ये तो लापरवाही की हद है !

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पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में कहा था कि ‘भगवान ने उनको ऐसा बनाया ही है कि वे छोटा सोच ही नहीं सकते हैं, जब सोचेंगे बड़ा सोचेंगे’। अब उनकी सरकार कोरोना वायरस से निपटने के लिए वैसीन खरीदने जा रही है तो उनके स्वास्थ्य मंत्री ने बताया है कि भारत ने वैसीन का 50 लाख डोज खरीदने का फैसला किया है और उसकी तैयारी कर रही है। सोचें, कितना बड़ा सोचा है सरकार ने, 50 लाख डोज का ऑर्डर दिया जाएगा! पीएम केयर्स में मिले दान से 50 हजार वेंटिलेटर खरीदने का भी ऑर्डर देने की खबर आई थी! भारत की आबादी 138 करोड़ है और वैसीन की पहली खेप का ऑर्डर दिया जा रहा है 50 लाख का! अब दुनिया के दूसरे देशों को देखें, जिनके नेता बहुत बड़ा सोचने का दावा नहीं करते हैं। अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पांच अलग-अलग कंपनियों से अब तक 50 करोड़ से ज्यादा डोज खरीदने का सौदा कर लिया है। ऑसफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिल कर ब्रिटिश-स्वीडिश कंपनी एस्ट्रोजेनेका जो वैसीन तैयार कर रही है उन्होंने सबसे पहले उसकी खरीद का सौदा किया था।

वे एस्ट्रोजेनेका से 30 करोड़ डोज खरीद रहे हैं। उन्होंने अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना ने दस करोड़ डोज खरीदने का सौदा किया है। ऑस्ट्रेलिया की कंपनी नोवावैस के साथ भी उन्होंने दस करोड़ डोज का सौदा किया है। इसके अलावा सैनोफी और ग्लैसो स्मिथ लाइन के साथ भी उन्होंने सौदा किया है। अमेरिका वैसीन की और डोज का सौदा करने की तैयारी में है। वह इतनी कंपनियों से इसलिए सौदा कर रहा है ताकि जिसकी वैसीन पहले आए वह सबसे पहले उसे मिले। सोचें, अमेरिका में अब हर दिन भारत से कम केसेज आ रहे हैं और उसकी आबादी 33 करोड़ है। पर उसने 50 करोड़ से ज्यादा डोज का ऑर्डर दे दिया है। इसी तरह ब्रिटेन ने एस्ट्रोजेनेका से दस करोड़ डोज खरीदने का ऑर्डर दे दिया है। ब्रिटेन की आबादी साढ़े छह करोड़ है और वह दस करोड़ डोज खरीद रहा है। ऐसा नहीं है कि अमेरिका ने इसके लिए कोई बहुत बड़ी रकम चुकाई है। मॉडेर्ना से उसकी डील करीब 13 हजार करोड़ रुपए की है।

करीब 13 हजार करोड़ रुपये में उसे दस करोड़ डोज मिलेगी। भारत में पीएम केयर्स में ही लोगों ने जितना चंदा दिया है उसमें वेंटिलेटर और प्रवासी मजदूरों की मदद में खर्च हुए तीन हजार करोड़ रुपये के बाद बचे हुए पैसे से पांच करोड़ से ज्यादा डोज खरीदी जा सकती है। भारत के लिए अच्छी बात यह है कि यहां सरकारी कंपनी है, जो वैसीन बना रही है। पर उसकी वैसीन अगले साल आएगी। अगर सरकार सचमुच लोगों और आर्थिकी की सेहत को लेकर चिंतित होती तो उन पांच कंपनियों से करार करती, जिनकी वैसीन सबसे पहले आने वाली है। वैसे भारत में कई जगह कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए सेरोलॉजिकल सर्वे किए जा रहे हैं। मुंबई में किया गया।

वहां की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती धारावी में संक्रमण का फैलाव चेक करने के लिए सिरो सर्वे हुआ और दिल्ली में दो बार सिरो सर्वे हो चुके। पहले सिरो सर्वे में दिल्ली के 23 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई थी। दूसरे सिरो सर्वे की रिपोर्ट में कहा गया है कि 29 फीसदी लोगों के शरीर में एंटीबॉडी मिली है। एंटीबॉडी मिलने का मतलब यह निकाला जा रहा है कि इतने लोगों को कोरोना का संक्रमण हो गया और ठीक भी हो गया। इनमे से ज्यादातर को पता ही नहीं चला। अगर मुंबई और दिल्ली के सिरो सर्वे पर भरोसा करें तो सहज ही यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि लॉकडाउन बुरी तरह से फेल हुआ। पर अफसोस की बात है कि सरकार और सारी एजेंसियां पूरी ताकत से लॉकडाउन को सफल ठहराने और कयुनिटी ट्रांसमिशन की खबरों को खारिज करने में लगी हैं।

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