संसद के दोनों सदनों की साझा बैठक में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण से न्यू इंडिया का गुरुवार को खाका खींचा गया। उस दस्तावेजी भाषण से महिला कुरीतियों का उन्मूलन देश की सुरक्षा, गरीब किसान और जवान के सरोकारों को आकार देने के लिए प्रतिबद्ध सरकार की छवि गढ़ी गयी। बेशक प्रधानमंत्री की दूसरी पारी से जरूरतमंदों की बड़ी उम्मीद है। कृषि जगत को संकट से उबारने के लिए आने वाले समय में 25 लाख करोड़ रुपये का और निवेश किये जाने का भरोसा किया है। जवानों से जुड़ी योजनाओं का ब्योरा दिया गया है। साथ ही देश की सुरक्षा पर विशेष फोकस है। इसके लिए सरकार तीन समितियां गठित करेगी जो फुल प्रुफ समाधानों की तरफ बढ़ाने की भूमिका अदा करेगी।
अभिभाषण में सर्जिकल और एयर स्ट्राइक का उल्लेख के साथ ही सबका साथ सबका विकास का भी जिक्र है। दूसरी पारी में जिस शानदार रोड मैप का जिक्र है, उसके हिसाब से देश को हर क्षेत्र में आगे ले जाने की चुनौती होगी। चुनौती इसलिए कि संसद के भीरत इस बार और सिमटने के बावजूद विपक्ष का रवैया पहले जैसा है। पिछले कार्यकाल में भी विपक्ष ने मोदी सरकार की हर पहल को एक सिरे से खारिज किया था। एक ऐसी छवि गढ़ने की कोशिश हुई थी कि एनडीए सरकार से कुछ बेहतर नहीं हो सकता। वैसे भी सत्ता में कोई भी दल हो, ऐसा नहीं हो सकता कि उसका एक की काम उल्लेख के लायक ना हो। एकाध काम तो होता ही है, जिसका संज्ञान लिया जा सकता है। पर विपक्ष ने मोदी सरकार की हर पहल को एक सिरे से खारिज किया था।
एक आसी छवि गढ़ने की कोशिश हुई थी कि एनडीए सरकार से कुछ बेहतर नहीं हो सकता। वैसे भी सत्ता में कोई भी दल हो, ऐसा नहीं हो सकता कि उसका एक भी काम उल्लेख के लायक ना हो। एकाध काम तो होता ही है, जिसका संज्ञान लिया जा सकता है। पर विपक्ष ने ठान लिया था कि उसे हर बात पर विरोध करना है, सो उसने किया भी। नकारात्मक राजनीति की छवि बनी और हाल के हार में यह भी एक कारण रहा है। प्रमुख विपक्ष भी भूमिका पर पहले दिन से सवाल उठ रहे हैं। अभिभाषण के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की गैर विधायी व्यवस्तता गुरुवार को चर्चा में रही। यह चर्चा इसलिए भी कि अभिभाषण मूलतः सरकार का ही कथन होता है। जिस पर विपक्ष अपनी प्रतिक्रिया देता है। जहां कहीं विपक्ष को कमी समझ में आती है, वो अपनी तरफ से रेखांकित भी करता है।
यही तो सकारात्मक भूमिका होती है। पर जब अभिभाषण सुना ही नहीं जाएगा या फिर उस पर ध्यान केन्द्रित नहीं होगा तब स्वाभाविक है असंगत प्रतिक्रियाएं ही सामने आएंगी। बहरहाल कांग्रेस ने शायद तक कर लिया है कि पहले की तरह ही उसका आक्रमक रवैया रहने वाला है। राहुल गांधी ने अपने साथी सांसदों से पिछले दिनों कहा भी था कि 52 सांसद ही मोदी सरकार के लिए काफी होंगे। इसका संकेत शुक्रवार को लोकसभा में तीन तलाक पर दोबारा पेश बिल से स्वतः मिल गया। बाकी दलों का रवैया तो पहसे से पता है। पिछले कार्यकाल में भी उन दलों ने तीन तलाक बिल का विरोध किया था। पर पिछली बार कांग्रेस ने कुछ सुझावों के साथ बिल का समर्थन किया था। यह बात और है कि राज्यसभा में कुछ सुझावों के साथ स्टैंडिंग कमेटी को सौपने की मांग के बीच बिल लटक गया।