राफेल मामले में नया मोड़

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केन्द्र सरकार की तरफ से बीते बुधवार सुप्रीम कोर्ट में जानकारी दी गई कि राफेल लड़ाकू विमान सौदे से जुड़े दस्तावेज रक्षा मंत्रालय से चोरी हुए है। बताया जाता है ये वो दस्तावेज हैं जिसके आधार पर एक अंग्रेज अखबार में खबरे प्रकाशित हुई थीं। इस मामले में दिलचस्प यह है कि जांच चल रही है लेकिन अभी तक रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है। राफेल विवाद में इस तरह एक नई कड़ी जुड़ गई है और इस पर विपक्ष की तरफ से हो रही सियासत को एक तरफ करते हुए वैसे भी विचार करें तो सरकार की तरफ से दी गई जानकारी संदेह पैदा करती है। सवाल है कि रक्षा मंत्रालय में वे कौन लोग हैं जिन्होंने दस्तावेज चुराने में भूमिका नभाई? किसके इशारे पर अहम कागजात चोरी किये गये? ऐसा क्या था दस्तावेज में जिसे छुपाने की कोशिश हो रही है?

इससे भी अहम सवाल ये कि इस मसले पर एफआईआर क्यों नहीं हुई? जाहिर है, दस्तावेज में बहुत सी ऐसी जानकारियां होगी जिसका कोई बेजा फायदा उठा सकता है। मामले की गंभीरता को सरकार की तरफ से कितना समझा गया है, यह मौजूदा रवैये से साफ हो जाता है। ठीक है, किसी अखबार तक ऐसे गोपनीय दस्तावेज की जानकारी किस तरह पहुंची? किसके पहुंचाई? इसकी जांक करके जो भी दोषी हैं, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। रक्षा मंत्रालय से इस तरह गोपनीय दस्तावेज का चोरी होना बड़ा गंभीर मामला है। राफेल सौदे की खरीद को चुनौती देने वाली याचिकाओं में यदि उठाये गये सवालों का आधार चोरी गये दस्तावेज हैं तो फिर इन नये घटनाक्रम पर भी सवाल उठता है और इसका जवाब खुद सरकार की तरफ से आना चाहिए।

ताकि संदेह की तनिक भी गुंजाइश ना रहे। इसलिए भी कि एक अरसे बाद वायु सेना को राफेल के रूप में उन्नत किस्म का युद्ध विमान मिलने जा रहा है, जिसकी बदौलत अमेरिकी एफ-16 विमान से मुकाबला किया जा सकता है। देश की सुरक्षा के लिहाज से सौदे के तौर-तरीकों पर बड़ी अदालत में चल रही बहस के लिहाज से सौदे के तौर-तरीकों पर बड़ी अदालत में चल रही बहस को विराम दिए जाने की जरूरत है। ठीक है सौदे में जिनते हाथ मलाई लगी है उन्हें देश के संविधान के मुताबिक दंड मिलना चाहिए पर ऐसे सौदों को लेकर अब तक इतिहास यही बताता है कि सियासत तो खूब हुई लेकिन कसी को जसा नहीं मिली। ऐसा ही हश्र-इस बार भी ना हो। क्योंकि जिस तरह सियासी नजरिये से राफेल सौदे को लेकर आरोप-प्रत्यारोप होते रहे हैं, वे कहीं ना कहीं जाने-अनजाने राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ी जरूरतों को भी ठेस पहुचाते हैं।

इसलिए यह सियासी और कानूनी लडाई सौदें को रद्द किये जाने के मुकाम तक नहीं पहुंचनी चाहिए। जिस तरह मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, राफेल सौदे को लेकर पीएमओ को घेरते-घेरते उस स्थिति में पहुंच गये हैं कि राफेल सौदे को लेकर पीएमओ को घेरते-घेरते उस स्थिति में पहुंच गये हैं कि उन्हें सुरक्षा की दृष्टि से जरूरी एहतियात बरता जाना भी रास नहीं आ रहा है। साथ ही भी रेखांकित किया जाना जरूरी है कि गोपनीयता की आड़ में किसी को बचाने की कोशिश कामयाब नहीं होने गी जानी चाहिए।

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