मोदी सरकार कब तक कांग्रेस की खामी बताकर अपने घर के जाले छिपाएगी

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मोदी सरकार
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कांग्रेस इतनी दूध की धुली नहीं है कि आंख बंद करके ये कहा जा सके कि वो सौ फीसद सही रही है। कड़वा सच ये भी है कि राफेल डील समेत तकरीबन सभी विवादित मसलों पर मोदी सरकार भी आज तक जिस तरह का अडिय़ल रवैया अपनाती आ रही है वो भी किसी लिहाज से ठीक नहीं ठहराया जा सकता। नोटबंदी हो या जीएसटी या फिर राफेल डील अगर विपक्ष सवाल उठा रहा है और इन्हीं सवालों की गूंज जनता के दिलो दिमाग पर भी जा रही है तो क्या किसी भी सरकार का ये दायित्व नहीं होता कि वो विपक्ष को ना सही लेकेन देश की जनता को तो ये जवाब दे सकती है कि सच्चाई क्या है? तकरीबन हर मसले पर जिस तरह के गोलमटोल बयान मोदी सरकार की ओर से आते रहे हैं उससे कहीं ना कहीं जनता के मन में भी ये बात तो बैठने लगी है कि कहीं ना कहीं दाल में कुछ तो काला है? अगर काला नहीं है तो फिर मोदी सरकार को क्या जेपीसी के गठन जैसी मांग से डरना चाहिए? या फिर मान लिया जाए की भारत को चांद पर ले जाने का दावा करने वाली सरकार भी अंधविश्वास को मानती है और इस बात से डरती है कि जिसने जेपीसी बनाई वो दोबारा सत्ता में नहीं आया?

मोदी सरकार
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राफेल डील सही है या गलत ये अलग सवाल है और भविष्य ही इसे तय भी करेगा लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि मोदी सरकार के तर्क खुद की ही चुगली करते नजर आते हैं? अगला चुनाव सिर पर खड़ा है, पर भाजपा तकरीबन पांच साल राज करने के बावजूद घेरने की कोशिश कांग्रेस को करती है। अगर हिसाब भाजपा के समय का मांगा जा रहा है तो फिर इन बातों का क्या मतलब कि आपने क्या किया था? आपके राज में तो ऐसे हुआ था? अगर उनके राज में गलत था तो उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी। आपके राज में जो सवाल उठ रहे हैं उनकी तुलना दूसरों के राज से करने से क्या सवालों की धार कम होगी या बढ़ेगी क्या ये छोटी सी बात थिंक टैंक से भरी पार्टी नहीं समझ सकती? शुक्ररवार को संसद में रक्षा मंत्री के भाषण को सुनिए- कांग्रेसियों को कह रही थी कि आप तो एक भी विमान नहीं ला पाए, लेकिन कोई पूछने वाला हो कि ये सरकार कितने राफेल विमान भारत की धरती पर अब तक उतार पाई है? हकीकत सब जानते हैं कि सौदा हुआ है, विमान रनवे पर नहीं हैं। तो फिर ये कहने का क्या मतलब कि आपने क्या किया? मोदी सरकार को अब समझ में आ जाना चाहिए कि वो सत्ताधारी है विपक्षी दल नहीं। जवाब अपने दौर का देना है, दूसरों की खामियां निकालने से अब कुछ नहीं होने वाला।

वैसे मोदी सरकार ने एक नई परिपाटी को लोकतंत्र में जन्म दिया है और इसका श्रेय उसे मिलना चाहिए। विदेश मंत्री का मसला होगा तो विदेश मंत्री की बजाय खेती-बाड़ी के मंत्री सवालों के जवाब देते नजर आएंगे। अगर मसला रक्षा का होगा तो वित्त मंत्री तर्क देते नजर आएंगे। तो क्या मान लिया जाए कि ये राजनीति के तहत है या मोदी जानते हैं कि उनके कौन से मंत्री बोलने में उस्ताद हैं और भरोसे के लायक हैं? जनता की समझ में ही नहीं आता कि ये मंत्री इस मसले पर क्यों बोल रहा है? एहसास यही दिलाया जाता है कि जिस तरह टीवी पर पार्टी प्रवक्ताओं की डयूटी लगती है उसी तरह कैन मंत्री आज किस विभाग के किस मसले पर बोलेगा ये प्रधानमंत्री की ओर से ही तय होता है। क्या ये सही है? हो सकता है मोदी जी आलराउंडर की फौज तैयार कर रहे हों लेकिन अपने-अपने विभाग के मंत्रियों को इतनी जानकारी तो अब तक हो ही गई होगी कि उनका विभाग चलता कैसे है और उसमें क्या सही और क्या गलत किस तरह से होता है?

लेखक
डीपीएस पंवार

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