बिहार में सत्तारूढ़ गठबंधन यानी भाजपा, जदयू और लोजपा के कई नेता मान रहे हैं कि बिहार में महाराष्ट्र दोहराया जाएगा, लेकिन महाराष्ट्र का कौन सा मॉडल दोहराया जाएगा, इसे लेकर संशय है। महाराष्ट्र के दो मॉडल हैं, पहला 2014 का और दूसरा 2019 का। इनमें से कौन सा मॉडल बिहार में दोहराया जाएगा, इसे लेकर अटकलें चल रही हैं और इसके बीच सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियां एक-दूसरे को शह मात देने का खेल कर रही हैं। महाराष्ट्र का 2014 का मॉडल यह है कि चुनाव से ऐन पहले टिकट बंटवारे को लेकर सहयोगी से झगड़ा कर लो और अलग होकर चुनाव लड़ो, सबसे बड़ी पार्टी बनो और धुर प्रतिद्वंद्वी की मदद लेकर सरकार बना लो। भाजपा ने 2014 में टिकट बंटवारे पर शिव सेना से झगड़ा किया था और अलग होकर लड़ी थी। नतीजों में वह सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी और एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाई। हालांकि बाद में भाजपा ने शिव सेना से वापस तालमेल कर लिया।
महाराष्ट्र का दूसरा मॉडल 2019 का है, जिसे शिव सेना ने तैयार किया। चुनाव से पहले शिव सेना ने भाजपा को पूरे भरोसे में रखा कि दोनों साथ हैं और देवेंद्र फड़नवीस मुख्यमंत्री होंगे। एकाध मौके पर कुछ लोगों ने जरूर कहा कि शिव सैनिक मुख्यमंत्री बनेगा पर वह प्रचार में कही गई बात थी। सो, शिव सेना ने भाजपा को भ्रम में रखा और सीटों का बंटवारा अपने हिसाब से करा लिया। इस वजह से चुनाव नतीजों में भाजपा बहुमत से काफी पीछे रह गई और तब शिव सेना ने मुख्यमंत्री पद के बंटवारे का फार्मूला रख दिया।खबर है कि इन दोनों फार्मूलों के साथ जुड़े रहे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस को बिहार का चुनाव प्रभारी बनाया जा रहा है। सो, जाहिर है वे अपने साथ दोनों फॉर्मूलों का अनुभव लेकर आएंगे। भाजपा के कई नेता चाहते हैं कि 2014 का फार्मूला थोड़े फेरबदल के साथ आजमाया जाए। फेरबदल यह हो कि कोरोना की वजह से चुनाव टलवा दिया जाए और राष्ट्रपति शासन में भाजपा अकेले चुनाव लड़े।
कहा जा रहा है कि भाजपा ने यह सुनिश्चित किया हुआ है कि इस बार जदयू और राजद का तालमेल न होने पाए। यानी जैसे महाराष्ट्र में 2014 में कांग्रेस और एनसीपी अलग लड़े थे वैसे ही जदयू, राजद और कांग्रेस अलग अलग लड़ें। इस फार्मूले से भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी बनने का भरोसा है। भाजपा के कई नेता 2019 के फार्मूले को आजमाना चाहते हैं। उनका मानना है कि नीतीश के बगैर चुनाव जीतना संभव नहीं है। इसलिए चुनाव से पहले नीतीश को भ्रम में रखते हैं और सीट बंटवारे में ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करने का प्रयास करते हैं, जैसा महाराष्ट्र में शिव सेना ने किया था। फिर चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी की जाए और जरूरत हो तो राजद जैसी धुर विरोधी पार्टी का भी समर्थन लिया जाए। महाराष्ट्र के मुकाबले फर्क यह है कि नीतीश दोनों फार्मूलों से परिचित हैं। इसलिए वे सावधान हैं और राजद, कांग्रेस तोड़ कर बड़ी संख्या में नेताओं की भरती का अभियान चला रहे हैं और अपनी ताकत बढ़ा रहे हैं।