महामारी अब जिंदगी पर भारी

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किसी भी देश के मूल संस्कार और उसके चरित्र की परख संकट के समय ही होती है। वैश्विक महामारी के मौजूदा संकट के दौरान अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देश अपने अंदर के हालात से जूझने तक ही सीमित हो गए हैं। भारत अकेला ऐसा देश है जिसने इसे विश्व मानवता की साझा चुनौती बताते हुए न सिर्फ बाकियों की चिंता की, बल्कि सभी देशों को साथ लाने की ठोस पहल भी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर सार्क देशों का सम्मेलन हुआ और फिर उनकी ही पहल पर जी-20 की बैठक भी संपन्न हुई। जी-20 का वर्तमान अध्यक्ष सऊदी अरब है। प्रधानमंत्री ने सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान से फोन पर बात कर उन्हें इसका वर्चुअल सम्मेलन बुलाने के लिए तैयार किया। इसके बाद स्वयं भी ज्यादातर राष्ट्राध्यक्षों से संपर्क किया। संदेश यही था कि मानवता के इस संकट को हमें साझा चुनौती मानकर आगे बढऩा चाहिए। यह भारत का ही प्रभाव था कि इसमें 19 देशों के साथ यूरोपीय संघ, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। सम्मेलन संपन्न हो जाने के बाद यह जितना आसान लगता है, उतना था नहीं। कोरोना वायरस के बारे में सही सूचना न देने के आरोप से घिरे चीन को लेकर कई देशों में नाराजगी है। कुछ देशों द्वारा चीन को निशाना बनाए जाने का खतरा था। मोदी ने अपने भाषण के आरंभ में यह कहकर माहौल बदल दिया कि यह वक्त इस पर चर्चा करने का नहीं है कि कोविड-19 का जन्म कहां हुआ।

वायरस के प्रकोप के लिए किसी को दोष देने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। अभी मौजूदा संकट से निपटने के उपायों पर बात होनी चाहिए। इसका असर हुआ और सम्मेलन बिना किसी मतभेद के ठोस सहमतियों और फैसलों के साथ खत्म हुआ। भारत ने पहल नहीं की होती तो यह सम्मेलन आयोजित ही नहीं हो पाता। यही बात सार्क सम्मेलन पर भी लागू होती है। भारत का मूल संस्कार और चरित्र यही है। अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले हमारे ज्यादातर नेतागण मानते थे कि भारत अन्य देशों की तरह केवल अपने लिए स्वतंत्र नहीं होना चाहता, इसका राष्ट्रीय लक्ष्य विश्व कल्याण है। गांधी जी कहते थे कि स्वतंत्र भारत मानव जाति को संकट मुत करने के लिए काम करेगा। आप इतिहास में चले जाइए, एक राष्ट्र के रूप में भारत का व्यवहार हमेशा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘सर्वे भवंतु सुखिना’ पर आधारित रहा है। नेतृत्व में इस बात को लेकर गहरी समझ न होने के चलते कभी-कभार इस दिशा से थोड़ा-बहुत डिगा जरूर है, लेकिन कभी भी इसने किसी देश या विश्व मानवता के विरुद्ध काम किया हो, इसके उदाहरण नहीं हैं। नरेंद्र मोदी से किसी का कई मुद्दों पर मतभेद हो सकता है, पर इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि विश्व स्तर पर उन्होंने भारत के परंपरागत दर्शन और उसके चरित्र को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसी कारण भारत की एक विशिष्ट छवि फिर से निर्मित हो रही है।

सार्क या जी-20 का सम्मेलन यदि भारत नहीं बुलाता तो कहीं से आलोचना नहीं होती, पर हमारी राष्ट्र की अवधारणा में भारत के नेता के रूप में प्रधानमंत्री का दायित्व है कि ऐसे समय में वह विश्व की चिंता करें। सार्क सम्मेलन भी केवल भाषणों तक सीमित नहीं रहा। भारत ने कोरोना से लडऩे के लिए एक कोष बनाने का प्रस्ताव रखा, अपनी ओर से एक करोड़ डॉलर का शुरुआती योगदान किया और यह वादा किया कि सभी सार्क देशों को अपनी विशेषज्ञता तथा संसाधन उपलब्ध कराएगा। जिन देशों को डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की आवश्यकता होगी, उन्हें वह सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी। जी-20 की बैठक को भी अपने दृष्टिकोण से परिणाम तक पहुंचाने की कोशिश भारत ने की और एक हद तक सफल रहा। प्रधानमंत्री ने इसमें कहा कि हम ज्यादातर आर्थिक मुद्दों पर बात करते रहे हैं जबकि हमारे सामने अनेक वैश्विक मुद्दे हैं जिन्हें संभालने की जरूरत है। उन्होंने संपूर्ण मानव जाति के लिए एक नए वैश्वी करण की शुरुआत करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने एक अधिक अनुकूल, उत्तरदायी और सस्ती जन स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने की बात की जो विश्व स्तर पर स्वास्थ्य संकट से निपटने में मददगार हो। कोरोना संकट ने साबित किया है कि विश्व स्तर पर ऐसी कोई प्रभावी प्रणाली है ही नहीं। डब्लूएचओ इस संकट में कमजोर और दिशाहीन संगठन के रूप में सामने आया है।

इस नाते भारत ने स्पष्ट कहा कि इसमें संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है। मोदी ने वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए एक नया संकट प्रबंधन प्रोटोकॉल विकसित करने पर भी जोर दिया जिसे सभी देशों ने स्वीकार किया। इन बैठकों के द्वारा भारत ने विश्व के प्रमुख देशों के नेतृत्व का जमीर जगाने और स्वास्थ्य से लेकर मानव कल्याण तक के संदर्भ में नई विश्व व्यवस्था की आवश्यकता पर विचार के लिए उन्हें प्रेरित करने की कोशिश की। बात कहां तक जाएगी, इसका कितना असर होगा, कहना कठिन है लेकिन इसका कुछ असर निश्चित रूप से हुआ। ज्यादातर नेताओं ने माना कि हमें कोरोना महामारी से उबरने का हरसंभव प्रयास करने के साथ-साथ स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर से निपटने को भी प्राथमिकता देनी है। समूह द्वारा 5 खरब डॉलर का कोष बनाने का जो निर्णय लिया गया है, उसका लाभ पूरे विश्व को मिलेगा। प्रधानमंत्री ने विश्व भर के अपने राजदूतों और उच्चायुतों से बात की तो उनसे भी यही कहा कि हमें भारतीयों की चिंता करने के साथ-साथ यह भी देखना है कि जिस देश में आप हैं, वहां के लिए या कर सकते हैं। महामारी में फंसे देशों से भारतीयों के अलावा दूसरे देशों के नागरिकों को भी भारत ने निकाला है। विश्व मानवता की दृष्टि से भारत की यह भूमिका इतिहास का अमिट अध्याय बन सकती है।

अवधेश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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