राजस्थान में मोटे तौर पर शांति बहाल हो गई है। विवाद के जितने भी मुद्दे थे सब क्या तो सुलझ गए हैं क्या उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। पर भाजपा के नेता मान रहे हैं कि यह पूरा मामला पार्टी के लिए एक झटके की तरह है। मध्य प्रदेश में ऑपरेशन लोट्स की सफलता से जो माहौल बना था वह इस ऑपरेशन के विफल होने से बिगड़ गया है। भाजपा के एक जानकार नेता का कहना है कि पिछले साल के अंत में पार्टी को महाराष्ट्र में झटका लगा था। उसका ऑपरेशन लोट्स विफल हो गया था। मुयमंत्री और उप मुख्यमंत्री की शपथ कराने के बावजूद पार्टी सरकार नहीं बना सकी थी और देवेंद्र फडऩवीस को इस्तीफा देना पड़ा था। मध्य प्रदेश के सफल अभियान के जरिए भाजपा ने महाराष्ट्र के मामले पर पर्दा डाल दिया था। एक बार फिर यह कहा जाने लगा था कि भाजपा जब, जहां चाहे सरकार बना सकती थी। मध्य प्रदेश के सफल अभियान के बाद राजस्थान और झारखंड के साथ साथ फिर से महाराष्ट्र में उलटफेर की चर्चा होने लगी थी। पर राजस्थान में ऑपरेशन असफल होने के बाद सारी चर्चाएं थम गई हैं।
भाजपा के नेता भले कह रहे हों कि यह कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा था और भाजपा का उससे कोई लेना-देना नहीं था पर हकीकत लोगों को पता चल गई है। लोग अपने आप पूछ रहे हैं कि अगर कांग्रेस का झगड़ा था तो सचिन पायलट उनके करीबी विधायकों की हरियाणा में भाजपा नेताओं ने क्यों मेजबानी की? राजस्थान पुलिस को हरियाणा पुलिस ने विधायकों से मिलने से क्यों रोका? राज्यपाल ने विधानसभा का सत्र बुलाने के सरकार को प्रस्तावों को क्यों ठुकराया? भाजपा के नेता बसपा विधायकों के मामले में अदालत में क्यों गए? अदालत में पायलट के लिए भाजपा के करीबी माने जाने वाले वकील यों खड़े हुए? इन सवालों के अलावा विधायकों की खरीद-फरोत में भाजपा नेताओं के शामिल होने का संकेत देने वाले ऑडियो टेप भी हैं, जिनकी जांच चल रही है। झारखंड को ही ले लीजिए-राजस्थान में जब जुलाई में सियासी उठापटक शुरू हुई उससे पहले और पूरे जुलाई के महीने में झारखंड को लेकर बड़ी हलचल रही। कांग्रेस के विधायकों ने नाराजगी जताई। सरकार का विरोध किया। कांग्रेस के अदंर टूट की नौबत आ गई।
पार्टी के विधायक और राज्यसभा सांसद दिल्ली आकर अहमद पटेल से मिले। रांची में ऐसा लग रहा था कि सरकार किसी भी समय गिर सकती है। ऑपरेशन लोट्स शुरू हो जाने की खबरें आने लगी थी। कहा जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी में बड़ी टूट हो रही है और जेएमएम के भी कुछ विधायक इस्तीफा दे सकते हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इनर सर्किल में भारी उठापटक मची थी। लोग एक दूसरे के खिलाफ खबरें प्लांट कर रहे थे। कई राजनीतिक जानकार और पार्टियों के नेता भी मान रहे थे कि अगर राजस्थान में कांग्रेस की सरकार जाती है तो बिहार चुनाव खत्म होने के तुरंत बाद झारखंड में भी कांग्रेस-जेएमएम की साझा सरकार गिर जाएगी। राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बची और उधर रांची में सरकार गिरने की सारी चर्चाएं बंद हो गईं। कांग्रेस ने भी झगड़ा सुलझा लिया है। हालांकि जो चार नेता मंत्री हैं उनके अलावा बाकी सारे लोग नाराज ही हैं। सबका कहना है कि सरकार में उनकी नहीं सुनी जा रही है। पर इससे सरकार के ऊपर खतरा पैदा नहीं होता है। अब कहा जा रहा है कि राज्य की दो विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के बाद कुछ होगा। लेकिन फिलहाल राजस्थान के घटनाक्रम का बड़ा मनोवैज्ञानिक असर झारखंड में हुआ है।