ये तो हद है : मोदी का अवतारी रूप

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नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ-बदरीनाथ में भक्ति काजो शो किया और टीवी चैनलो नेउसका जैसा अवतारी रूप प्रदर्शित किया उसने मुझमें जुगुप्सा पैदा की।मेरी इंद्रियां यह सोचते हुए शर्मसार थी कि हम हिंदू क्या इतने मूर्ख हैं जो नरेंद्र मोदी हर पल, हर क्षण हिंदुओं को मूर्ख बनाते-बनाते अब यह पराकाष्ठा कर बैठे जो शिव नगरी बनारस के मतदाताओं को लुभाने के लिए टीवी चैनलों से अपने को शिव दिखला दे रहे हैं! केदारनाथ-बदरीनाथ में नरेंद्र मोदी ने जो किया वह आस्था नहीं थी, बल्कि हम हिंदुओं के इष्ट शिव को बेचना था।

हां, जनवरी से ले कर 19 मई के एक्जिट पोल की घटनाओं पर सरसरी नजर डालें तो वोट के लिए दस तरह के झूठ, मूर्ख बनाने के प्रकल्प, कुंभ स्नान से लेकर केदारनाथ में अपने को हर, हर मोदी बनाना यह प्रमाणित करता हैं कि हिंदू को कितनी तरह से मूर्ख बनाना संभव है! दुनिया की यह कैसी कौम है, जिसका एक कथित नेता उसे इतना जाहिल-काहिल-मूर्ख समझता है जो वह वोट के लिए केदारनाथ की नकली गुफा में भगवान बन अपने को लाइव इस भरोसे से बनाता है कि इसकी वाह में उसके लिए वोट पड़ेंगे। उफ! कैसा शर्मनाक अनुभव!

मैं क्योंकि सनातनी हिंदू हूं, आस्थावान हूं, तर्क, बुद्धि, शास्त्रार्थ की परंपरा में विश्वास रखता हूं इसलिए मेरा रोम-रोम यह सोचते हुए व्यथित है कि झूठ, पाखंड, अहंकार ने सवा सौ करोड़ लोगों के लोकतंत्र और उसकी चुनावी प्रक्रिया की पांच महिनों में कैसी ऐसी की तैसी हुई है। पूरे पांच साल झूठ चला। देश की बरबादी हुई और जब नरेंद्र मोदी के लिए वोट मांगने का वक्त आया तो पांच साल के जन अनुभव। पर बात नहीं, बल्कि कुंभ स्नान, सफाईकर्मियों के पांव धोने, वायुसैनिकों के नाम का कटोरा ले कर वोट मांगने से केदारनाथ में फोटोशूट से वोटों को लुभाया और साथ में हुंकारा यह भीकि यह पानीपत की तीसरी लड़ाई! ऊपर से पहले दिन से लगातार यह झूठ भी कि हम तो तीन सौ सीट जीत रहे हैं। तीन सौ सीटों का झूठा हल्ला बना हर दिन, हर पल हर, हर मोदी का तूफान ऐसा बना डाला कि लोकतंत्र के चुनावी पर्व की सहज-नैसर्गिक प्रक्रियाको तूफान बनाम दीये की लड़ाईमें कन्वर्ट किया।

और 19 मई के एक्जिट पोलने अब बताया कि तूफान जीता। सो कई लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि ऐसा कैसे हुआ? मैंने समझाया कि पांच साल से जब सारा मीडिया, टीवी चैनल नरेंद्र मोदी का तूफान लाए हुए हैं तो ये एक्जिट पोल में कैसे बता सकते हैं कि मोदी हार रहे हैं। पांच साल मोदी राग और 19 मई की एक शाम मोदी हार गए की बात भला कैसे हो सकती है? एक्जिट पोल को देखना ही क्यों चाहिए था?

इसलिए अपनी अपील है, आग्रह है कि हर दीया, हर मौन मतदाता झूठ के तूफान और हल्ले की निरंतरता के बीच धैर्य और संकल्प साधे रखे। तूफान बनाम दीये, मौन बनाम मुखर याकि साइलेंट बनाम वोकल, झूठ बनाम सत्य की लड़ाई में नरेंद्र मोदी अपना तूफान ला भी दें तो गारंटी तहस-नहस व बरबादी की है। इस धुव्र सत्य को याद रखें कि 2014 की छप्पर फाड़ जीत भी नरेंद्र मोदी को वाजपेयी की पुण्यता का पासंग नहीं दिला पाई, भारत शाइनिंग नहीं हुआ तो झूठ के नवनिर्मित तूफान का हस्र आगे और बुरा होगा। हम मौन लोगों को, देशज सनातनी दीयों को अपनी सत्यता पर अडिग रहना है। मुझे 19 मई की ही रात किसी ने कहा – मोदी के खिलाफ वोट देने वाले जातीय-धर्म समूह,मुसलमान-ईसाई-दलित-आदिवासी-नेहरू के आइडिया ऑफ इंडिया, सेकुलर, संघ-भाजपा विरोधी लोगों में अभी क्या सोचा जा रहा होगा? इस चुनाव को आखिरी चुनाव मान जा रहा होगा। लोकतंत्र और वोट की ताकत पर से विश्वास खत्म हो रहा होगा।

