राज्यपाल पद का दुरुपयोग स्थाई

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हाल ही में महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर मुझे जो कुछ देखने को मिला उससे दशको पहले सत्तारूढ़ दलो द्वारा अपनाई जाने वाली ऐसी ही हरकतो की यादहो आई। अचानक मुझे लगने लगा कि हमारी केंद्र सरकार आज वहीं सब कुछ कर रही है जोकि कभी हमारी कांग्रेसी सरकारें व इंदिरा गांधी किया करती थीं।

इस संबंध में मुझे आंध्रप्रदेश की एनटी रामाराव की तेलुगू देशम सरकार बर्खास्त करने की घटना याद आ गई। इस राज्य में रामाराव ने सत्ता में आकर वहां से कांग्रेस का लगभग सफाया ही कर दिया था। जब वे अपने दिल का ईलाज करवाने अमेरिका गए थे तब उनके मंत्रिमंडल के एक एक साथी ए भास्कर राव के जरिए कांग्रेस ने उनका तख्ता पलट दिया।

इस काम में वहां के तत्कालीन राज्यपाल रामलाल ने अहम भूमिका अदा की जोकि पहले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इसके पहले इसी तरह से जम्मू कश्मीर व सिक्किम की भी चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त किया गया। ए भास्कर राव ने कुछ विरोधी विधायको व कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का दावा किया।

इस पर देशभर में जोरदार हंगामा हुआ। एनटी रामाराव अपने 161 विधायको के साथ राष्ट्रपति से मिलने दिल्ली आ गए। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने उनसे मुलाकात की। मुझे आज भी याद है कि आपरेशन के कारण कमजोर हुए रामाराव पहिए वाली कुर्सी पर बैठकर पीली कमीज पहने व अपने पहचान पत्र गले में लटकाए उनसे मिलने के लिए विजय चौक से राष्ट्रपति भवन तक गए थे।

उस घटना को लेकर देशव्यापी जबरदस्त हंगामा हुआ और उसमें विपक्षी एकता की नींव पड़ी। अटल बिहारी वाजपेयी जोकि भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष होते थे को लेकर कांग्रस (एस) के शरद पवार कांग्रेस फार द डेमोक्रेसी के हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर चरण सिंह तक एक ही मंच पर आकर इंदिरा गांधी की मनमानी का विरोध करने लगे।

माकपा ने तो इंदिरा गांधी के दिवंगत पति फिरोज गांधी के उस बयान का उल्लेख कर डाला जिसमें उन्होंने केरल सरकार की बर्खास्तगी को लोकतंत्र की हत्या करार दिया था। लंबी उठा पठक के बाद रामाराव पुनः सत्ता में आए व रामलाल को आंधप्रदेश से वापस बुलवाना पड़ा।

महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भले ही सरकार बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाने की रिपोर्ट न भेजी हो मगर जिस तरह उन्होंने अचानक बड़ी सुबह बुलाकार देवेंद्र फडनवीस व अजीत पवार को मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवायी उससे यह संदेश गया कि वे केंद्र के इशारे पर ही काम कर रहे थे। खैर गनीमत यह रही कि बहुमत जुटा पाने में नाकाम रहे इन नेताओं ने सरकार बना सकने में असमर्थता जता दी।

हालांकि कांग्रेस के शासनकाल में इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के कमलापति त्रिपाठी को उत्तरप्रदेश सरकार से बर्खास्त कर उनकी जगह हेमवती नंदन बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनवाने के लिए अनुच्छेद 356 का सहारा लेते हुए तब के पीएसी आंदोलन के जिम्मेदार ठहरयाया था। पहले इस तरह की घटनाएं आम होती थी। हालांकि यह सिलसिला काफी देर तक जारी रहा व 1997 में बाबरी मसजिद ध्वंस के बाद तत्कालीन प्रमं नरसिंहराव सरकार ने उत्तरप्रदेश, राजस्थान व हिमाचल प्रदेश की भाजपा सरकारें बर्खास्त कर दी थी।

