डिजीटल इंडिया ने उत्तर प्रदेश में प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा के गोरखधंधे की पोल खोलकर रख दी है। अगर शिक्षक ही फर्जी होंगे तो फिर शिक्षा का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस हाल में पढ़ते होंगे हमारे नन्हे-मुन्ने या मुनिया और क्या रहता होगा उनका रिजल्ट? मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सख्ती के बाद महकमा जागा है। लिहाजा सवा चार लाख प्राइमरी टीचर्स में से 70 हजार से ज्यादा को फर्जी मानकर कदम आगे बढ़ा रहा है। छह हजार के आसपास पकड़े जा चुके हैं, बर्खास्त और गिरफ्तार भी हो चुके हैं। कोई ऐसा जिला नहीं बचा जहां दशकों से ये गोलमाल ना हो रहा हो। हर जिले में हर टीचर के कागजातों की छानबीन का काम तेजी से चल रहा है। माना जा रहा है कि जल्दी ही इस रोग का पूरा इलाज कर लिया जाएगा। पश्चिमांचल में ज्यादातर के पास डा.भीमराव आंबेडकर विवि आगरा की फर्जी डिग्री मिली है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि फर्जी टीचरों को बाहर करना भी ठीक और सजा देना भी वाजिब लेकि न जिन्होंने इन टीचरों को मौका दिया या बरसों तक सैलरी जिनके हस्ताक्षर से मिली, क्या उनका दोष नहीं है?
क्या उन्हें सजा नहीं मिलनी चाहिए? हैरान करने वाली खबर केवल यही नहीं है कि 70 हजार से ज्यादा फर्जी यूपी में पढ़ा-लिखा रहे हैं। इनकी डिग्री और टीईटी की मार्कशीट फर्जी हैं। हैरानी की बात असल में ये है कि सैंकड़ों टीचर तो ऐसे सामने आ रहे हैं जो एक ही वक्त में यूपी के तीन-तीन अलग-अलग प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा दे रहे थे। इन्हें महकमे ने नहीं पकड़ा। ये पकड़े गए डिजीटल इंडिया अभियान ने। जैसे-जैसे जहां-जहां टीचरों के कागजात दर्ज करने का काम शुरू हुआ, वहां-वहां से फर्जी टीचरों के कारनामे प्याज के छिलकों की तरह सामने आने लगे। दस्तावेजों की जांच: शिक्षा मंत्री का भी कहना है कि इस रैकेट में दूसरे विभागों के लोग शामिल हो सकते हैं। लिहाजा अब सारे प्रदेश में प्राइमरी टीचरों के दस्तावेजों की जांच कर रही है। आम तौर पर जब भी किसी की सरकारी नौकरी मिलती है तो कड़ी जांच के बाद ही नियुक्ति पत्र मिलता है। सरकार का मानना है कि इस गड़बड़ी में दूसरे विभागों के सरकारी अफसरों की मिलीभगत भी हो सकती है इसलिए सबकी जांच कराई जा रही है।
ऐसेचला गोलमाल :- गोरखपुर के एक प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल अभय लाल यादव की बात बताते हैं। अभय यादव नाम के ही दो और टीचर भी सरकारी स्कूल में नौकरी कर रहे थे। खास बात ये है कि उन दोनों के नाम.. पिता के नाम और डेट ऑफ बर्थ भी वही थी जो अभय यादव की है। जब अभय य़ादव को इस बात की जानकारी मिली तो खुद उन स्कूलों में पहुंचे जहां उनके नाम पर दूसरे टीचर्स नौकरी कर रहे थे। चौंकाने वाली बात ये है कि अभय के स्कूल में आने की जानकारी उन टीचर को पहले से मिल गई और वो अभय के पहुंचने से पहले ही स्कूल से निकल गए। अभय यादव जैसी ही कहानी गोरखपुर के एक और प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल अनिल यादव की है। 2006 से वो नौकरी कर रहे हैं। कुछ साल पहले जब उन्होंने इनकम टैक्स रिटर्न फाइल किया तो पता लगा कि उनके नाम और उनकी डीटेल से पैन कार्ड बना है। सैलरी ली जा रही है और टैक्स जमा किया जा रहा है। सीतापुर का कोई शत्रुघ्न नाम का शख्स उनके नाम पर नौकरी कर रहा था।