आते ही तोताराम होला-मास्टर, मोदी जी कुछ न कुछ तो हैं। हमने कहा – हैं क्यों नहीं? पहले चाय बेचा करते थे, फिर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे और उसी दौरान आडवानी के रामरथ के सारथी, फिर गुजरात के मुख्यमंत्री और अंतत: देश के ‘न भूतो न, भविष्यति’ प्रधानमंत्री। बोला- यह परिचय तो कोई भी दे सकता है। क्या तुझे उनमें कुछ अलौकिक दिखाई नहीं देता? हमने कहा- हां, गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी, समय से पहले डिजिटल कैमरा और ईमेल भारत में लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। बोला- छोटी-छोटी बातें छोड़। कुछ बड़ा सोच जैसे उमा भारती और वेंकैया जी ने सोचा। हमने कहा- मतलब उन्हें अवतारी मानें?
जिन्हें सरकार में कोई पद चाहिए उन्हें मोदी जी में ब्रह्मा, विष्णु, महेश कुछ भी नजऱ आ सकते हैं। हमें तो उनमें एक कंजूस नजऱ आता है, जो हमारा पे कमीशन का 31महिने का एरियर नहीं दे रहा है। बोला- मास्टर, मैं बहुत गंभीर बात कह रहा हूं। मैं उमा भारती जैसों की तरह नहीं सोच रहा हूं जो जब, जिसको, जो चाहें बना दें। मैं सप्रमाण बोल रहा हूं। मुझे लगता है मोदी जी का राम से कोई न कोई क नेक्शन ज़रूर है। हमने पूछा- क्या प्रमाण हैं? बोला- जैसे त्रेता युग में राम ने नोटबंदी की थी वैसे ही मोदी जी ने भी नोटबंदी की। पहले उन्होंने कहा था कि काला धन समाप्त करने के लिए ऐसा किया है लेकिन बाद जब उन्होंने रामचरितमानस पढ़ा तो बताया कि वास्तव में नोटबंदी भारत को कैशलेस बनाने के लिए की गई है।
राम के युग में भी हम कैशलेस समाज देखते हैं। राम स्वयं उससे बहुत प्रभावित थे। जब केवट ने उन्हें सरयू पार कराई तो उसे देने के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे। सीता ने उतराई के बदले अपनी अंगूठी देनी चाही लेकिन केवट भला था। उसने उनकी मजबूरी का नाजायज फायदा नहीं उठाया और कहा-जब हालात ठीक हो जाएं और नए नोट छपकर आजाएं तब लोलटे समय दे दीजिएगा। हमने कहा- मानस के ऐसे ऊटपटांग अर्थ निकलना बंद कर। बोला- मैं एक चौपाई सुनाता हूं। उससे स्पस्टरूप से त्रेता में नोटबंदी ओर कैशलेस होना सिद्ध होता है। अरण्यकांड में जब सुग्रीव ने ऋष्यमूक पर्वत से वन में घूमते राम-लक्ष्मण को देखा तो हनुमान जी से खबर लाने के लिए कहा। हनुमान जी के प्रश्न के उत्तर में राम कहते हैं-
कैशलेस दशरथ के जाए।
हम पितु वचन मानि वन आए।।
अर्थात हम दशरथ के पुत्र हैं। हमारे पिताजी कैशलेस हो गए हैं। उन्होंने कहा है कि जब तक हालात ठीक न हो जाएं तब तक वन में जाओ। हम उन्हीं की आज्ञा मानकर वन में आए हैं। आगे की शेष कथा तुझे मालूम है ही। हमने कहा- बस? या कोई और खुराफात? बोला- खुराफात क्या? मैं तो यह कह रहा था कि उस समय महारानी कौशल्या खुद ‘कौशल विकास मंत्रालय’ का काम देखा करती थीं। उनके बाद राम के दोनों पुत्रों लव और कुश ने यह विभाग संभाला, जिसका मुख्यालय कौशल में था। अब तो तुझे मोदी जी के ‘राम क नेक्शन’ में कोई शक नहीं होना चाहिए। हमने कहा- ये तथ्य तो दशरथ, राम, कौशल्या और मोदी जी क्या स्वयं तुलसीदास जी को भी मालूम नहीं थे। हमें लगता है तेरे जैसे शोधकर्त्ताओं के होते भारत के विश्व गुरु पद को कोई खतरा नहीं है। यदि हम कभी भारत के प्रधानमंत्री बने तो तुझे अवश्य उच्च शिक्षा मंत्री बनाएंगे।
रमेश जोशी
(लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)