ये है जीत की वजह

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वर्ष 1994 में प्लेग के खतरे के बाद से सूरत पर सफाई का जुनून सवार हो गया वह निरंतर भारत के सबसे साफ शहरों की फेहरिस्त में अव्वल जगह बनाता रहा। फिर लापरवाही घर कर गई और 2016 में वह तीसरे स्थान पर खिसक गया और फिर एक साल बाद 14वें स्थान पर। सूरत नगर निगम (एसएमसी) ने शहर की साफ छवि को फिर से हासिल करने का फैसला किया। उसने निर्माण और विध्वंस के मलबे, प्लास्टिक, कपड़ा और इलेक्ट्रॉनिक —हर तरह के कूड़े को अलग-अलग इकट्ठा करने और उसे शोधित करने की एक बहुस्तरीय प्रणाली लागू की। औद्योगिक व वाणिज्यिक कूड़े को घर-घर जाकर इकट्ठा करने की व्यवस्था की गई। रोजाना सूरत में 12 लाख घरों से सवेरे 7 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक और करीब दो लाख से ज्यादा वाणिज्यिक इमारतों से सवेरे 11 बजे से लेकर 4 बजे तक कूड़ा इकट्ठा किया जाता रहा। इसके लिए घर-घर जाकर कूड़ा इकट्ठा करने वाले 550 से ज्यादा वाहनों की सेवा ली जाती है, जिनमें गीले, सूखे और घातक कूड़े को इकट्ठा करने के लिए अलग-अलग हिस्से बने होते हैं।

शहर के सभी सेनिटेशन वार्ड में बायोमीट्रिक हाजिरी प्रणाली लागू है। एसएमसी के पास 22 सडक़ साफ करने वाली मशीनें हैं। शहर में रोजाना 1,830 मीट्रिक टन कूड़ा जमा होता है। इकट्ठा करने और अलग-अलग करने के बाद अलग- अलग तरह के कूड़े को फिर से इस्तेमाल में लाने के लिए रिसाइकिल किया जाता है। निर्माण के मलबे का इस्तेमाल ईंटें बनाने में, कपड़े के कूड़े का इस्तेमाल कालीन और पायदान बनाने और प्लास्टिक के कूड़े का इस्तेमाल दाने बनाने में किया जाता है। शहर में तीन जगहों पर केंचुओं से कंपोस्ट तैयार करने की सुविधाएं मौजूद हैं। एक बायोगैस संयंत्र है जिसमें रोजाना 50 मीट्रिक टन ऑर्गेनिक कूड़ा इस्तेमाल किया जाता है। बायोमेडिकल कूड़े के संग्रहण, परिशोधन व निस्तारण के काम को बीओओटी (बिल्ट, ओन, ऑपरेट, ट्रांसफर) आधार पर ठेके पर दिया गया है। अब सवाल ये उठता है कि अगर सूरत ये काम कर सकता है तो फिर मेरठ, गाजियाबाद, लखनऊ , कानपुर या फिर यूपी के सारे शहर इस तरह से आगे क्यों नहीं बढ़ सकते? अगर गांधी जी ने कहा था कि गंदगी ही गरीबी की वजह है तो फिर इस गंदगी से हमारे ये शहर क्यों नहीं लड़ते?

किसी से सीखा भी तो जा सकता है। इन्हें ही देख लीजिए..इनसे ही सीख लीजिए..भारत में सूखा कचरा प्रबंधन व्यवसाय में एक अग्रणी नाम संदीप पटेल हैं। चार शहरों—अहमदाबाद, इंदौर, पुणे और जामनगर में प्रति दिन 560 मीट्रिक टन सूखे कचरे का प्रसंस्करण करके उससे कागज, प्लास्टिक पाइप, घरेलू सामान, कचरा बैग, धातु और सीमेंट आदि उद्योगों के लिए कच्चा माल बनाते हैं। कई अन्य परियोजनाएं जो शुरू होने वाली हैं उनमें बृहन्मुंबई महानगरपालिका के साथ 600 मीट्रिक टन प्रति दिन के सूखे कचरे के प्रबंधन के लिए एक समझौता प्रमुख है। इसके अलावा, पटेल की नेप्रा रिसोर्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड का वर्तमान में टर्नओवर 110 करोड़ रुपए है। उसके अगले तीन साल में 1,000 करोड़ रुपए के आंकड़े को छूने की उम्मीद है। पटेल की विशेषज्ञता कूड़ा बीनने वालों और सूखे कचरे की छंटाई करने वाली असंगठित जनशक्ति के प्रबंधन, बुनियादी ढांचे के निर्माण की है। उनके दो साझेदारों में से एक ध्रूमिन पटेल क चरा संग्रह और संचालन का प्रबंधन करते हैं, जबकि दूसरे रवि पटेल बिक्री और व्यावसायिक गतिविधियां देखते हैं। यानी ये कचरा समेटते भी हैं और साथ ही कमाई भी करते हैं तो फिर कोई पटेल जैसा काम यूपी या उत्तराखंड में क्यों नहीं क ता?

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