि इस आर्थिक सुस्ती से कैसे निपटा जाए। पिछली तिमाही में विकास दर घटकर 5 फीसदी पर आ गई। इसके बाद सरकार की नीतियों को लेकर विपक्ष घेरने का मौका नहीं छोड़ रहा है।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नोटबंदी को इस संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया। एक बात यहां ध्यान में रखने योग्य है वह यह कि यह सरकार जब हर तरफ से सवाल उठते हैं तो उससे निपटने का जज्बा भी दिखाती है। शायद यही वजह है कि विपक्ष के जोरदार हमलों का असर लम्बे वक्त तक नहीं रह पाता। यह सच है कि हाथ से काम छिना है। यह भी सच है कि लोगों की क्रय शक्ति भी कम हुई है। विनिर्माण और सेवा क्षेत्र से आर्थिक संकेतक उत्साहवर्धक नहीं हैं फिर भी कुछ सूचनाएं ऐसी कि यकीन करना ही पड़ता है। मसलन कारोबारी सुगमता रैंकिंग में भारत ने वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक में लम्बी छलांग लगाई है। इस सूची में भारत 79वें पायदान पर पहुंच गया है। उल्लेखनीय यह कि चीन से हम आगे हैं। हालांकि विकास दर उम्मीद से ज्यादा कमजोर है यह चिंता की बात है।

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