आजादी के बाद से ही हमारे देश में सत्ता पर काबिज नेताओं में यह पूरा विश्वास रहा है कि भले ही देश एक गणतंत्र बन गया हो मगर केंद्र में सत्ता पर काबिज नेताओं के हाथ में राज्यों के शासन की लगाम भी रहनी चाहिए। इसीलिए उन्होंने संविधान में अनुच्छेद356 की व्यवस्था की। किस तरह केंद्र सरकार अपने प्रतिनिधि (चंपू) राज्यपाल की यह रिपोर्ट मिलनन के बाद कि राज्य की सरकार संविधान के अनुरुप काम नहीं कर पा रही है वहां की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर वहां अपना (शासन) राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। वह फिर राज्यपाल के सहारे राज चलाती है।

हालांकि संविधान के निर्माता डा. भीमराव आंबेडकर ने शुरुआत में ही इसके दुपयोग की आशंका व्यक्त की थी। आंकड़े बताते हैं कि 1971 से 1984 के बीच अनुच्छेद 356 का कांग्रेस व जनता दल दोनों की ही सरकारों ने जमकर 59 बार दुरुपयोग किया। हालांकि इसके दुरुपयोग की शुरुआत तो पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने 195५में केरल की बहुमत वाली वामपंथी सरकार को बर्खास्त करने के लिए कर दी थी।

बाद में पंजाब में गोपीचंद भार्गव व भीमसेन सच्चर से लेकर प्रताप सिंह कैरो तक की सरकारों को बर्खास्त करने के लिए इसका दुरुपयोग किया गया। जब 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने कई राज्यों में बहुमत खो दिया तो तत्कालीन केंद्र की इंदिरा गांधी सरकार ने राज्यों की संविद सरकारों को बर्खास्त करने के लिए अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग किया।

इंदिरा गांधी ने तो आपाकालल के दौरान 38 वां संविधान संशोधन करके राष्ट्रपति शासन की न्यायायिक जांच करवाने पर ही रोक लगा दी थी। हालांकि सत्ता में आने पर तत्कालीन जनता सरकार ने संशोधन के जरिए इस रोक को हटाते हुए डा. अम्बेडकर द्वारा सुझाए 356 को पुनः लागू कर दिया। हालांकि 1980 के दशक में इसे लेकर टकराव बढ़ने लगा था। देश भर के क्षेत्रीय दलों के सत्ता में आने की घटनाओं ने जोर पकड़ा जबकि केंद्र में राष्ट्रीय दल ही सत्ता में आ पाते थे।

जब केंद्र व राज्य सरकारों के बीच टकराव बढ़ा तो सत्तारुढ़ राष्ट्रीय दल राज्य सरकारों के बर्खास्त करने के लिए अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करने लगी। इसमें बदलाव तब आया जब 1994 में सुप्रीम कोर्ट ने एस आर बोम्मई मामले में अनुच्छेद 356 के बारे में फैसला सुनाते हुए कहा कि बहुमत किसके साथ है। इसकी परीक्षा सदन के अंदर ही की जानी चाहिए। उससे इसके दुरुपयोग पर रोक लगी। हालांकि उत्तरप्रदेश में एक दिन की जगदंबिका पाल सरकार के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी द्वारा शपथ दिलायी जाने की घटनाएं घटती रहीं।

राज्यपाल की हालात तो बचपन में सुनी कहानी के उस पात्र भेड़िए जैसी हो गई थी जो कि पहाड़ पर ऊपर झरने पर खड़ा हुआ पानी पीते हुए नीचे अपना झूठा पानी पी रहे मेमने पर यह आरोप लगाता था कि तूने मेरा पानी झूठा कर दिया है। जब मेमना कहता कि मै तो नीचे खड़ा हूं। मैं झूठा कैसे कर सकता हूं तो वह कहता कि अगर तूने नहीं तो तेरे बाप ने मेरा पानी झूठा कर दिया होगा और फिर मेमने को मार कर खा जाता है।

महाराष्ट्र के प्रकरण के दौरान भी लोगों में वही प्रतिक्रिया देखने को मिली जो कि मैंने रामाराव सरकार को बर्खास्त किए जाने के बाद देखी थी। व आज तक कांग्रेस की अपनी इन हरकतों जिनमें जनता पार्टी की चरण सिंह सरकार, चंद्रशेखर सरकार व गुजराल सरकार को बर्खास्त किए जाने के कारण लोगों की उसके प्रति नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ी है। भाजपा सरकार भी उसी राह पर चल रही है। पहले सारे दल कांग्रेस और इंदिरा गांधी के विरोध में एकजुट होते थे। आज यही काम भाजपा व मोदी के विरोध में हो रहा है।

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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