मैंने राव से कहा, मैं राजीव गांधी हूं

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यह तब की है जब जनवरी 82 में मैं शीत अवकाश के बाद दिल्ली से लंदन लौटा था। जब ‘द टाइम्स’ में मेरे आलेख छपने शुरु हुए, तो लंदन वीकेंड टेलीविजन (एलडब्ल्यूटी) की ओर से कॉल आई। वे पूछ रहे थे कि क्या मैं उनके नए टीवी प्रोग्राम ‘ईस्टर्न आई’ में काम करना पसंद करूंगा? एलडब्ल्यूटी के ऑफर को मैंने मौज-मस्ती के रूप में स्वीकार कर लिया था। ‘ईस्टर्न आई’ में मेरे विशेष कार्य के रूप में तीन इंटरव्यू थे। यह बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत के शासन प्रमुखों से लिए गए साक्षात्कार थे। हर इंटरव्यू ने लोगों का ध्यान खींचा और उन पर चर्चा होती रही। पाकिस्तान के जनरल जिया उल हक से इंटरव्यू के बीच में जो हुआ, वह यादगार रहा। मेरे विचार से हम बेनजीर के लिए लड़ रहे थे कि वह जिया के पाकिस्तान में जो कहना और करना चाहती हैं, उसके लिए स्वतंत्र हैं। उनके चेहरे का तनाव देखकर मैं समझ गया था कि इस प्रकार के प्रश्नों के लिए वह तैयार नहीं थे। उनके चेहरे पर मुस्कान ऐसी थी मानो प्रयास के बाद लाई गई हो और वह झूठी लग रही थी। इंटरव्यू ड्रॉइंग रूम में रिकॉर्ड हो रहा था। इसके बाहर पोर्च था। तभी अचानक गाडिय़ों का शोर हुआ। जब आप किसी सैन्य शासक से साक्षात्कार ले रहे हों तो इस तरह के शोर की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। इसने जनरल का मूड पूरी तरह से बदल दिया।

वह खुद ही बोलने लगे- ‘मेरा परिवार घर आया है, आप बाद में उनसे मिल लेना।’ यह इंटरव्यू लाइव प्रसारित नहीं किया गया। इसे सैटेलाइट से लंदन भेजा गया और बाद में इसे बिना किसी एडिटिंग के प्रसारित किया गया, इस कारण से हर व्यक्ति ने गाडिय़ों का यह शोर सुना। जनरल ने जो भी कहा, उससे ज्यादा ध्यान इस शोर ने खींचा। मेरे लिए जो हमेशा स्मृति बनी रहेगी, वह थी जनरल द्वारा की गई मेहमान नवाजी। हालांकि यह कृत्रिम प्रतीत हो रही थी। हुआ यह था कि जब साक्षात्कार पूरा हुआ, तो वह मुझे मेरी कार तक छोडऩे के लिए आए, जो पोर्च के सामने खड़ी थी। उन्हें धन्यवाद देने के बाद, जब मैं कार में बैठा और कार उनके घर के सामने बने गोल बगीचे को आधा पार कर पाई होगी कि जनरल जिया के अंगरक्षक (एडीसी) ने कहा- ‘मिस्टर थापर पीछे देखिए, जनरल आपको हाथ हिलाकर विदाई दे रहे हैं।’ जैसे ही मैं मुड़ा, मैंने देखा कि जनरल जिया वहीं खड़े थे, जहां उन्होंने मुझसे हाथ मिलाकर अलविदा कहा था। हालांकि अब वह मेरी कार की ओर देखकर हाथ हिला रहे थे। ऐसा करना उनकी शैली के अनुरूप ही था। लेकिन बड़ी बात यह थी कि उनके एडीसी इस बात की जानकारी रखते थे, इसलिए जैसे ही हमारी पीठ जनरल की ओर हुई उन्होंने मुझे इसका भान कराया। इतने दशकों में किसी भी साक्षात्कार देने वाले ने मुझे इस तरह की विदाई नहीं दी थी।

