मैं बहुत दुखी और निशब्द हूं

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दिलीप कुमार के साथ की सबसे रोचक याद यह है कि उनके साथ गाना गाया था। वे अच्छा गाते थे, मगर माइक पर पहली मर्तबा गा रहे थे, तब जरा घबराए हुए थे। सलिल चौधरी जी ने कहा-यूसुफ तुम बिल्कुल डरो नहीं, बस गाते रहो। तुमको जो गाना है, वह गाओ। फिर तो उन्होंने आंखें बंद की और लासिकल गाना शुरू कर दिया। वह इतना लंबा चला कि सलिल चौधरी उनके सामने खड़े होकर बंद करो, बंद करो का इशारा करने लगे, लेकिन उनकी आंखें बंद थी, सो वे गाते गए, गाते गए। जब आंखें खोली, तब देखा कि सामने सलिल दा खड़े थे। उन्होंने कहा- यूसुफ तुमने बहुत अच्छा गाया। यह हम कहीं और यूज करेंगे। अभी जो गाना है, उसे करते हैं। इस तरह वह गाना रिकॉर्ड हुआ। उस दिन उन्हें देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि वे कितने मस्त होकर गा रहे थे। मुझे इतना ही याद है कि इसकी रिकॉर्डिंग महबूब स्टूडियो में हो रही थी और फिल्म के डायरेटर ऋ षिकेश मुखर्जी थे। फिल्म मुसाफिर थी और गाना लागी नाहीं छूटे रामा, चाहे जिया जाए था। अमूमन वे गाने की रिकॉडिंग में नहीं आते थे। ज्यादातर शूटिंग में बिजी रहते थे। अपने काम में एकदम खो जाते थे। शायद गंगा जमुना के वक्त रिकॉर्डिंग में आए थे, पर मुझे पूरी तरह से याद नहीं है। वे इतने जबर्दस्त हिम्मत वाले आदमी थे कि किसी बात से डरते नहीं थे।

और जो काम जानते नहीं थे, वह जरूर कर देते थे। ऐसा एक किस्सा हुआ था, यह बहुत पुरानी बात है। शायद 1963-1964 की बात होगी। एक प्रोड्यूसर थे। उन्होंने हमारे ऊपर केस कर दिया था। इसमें मेरा, यूसुफ भाई और भी एक आदमी का नाम था। उन्होंने केस किया था कि ये हमसे लैक मनी लेते हैं। यह जानकर यूसुफ भाई को बहुत खराब लगा। कहने लगेयह आदमी मेरे लिए ऐसा बोल रहा है। उनके असिस्टेंट ने कहा कि हम लोग कोर्ट में जाएंगे और केस लड़ेंगे। तब वे कहने लगे कि हां, बिल्कुल जाएंगे। यह केस मैं लड़ूंगा। असिस्टेंट कहने लगा कि केस लडऩे वाला तो वकील होता है साहब, आप वहां या करेंगे? कहने लगे कि मैं वकील बनकर जाऊंगा और केस लड़ूंगा। उन्होंने असिस्टेंट से कहा कि कोर्ट से एक महीना का वत मांग लो। मैंने कहा कि यूसुफ भाई प्रोड्यूसर ने मेरे ऊपर भी केस किया है। मुझसे पूछने लगे कि तुम्हारे ऊपर कितने रुपए का केस किया है। मैंने बताया- मेरे ऊपर 600 रुपए का है। यह 600 रुपए भी मैंने दो-तीन गाने के लिए हैं, जो साइन करके लाई हूं। उन्होंने सबका नाम पूछा। मैंने बताया कि हम तीन लोग हैं। तब कहने लगे- मैं सबका केस लड़ूंगा। उन्होंने वकालत की सारी किताबें पढ़ी और समय आने पर कोर्ट में जाकर खड़े हो गए। वे इतना बोले कि हम लोग केस जीत गए और सामने वाला प्रोड्यूसर हार गया।

उनमें ऐसी हिम्मत थी। जब केस जीतने के बाद मुझे उनका फोन आया। कहने लगे कि तुम मस्त रहो मेरी बहना। हम लोग जीत गए हैं। बहुत कमाल आदमी थे। बहरहाल, दिलीप कुमार पर प्रोड्यूसर ने एक हजार, मेरे ऊपर 600 रुपए और तीसरे आदमी पर भी इसी तरह हजार-दो हजार खाने का आरोप लगाया था। उस समय 600 रुपए भी बहुत बड़ी रकम होती थी। उनको सब कुछ बहुत अच्छे से याद रहता था। उनकी उर्दू तो कमाल की थी। उन्हें कितने सारे शेर याद थे। उनके धर्म की जो कुछ चीजें हैं, वह सब भी उनको याद था। कमाल के आदमी थे। मुझे तो बहन कहते थे। मैं उनको राखी भी बांधती थी। मुझे अगर कोई तकलीफ होती थी, तब पूछते थे कि कोई तकलीफ है तो मुझे बताना। कहते थे- मेरी मुख्तसिर बहन। मेरे प्रोग्राम में वे लंदन आए थे।

मेरे बारे में इतना अच्छा बोला कि वह सब जगह बजने लगा। आज भी सोशल साइट पर मौजूद है। इतनी अच्छी उर्दू बोले थे कि लोग सुनकर हैरान हो गए कि ऐसे भी लोग फिल्म इंडस्ट्री में होते हैं। यूसुफ भाई अपनी छोटीसी बहन को छोड़के चले गए। यूसुफ भाई या गए, एक युग का अंत हो गया। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा। मैं बहुत दुखी और निशद हूं। कई बातें कई यादें हमें देके चले गए। यूसुफ भाई पिछले कई सालों से बीमार थे, किसी को पहचान नहीं पाते थे ऐसे वक्त सायरा भाभी ने सब छोड़कर उनकी दिन रात सेवा की है उनके लिए दूसरा कुछ जीवन नहीं था। ऐसी औरत को मैं प्रणाम करती हूं और यूसुफ भाई की आत्मा को शांति मिले ये दुआ करती हूं। मेरी तबियत तो ठीक है, पर मन ठीक नहीं है। लेकिन या करें, यही दुनिया है।

लता मंगेशकर
(जैसा लता जी ने वरिष्ठ पत्रकार उमेश कुमार उपाध्याय को बताया वो यहां पाठकों के लिए पेश है)।

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