ऐसा नहीं सोचा जाना चाहिए। न सोचें कि चुनाव नहीं, बल्कि ईवीएम की धांधली, फरेब और झूठ से लोकतंत्र का खात्मा है। शोर निश्चित ही लोकतंत्र को लिंच कर दे रहा है। लोकतंत्र के प्रति आस्था, विश्वास को डिगा दे रहा है। सही बात है कि लोकतंत्र विश्वास का नाम है और इसका सत्व-तत्व तभी बचा रह सकता है जब जीत-हार वाले दोनों पक्ष, सभी स्टेकहोल्डरों में भरोसा रहे किइसमें सभी की भागीदारी है। लेकिन दुर्भाग्य जो2019 का चुनाव मोदी-शाह के पानीपत की तीसरी लड़ाईके आव्हान के बीच है। इसके ही खतरे आगे का विनाश हैं। यदि 23 मई को मोदी-शाह जीते तो पानीपत की तीसरी लड़ाई का जश्न यह भाव लिए हुए होगा कि जो हारे हैं वे देशद्रोही हैं, पाकिस्तानी हैं, गद्दार हैं, मुसलमान हैं और इन गद्दारों को ठीक करना है, गद्दारों को, विरोधियों को कुचल देना है। अमित शाह ने जब कार्यकर्ताओं-समर्थकों के आगे पानीपत की तीसरी लड़ाई का आह्वान किया था तो जीत-हार का लोकतांत्रिक मंतव्य नहीं था, बल्कि दुश्मन से लड़ कर उन्हें कुचलने का था। तभी मोदी-शाह ने चुनाव को चुनाव की तरह नहीं, लोकतंत्र की तरह नहीं, बल्कि उस ऐतिहासिक जंग की तरह लड़ा, जिसमें हर वह काम किया, जिसे जंग में जायज (झूठ, छल) माना जाता है।

तभी अपना मानना था, है और रहेगा कि यह चुनाव भारत की नियति वाला है। यदि भारत की और खास कर हम सनातनी हिंदुओं की नियति लोकतंत्र से गृहयुद्ध, सीरियाई त्रासदी वाले सफर का है तो वह इस चुनाव के बाद शुरू होगा। उसे कोई नहीं रोक सकता। जनवरी से ले कर अब तक मोदी-शाह ने चुनाव जीतने के लिए जितने जैसे काम किए है वे सब इस जिद्द से है कि हमें जीतना ही है। पानीपत की तीसरी लड़ाई के उद्घोष के साथ पहले दिन से अमित शाह का 300 सीट जीतने का आंकड़ा था।इस आंकड़े का देश में नैरेटिवबना, प्रचार बना कि मोदी तो जीतेंगे। जिधर देखो उधर सुनो मोदी-मोदी! मैं मोदी-मोदी के शोर में यह हकीकत लगातार मानता रहा हूं कि भाजपा-मोदी का वोट याकि 17-19 करोड़ वोट मिलना तयशुदा है। 125 से 150 सीटें भाजपा की अब स्थायी हैं। लेकिन फिर मेरा यह भी तर्क है कि दूसरी तरफ मुसलमान वोटों की हकीकत स्थायी है तो उत्तरप्रदेश में सपा-बसपा एलायंस के 2017 की आंधी के वक्त का भी46 प्रतिशत (उसके मुकाबले भाजपा के 40 प्रतिशत) वोट लिए हुए होने का तथ्य भी अमिट है। वे वोट कतई मोदी को ट्रांसफर नहीं हो सकते हैं। मैं नहीं मानता इस दलील को कि मुसलमान महिलाएं या मायावती और अखिलेश के2014 व 2017के पक्के वोट इस चुनाव में मोदी को डल गए होंगे।

बावजूद इसके19 मई के एग्जिट पोल ऐसा बता रहे हैं तो बताएं। अपने को इन टीवी चैनलों और सर्वे करने वाली संस्थाओं पर इसलिए विश्वास नहीं है क्योंकि पांच साल जिन टीवी चैनलों ने मोदी-मोदी का हल्ला कर चौबीसों घंटे उनका नैरेटिव बनाए रखा तो 19 मई की शाम को भी ये वहीं बोलेंगे, जो नरेंद्र मोदी-अमित शाह चाहेंगे। ये चैनल या इनकी सर्वे टीम कैसे उन मौन मतदाताओं की राय जान सकते हैं, जिन्होंने खौफ में मौन रहने की कसम खाई हुई है। जिसे नरेंद्र मोदी को हटाना है वहमुसलमान, दलित, आदिवासी, सेकुलर-तानाशाही विरोधी जमात मोदी के खिलाफ वोट देने की बात सर्वे टीम से कतई नहीं बोल सकती है। पांच सालों से जब नरेंद्र मोदी ने साबित किया हुआ है कि हिंदू गुलामी, डर और भय का जिंस लिए हुए हैं तो खौफ में मौन रहने वाला वोटर एक्जिट पोल करने वाले के आगे बोल ही नहीं सकता है। इसलिए अपनी थीसिस है कि जितने एक्जिट पोल आए हैं वे मोदी, मोदी का हल्ला करने वालों के बीच के सर्वे हैं। मौन मतदाताओं और मोदी विरोधी वोटों के बीच हुए ये एक्जिट सर्वे नहीं हैं।

आप नहीं मानते? न मानें। अपन गुलाम-मूर्खों के नक्कारखाने, तूफान के बीच दीया लिए सनातनी हिंदू हैं। सनातनी हिंदू का धर्म है और आदि हिंदू के बंदों का इतिहास है कि आतातायी ने दीवाल में सिर चुनवाना शुरू किया तब भी बंदे ने इस बात को याद रखा – यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌।

और मुझे उम्मीद है कि 23 मई को मौन-संकल्पवानों का अवतार रूप नतीजों से प्रकट होगा!

हरिशंकर व्यास लिंच
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं

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