मुलायम के चरखी दांव से कांपे कई पांव

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जिस अंदाज में मुलायम ने मोदी के फिर पीएम बनने की कामना की उसके अर्थ बेहद गहरे हैं। भावनाएं ही कामनाओं को जन्म देती हैं लेकिन मुलायम की कामना में भावना के पीछे पूरी तरह राजनीति भी थी, रंजिश भी थी और व्यक्तिगत कामना भी।

मुलायम सिंह यादव ने सूत काटा हो या नहीं लेकिन चरखा चलाना जरूर आता है। साथ ही पहलवानी का चरखी दांव भी जो अच्छों-अच्छों को चौंका जाता है। 16 वीं लोकसभा के आखिरी दिन का शो पहले हाफ में कैग के नाम था तो आखिरी सत्र पूरी तरह से सपा नेता मुलायम सिंह यादव का। मोदी का विदाई भाषण भी कोई असर नहीं छोड़ पाया। मोदी को इसका मलाल रहेगा कि मुलायम ने तारीफ तो की लेकिन उसी दिन क्यों की जब वो संसद के बहाने देश की जनता को पाटने के आखिरी मौके पर चौका मारने की तैयारी में थे। तो क्या इसे मुलायम का असली दांव माना जा सकता है? नहीं जिस अंदाज में मुलायम ने मोदी के फिर पीएम बनने की कामना की उसके अर्थ बेहद गहरे हैं। भावनाएं ही कामनाओं को जन्म देती हैं। भावना के पीछे पूरी तरह राजनीति भी थी रंजिश भी थी और व्यक्तिगत कामना भी।।

जो लोग ये कह रहे हैं कि मुलायम की उम्र हो गई है इस वजह से वो क्या बोलते हैं ये ज्यादा अहम नहीं वो गलत सोच रहे हैं। उम्र के चलते मुलायम की भाषा भले ही अर्थ का अनर्थ करा देती हो लेकिन ये कहना और सोचना सही नहीं कि मुलायम भुलने लहे हैं या बिना चोसे समझे बोले हैं। हकीकत ये है कि मुलायम ने काफी सोच समझकर दांव खेला है। मुलायम के बेहद करीबी अमर सिंह अगर ये कह रहे हैं कि खनन घोटाले की लपटों से बेटे को बचाने के लिए मुलायम ने ऐसा बयान दिया तो ये संभव है। ये भी हो सकता है कि मुलायम को ये डर हो कि बाकी विपक्षी नेताओं की तरह ईडी या सीबीआई का अगला शिकार वो ना बन जाएं लिहाजा समय पर पटरी मार लो। मुलायम के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला है। अयोध्या में कारसेवकों का फायरिंग का केस है। जिनसे फेस मुलायम बनकर ही बचाया जा सकता है।

मुलायम के जनदीकी जानते हैं कि राममनोहर लोहिया का ये चेला इस अंदाज में नरेन्द्र मोदी की तारीफ तो नहीं कर सकता वो भी ऐन चुनाव से पहले। तो क्या सत्ता ने कोई डर दिखाया है? या फिर सत्ता के साथ कोई डील हुई है? यूपी में सपा-बसपा गठबंधन मोदी व शाह के लिए सिरदर्द बना है और इस सिरदर्द का इससे बेहतर इलाज हो नहीं सकता था कि मुलायम से गठबंधन की हवा निकलवाई जाए। तो जिस दबाव की ओर आजम खान इशारा कर रहे हैं वो यही है कि गठजोड़ को मैदान में जाने से पहले ही मुलामय वाणी से तोड़ने का काम किया जाए? निसंदेह मुलायम के मुलायम बोल सपा-बसपा गठबंधन के लिए आने वाले दिनों में कठोर साबित होने वाले हैं। मायावती का जो मिजाज है वो कतई ये बर्दास्त नहीं कर सकती कि अखिलेश के पिता मोदी के फेवर में बोलें और अखिलेश मया संग डोलें। तो क्या आने वाले दिनों में इस गठजोड़ में खटास आएगी? क्या डील यही है कि इधर मुलायम तारीफ करेंगे और उधर सत्ताधारी वादा निभायेंगे?

बल इससे भी मिलता है कि इधर संसद में मुलायम ने ये अनमोल वचन बोला उधर भाजपाई मुलायम ने ये अनमोल के पोस्टर लगाकर थैक्यू बोल रहे थे। क्या पहले ही पोस्टर लगाकर थैक्यू बोल रहे थे। क्या पहले ही पोस्टर तैयार हो गए थे? फिर भी भाजपा के इस कदम पर हैरानी होती है-क्या मुलाय के थैंक्यू के पोस्टरों से भाजपा के वोट बढ़ेगे?

लेखक
डीपीएस पंवार

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