राजनीति बिगाड़ देती है प्याज

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भारत में प्याज के दाम एक बार फिर आसमान छू रहे हैं। उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में तो इनकी कीमत 80 रुपये किलोग्राम तक पहुंच गई है। अभी कुछ महीनों पहले ही इसका दाम महज 25 रुपये किलो था। भारत में बहुत सो लोगों के लिए प्याज़ के मौजूदा दाम बहुत ज़्यादा हैं। इसलिए विरोध की आशंका को भांपते हुए सरकार ने यह सोचकर प्याज़ के निर्यात पर रोक लगा दी है कि इससे घरेलू बाज़ार में सप्लाई बढ़ेगी और दाम में कमी आएगी। सरकार का यह कदम किसानों और निर्यातकों को रास नहीं आया। उन्होंने महाराष्ट्र के नासिक में थोक बाज़ार में प्रदर्शन किया। भारत में सबसे ज़्यादा प्याज़ की पैदावार नासिक में ही होती है। महाराष्ट्र में अगले कुछ हफ्तों में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में प्याज़ के दामों पर होने वाली बहस के तेज़ होने की आशंका है। हालांकि ये पहली बार नहीं है जब प्याज़ की क़ीमतों पर भारत में बहस हो रही है। तीख़े स्वाद वाली यह सब्ज़ी कई बार भारतीय राजनीति में होने का केंद्र बन जाती है। अतीत में भी प्याज़ के दाम चुनावों को प्रभावित करने के लिए जाने जाते हैं।

वर्ष 1980 में भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दोबारा सत्ता दिलाने में प्याज़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस वक्त इंदिरा गांधी ने प्याज़ की बढ़ी हुई क़ीमतों को तत्कालीन सरकार की नाकामी के तौर पर पेश किया था। 1980 में जनता दल गठबंधन टूटने के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी को जीत मिली थी। 1998 में केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में भारी नुक़सान हुआ था और इसकी वजह प्याज़ की बढ़ी हुई क़ीमतों को बताया गया। तब कांग्रेस की शीला दीक्षित ने बीजेपी की सुषमा स्वराज को मात दी थी। इसके बाद के वर्षों में भी प्याज़ राजनीतिक सुर्खियों में छाया रहा। फिर चाहे इसके दाम नाटकीय रूप से घटे हों या बढ़ें हों। साल 2006 में तत्कालीन कृषि मंत्री और महाराष्ट्र के मशहूर नेता शरद पवार को उस वक़्त किसानों के ग़ुस्से का सामना करना पड़ा जब वो नासिक में भाषण दे रहे थे। किसानों ने उन पर प्याज़ भी फेंके थे। साल 2010 में भी प्याज़ के क़ीमतों में तेज़ी से उछाल आई थी। इसके विरोध में बीजेपी ने दिल्ली में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन कि या था।

उस वक्त हालात को काबू में करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने प्याज़ के निर्यात पर रोक लगा दी थी और आयात शुल्क में कटौती की थी। इसके उलट साल 2017- 18 में नाशिक में प्याज़ का थोक मूल्य दो रुपये प्रति किलोग्राम तक गिर गया। नासिक भारत में प्याज़ के सबसे बड़े थोक बाज़ारों में से एक है। भारत में प्याज़ गऱीबों और आम लोगों के लिए रोज़मर्रा के खाने का हिस्सा है. कई भारतीय व्यंजनों में प्याज़ डालना ज़रूरी होता है, ख़ासक र उत्तर भारत के राज्यों में। प्याज़ मसालों को नर्म बनाता है और सब्जिय़ों में एक ख़ास तरह का ज़ायका लाती है। कच्चे और उबले प्याज़ को खाने के साथ सलाद के तौर पर भी खाया जाता है। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पूरा भारत प्याज़ पर ही जीता है। दक्षिण और पूर्वी भारत के हिस्सों में इसका इस्तेमाल उतना ज़्यादा प्रचलित नहीं है। कई भारतीय समुदाय प्याज़ बिल्कुल नहीं खाते तो कुछ लोग किसी ख़ास अवधि में प्याज़ नहीं खाते। इसके बावजूद प्याज़ का भारतीय खाने में अपनी एक जगह है।

व्यंजनों के इतिहास की समझने वाली डॉक्टर मोहसीना मुकदम का कहना है कि प्याज़ महज एक सब्ज़ी नहीं बल्कि संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। वो कहती हैं, प्याज़ प्राचीन काल से ही भारतीय उपमहाद्वीप में इस्तेमाल होता रहा है। ज़्यादातर आम लोग और गऱीब लोगों के लिए ये उनके ख़ाने का ज़रूरी हिस्सा है। महाराष्ट्र में अगर किसी के घर में सब्ज़ी नहीं है या सब्ज़ी खरीदने के पैसे नहीं हैं तो वो कांदा-भाकरी (प्याज-रोटी) खा लेते हैं। यहां आपको प्याज से जुड़े कई मुहावरे भी सुनने को मिलेंगे। इतनी ही नहीं, ज्यादातर अरेंज्ड शादियों में जब लड़के और लड़की के परिवार पहली बार मिलते हैं तो उम्मीद की जाती है कि लड़की कांदे-पोहे (प्याज वाला पोहे) परोसे। आम तौर पर माना जाता है कि प्याज़ महंगा नहीं होगा। इसीलिए जब भी प्याज़ के दाम बढ़ते हैं, इसे महंगाई बढऩे के संकेत के तौर पर देखा जाता है।

ख़ासकर उत्तर भारत में इस पर ख़ूब बहस होती है। जनसांख्यीकी की वजह से उत्त भारत के राज्य राजनीति के केंद्र भी हैं और इसी उत्तर भारत में प्याज़ की मांग हमेशा बनी रहती है। इसलिए जब भी प्याज़ के दाम बढ़ते हैं इसका असर तुरंत ही बाज़ारों और दिल्ली (केंद्र) में दिखने लगता है। पॉलिसी रिसर्चर और एक्टिविस्च मिलिंद मुरुगकर कहते हैं, उत्तर भारत के लोगों में सत्ता और सरकार को प्रभावित करने की ख़ासी क्षमता है। भारत के बाकी हिस्सों में महंगाई को लेकर उतना शोर-शराबा नहीं होता। मगर जैसे ही उत्तर भारत में महंगाई मुद्दा बनने लगती है, सरकार दबाव में आ जाती है। वहीं दूसरी ओर, अगर प्याज़ के दाम ज़्यादा ही गिरने लगते हैं तो इसका सीधा असर प्याज़ पैदा करने वाले राज्यों (महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात) के किसानों और उनकी आमदनी पर पड़ता है।

जान्हवी मुले
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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