मौसम को समझने की जरूरत

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सारे देश इस समय कोरोना वायरस की चिंता में है। तभी बेमौसम हो रही इस समय की बरसात को लेकर भी अगर चिंता जाहिर की जा रही है तो वह भी कोरोना वायरस से ही जुड़ी है। यह आम धारणा है कि तापमान बढऩे के साथ ही कोरोना का कहर समाप्त हो जाएगा। पर जबसे कोरोना का संक्रमण भारत में शुरू हुआ है तब से कई बार बारिश और बर्फबारी हो चुकी, जिसकी वजह से तापमान में बढ़ोतरी नहीं हो रही है और उलटे तापमान सामान्य से नीचे चला जा रहा है। अभी कहा जा रहा है कि 21 मार्च को एक बार फिर पश्चिमी विक्षोभ यानी वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से बारिश होगी। उसके बाद ही तापमान में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा सकती है। यह मौसम के मिजाज को कोरोना के नजरिए से समझने का एक पहलू है। पर यह विडंबना है कि जिस दिन कोरोना वायरस से भारत में दूसरी मौत की खबर आई थी उसी दिन अखबारों के पन्नों पर एक छोटी खबर छपी थी कि उत्तर प्रदेश में भारी बारिश से 28 लोगों की मौत हो गई।

इन दोनों खबरों के जिक्र का मकसद कोरोना और बारिश से होने वाली मौत की तुलना नहीं है, बल्कि सिर्फ यह बताना है कि मौसम के मिजाज को दूसरे पहलू से भी देखने की जरूरत है। यह दूसरा पहलू खेती-किसानी का है। आखिर इस समय मार्च के महीने के मध्य में और हिंदी कैलेंडर के हिसाब से चैत्र के महीने में इस तरह के पश्चिमी विक्षोभ और रूक-रूक कर हो रही बारिश, बर्फबारी ने जितनी चिंता कोरोना के संक्रमण की फैलाई है उससे ज्यादा चिंता देश के किसानों के मन में पैदा हुई है। यह समय रबी की फसल के कट कर खलिहान में पहुंचने का होता है। देश के ज्यादातर इलाकों में रबी की फसल तैयार हो चुकी है। गेहूं के अलावा तिलहन और दलहन की लगभग सारी फसलें इस समय तैयार हैं। उनमें बालियां आई हुई हैं और किसान उसके पकने के इंतजार में था। पर ऐन मौके पर बारिश ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। इस साल देश में बंपर रबी फसल की उम्मीद की जा रही थी। पर फरवरी के अंत से पश्चिमी विक्षोभ का एक चक्र शुरू हुआ, जो अब तक तीन बार बारिश करा चुका है।

मुश्किल यह है कि सिर्फ बारिश नहीं हो रही है, साथ में तेज हवा चल रही है और ओले भी गिर रहे हैं। इसकी वजह से फसल पकने में देरी हई और साथ ही तेज हवा की वजह से खड़ी फसल खेतों में गिर गई और ओलों से फसल की बालियां टूटीं। इसका नतीजा यह हुआ है कि गेहूं, सरसों, चना, मटर, मसूर, आलू आदि सबकी फसल को नुकसान हुआ। देश के ऐसे इलाकों में जहां धान की फसल जल्दी कट जाती है वहां किसानों ने रबी की फसल जल्दी लगाई थी। उनको सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उनकी और मुश्किल यह है कि अगर एक बार और बारिश हो जाती है तो खेतों में पानी जम जाएगा क्योंकि तीन बार की बारिश की वजह से जमीन में नमी है। और अगर पानी जमा तो फसल की बालियां खोखली हो जाएंगी। यानी नुकसान और बढ़ जाएगा। बिहार, उत्तर प्रदेश के जिन इलाकों में धान की फसल देर से कटी थी और रबी की फसल की बुवाई देर से हुई वहां जरूर फसलों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा पर ऐसे इलाके कम ही हैं।

इन इलाकों में बारिश का कुछ फायदा हो सकता है पर वह भी तभी जब आगे ऐसी बारिश और बर्फबारी न हो या तेज हवा नहीं चले। ध्यान रहे पिछले तीन हते में तीन बार वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से बारिश हुई है। 28 फरवरी से शुरू करके 11 मार्च के बीच तीन बार भारी बारिश, बर्फबारी हुई है और तेज हवा चली है। ऐसी चौथी घटना 21 मार्च को होने की संभावना है। तभी मौसम के इस बदलते मिजाज को ज्यादा गंभीरता से समझने की जरूरत है। इस पर ज्यादा चिंता की जानी चाहिए क्योंकि यह सिर्फ लक्षण है, संकेत है। दुनिया के महाबली देश एक किशोर उम्र की लड़की ग्रेटा थनबर्ग की चेतावनियों को बचकानी हरकत समझ कर उसकी अनदेखी कर रहे हैं पर जलवायु परिवर्तन को लेकर ग्रेटा थनबर्ग या दूसरे पर्यावरणविदों ने जो चिंता जताई है, जो सवाल उठाए हैं, उनका गंभीरता से जवाब खोजा जाना चाहिए। सर्दियों के अंत या गर्मी की शुरुआत के समय हो रही बारिश जलवायु परिवर्तन का एक लक्षण है।

तन्मय कुमार
(लेखक पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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