हालांकि यह जानबूझकर किया गया था कि मुझ पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ सके । तीसरा इंटरव्यू राजीव गांधी के साथ था। उन्होंने अपने बारे में जो भी बताया, उस कारण से यह ज्यादा चर्चित रहा। इंटरव्यू शुरू होते ही दर्शक उनके गालों में पडऩे वाले गड्ढों और उनकी मुस्कुराहट के मुरीद हो गए। उनका उच्चारण बेहद स्पष्ट था। उनका शर्मीलापन बच्चों जैसा था, जो मोहित कर लेता था लेकिन उनकी अनौपचारिक शैली की भाषा ने सभी का ध्यान खींचा। वह अनौपचारिक थी और ऐसी नहीं थी मानो किसी प्रधानमंत्री की भाषा हो। मुझे याद तो नहीं कि मेरा प्रश्न क्या था, लेकिन उनके इस जवाब ने सभी की दाद बटोरी: ‘क्या आप ये उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि जो आप चाहते हैं वह मैं टेलीविजन पर बोलूं?’ चौथे इंटरव्यू के पीछे भी एक यादगार कहानी है। हालांकि इसमें कैमरे नहीं लगे थे। यह गृहमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के साथ था। इस इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों के विरुद्ध हिंसा पर राजीव गांधी के शरारतपूर्ण कथन- जब भी कोई बड़ा वृक्ष गिरता है, तो धरती हिलती है- के संदर्भ में जनवरी 1985 में लिया गया था। राव का एक जवाब भी उसी तरह का था। यह मेरे ध्यान में आया, लेकिन मैंने उसे जाने दिया। 10 मिनट का इंटरव्यू था। उनकी चूक को उधेडऩे के बजाय मैंने कुछ अन्य मुद्दों पर बात की। मुझे इस बात का ध्यान नहीं रहा कि वह इससे विचलित हो गए हैं।

इंटरव्यू खत्म हुआ, मैं होटल आ गया और शॉवर ले रहा था, तभी मेरा फोन बजा। मैंने पर्दे के पीछे जाकर कॉल लिया। दूसरी ओर से आवाज आई- ‘मैं नरसिम्हा राव।’ मैंने मजाक में कहा- ‘होंगे और मैं राजीव गांधी हूं। अब बंद भी करो सिड्डो, मुझे नहा लेने दो।’ मेरा भांजा सिड्डो देवा हमेशा इस तरह से आवाज बनाकर मेरे साथ मजाक किया करता था। ‘नगीं करण, मैं वाकई गृहमंत्री नरसिम्हा राव बोल रहा हूं।’ मैंने कहा- ‘मुझे माफ करे मंत्री जी, मेरा भांजा मुझे इस तरह से बेवकूफ बनाया करता है। आप बताएं क्या हुआ?’ राव ने मुझे बताया कि उन्होंने इंटरव्यू में कुछ ऐसा कहा है जिसे लेकर वह चिंतित हैं। उनका मानना था कि इससे भारत में वैचारिक उत्तेजना फैलेगी। क्या यह उत्तर हट सकता है? जब मैंने एलडब्ल्यूटी (लंदन वीकेंड टेलिविजन) में फोन लगाया तो पाया कि यही वह बात थी जिसे सबसे ऊपर रखा गया था। अब जान बर्ट को इस पर फैसला लेना था। उनका जो उत्तर मुझे मिला, उससे मैं बहुत प्रसन्न था। बर्ट ने कहा- ‘मिस्टर राव से कहना कि हम मंत्रियों के लिए ऐसी स्थिति बना देते हैं कि वे विचित्र हालात से घिर जाएं, लेकिन इस बार कुछ चेंज के लिए हम ऐसे हालात नहीं बनाएंगे।’ इस विनोद पूर्ण जवाब को नरसिम्हा राव एक ही बार में समझ गए। मैं कह सकता हूं कि वह चहक उठे थे। राव ने कहा- ‘मिस्टर बर्ट से कहिए मैं उनका आभारी हूं और मुझे उनका मजाक का अंदाज पसंद आया।’

करण थापर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं उनकी पुस्तक ‘मेरी अनसुनी कहानी’ प्रकाशक – मंजुल पब्लिशिंग हाउस से साभार)

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