प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा भारतीय मीडिया में पिछले तीन-चार दिन छाए रही। सभी टीवी चैनलों और अखबारों में उसे सबसे ऊँचा स्थान मिला लेकिन हम अब उस पर ठंडे दिमाग से सोचें, यह भी जरुरी है। मेरी राय में सिर्फ दो बातें ऐसी हुईं, जिन्हें हम सार्थक कह सकते हैं। एक तो अमेरिका की पांच बड़ी कंपनियों के कर्ता-धर्ताओं से मोदी की भेंट। यह भेंट अगर सफल हो गई तो भारत में करोड़ों-अरबों की विदेशी पूंजी का निवेश होगा और तकनीक के क्षेत्र में भारत चीन से भी आगे निकल सकता है। दूसरी सार्थक बात यह हुई कि अमेरिका से मोदी अपने साथ 157 ऐसी प्राचीन दुर्लभ भारतीय कलाकृतियाँ और मूर्तियाँ भारत लाए हैं, जिन्हें किसी न किसी बहाने विदेशों में ले जाया जाता रहा है।
यह भारत के सांस्कृतिक गौरव की रक्षा की दृष्टि से उत्तम नीति है लेकिन राजनीतिक दृष्टि से मोदी की इस अमेरिका-यात्रा से भारत को ठोस उपलधि क्या हुई ? भारत का विदेश मंत्रालय दावा कर सकता है कि अमेरिका जैसे देश ने पहली बार यह कहा है कि भारत को सुरक्षा परिषद का सदस्य बनाया जाए। मेरी राय में अमेरिका का यह कथन सिर्फ जबानी जमा-खर्च है। संयुत राष्ट्र का पूरा ढांचा जब तक नहीं बदलेगा, तब तक सुरक्षा परिषद में सुधार की आशा करना हवा में ल_ चलाना है। ‘चौगुटे’ की बैठक में नई बात क्या हुई ? चारों नेताओं ने पुराने बयानों को फिर से दोहरा दिया। अगर ‘आकुस’ (त्रिगुटा) ने जैसे आस्ट्रेलिया को परमाणु-पनडुबियां दिलवा दीं, वैसे ही ‘क्वाड’ भारत को भी दिलवा देता तो कोई बात होती।
संयुक्तराष्ट्र में दिए गए मोदी के भाषण में इमरान खान के भाषण के मुकाबले अधिक संयम और मर्यादा से काम लिया गया और इमरान के अनाप-शनाप भारत-विरोधी हमले का तगड़ा जवाब नहीं दिया गया। उसका कारण यह रहा हो सकता है कि अफसरों ने मोदी का हिंदी भाषण पहले से ही तैयार करके रखा होगा लेकिन भारत की महिला कूटनीतिज्ञ ने इमरान के नहले पर दहला मार दिया। अमेरिका ने ही तालिबान, मुजाहिदीन और अल-क़ायदा को खड़ा करते समय पाकिस्तान को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया था और अब वह उसे छूने को भी तैयार नहीं है। इसीलिए इमरान न्यूयार्क नहीं गए। अमेरिका केवल तब तक आपके साथ रहेगा, जब तक उसके स्वार्थ सिद्ध होते रहेंगे। ज्यों ही चीन से उसके संबंध ठीक हुए कि वह भारत को अधर में लटका देगा, जैसे आजकल उसने पाकिस्तान को लटका रखा है। हम अमेरिका की हां में हां मिलाने की मजबूरी क्यों दिखाएँ?
डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं, ये उनके निजी विचार हैं)