मीराबाई के जीवन की खास बातें, सिर्फ कृष्ण नहीं, राम की भी भक्ति की

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1992

मीरा बाई भगवान श्रीकृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती है। मीरा बाई ने जीवनभर भगवान कृष्ण की भक्ति की ओर कहा जाता है कि उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में समा कर हुई थी। मीरा बाई की जयंती पर कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड तो नहीं हैं, लेकिन हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कई बातों के को आज भी रहस्य माना जाता है। गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक भक्त -चरितांक के अनुसार मीरा बाई के जीवन और मृत्यु से जुड़ी कुछ बातें बताई गई हैं।

मीराबाई मेड़ता महाराज के छोटे भाई रतन सिंह की एक मात्र संतान थीं। मीरा जब केवल दो वर्ष की थीं, उनकी माता की मृत्यु हो गई। इसलिए इनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता ले आए और अपनी देख-रेख में उनका पालन-पोषण किया। मीराबाई का जन्म 1498 के लगभग हुआ था। तुलसीदास के कहने पर की राम की भक्ति इतिहास में कुछ जगह ये मिलता है कि मीरा बाई ने तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की। कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे हैं, हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकार ये मानते हैं कि मीराबाई और तुलसीदास के बीच पत्रों के जरिए संवाद हुआ था। माना जाता है मीराबाई ने तुलसीदास जी को पत्र लिखा था कि उनके घर वाले उन्हें कृष्ण की भक्ति नहीं करने देते। श्रीकृष्ण को पाने के लिए मीराबाई ने अपने गुरु तुलसीदास से उपाय मांगा। तुलसी दास के कहने पर मीरा ने कृष्ण के साथ ही रामभक्ति के भजन लिखे। जिसमें सबसे प्रसिद्ध भजन है पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।

बचपन से ही श्रीकृष्ण भक्त

जोधपुर के राठौड़ रतन सिंह की इकलौती पुत्री मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। मीराबाई के बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी इसलिए यौवन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सबकुछ माना। उनका कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना की वजह से अपने चरम पर पहुँचा था। बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं। बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं यह बात मीराबाई के बालमन में एक गांठ क ी तरह समा गई और वे कृष्ण को ही अपना पति समझने लगीं।

भोजराज से विवाह

विवाह योग्य होने पर मीराबाई के घर वाले उनका विवाह करना चाहते थें, लेकिन मीराबाई श्रीकृष्ण को पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया गया।

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