महापंचायत से किसानों को मिलेगा बल

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केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कृषि कानून के विरोध में जहां किसान संगठन लगभग दस माह से सक्रिय हैं, वहीं किसानों का आंदोलन वेस्ट में नई सियासत को जन्म दे रहा है। सात वर्ष पहले हिन्दु-मुस्लिमों के बीच खुदी खाई भी इस आंदोलन की बदौलत पटती दिखाई दे रही है। 5 सितंबर को मुजफरनगर के जीआईसी मैदान में संयुक्त किसान मोर्चा के द्वारा आयोजित महापंचायत में भाकियू प्रवता राकेश टिकैत का यह कहना कि अल्लाहु अकबर व हर-हर महादेव के नारे साथ-साथ लगते रहेंगे। इस बात को जन्म दे रहा है कि कवाल कांड के बाद जो खाई हिन्दु- मुसलमानों के बीच पैदा हो गई थी वह अब पटने जा रही है। किसानों का आंदोलन ऐसे समय चल रहा है जब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। राजनीति विशेषज्ञ उम्मीद जता रहे हैं कि ये महापंचायत पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित करेगी। पिछले विधानसभा व लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुत बड़ी बढ़त पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मिली थी। यदि सरकार किसानों की मांगों को इसी तरह नजरअंदाज करती रही तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति करवट बदल सकती है।

यानी जो मतदाता पिछले चुनावों में क्षेत्रीय दलों की अपेक्षा राष्ट्रीय पार्टी को वरियता दे रहे थे, उनके सियासी विचारों में परिवर्तन हो सकता है। महापंचायत के मंच भाकियू प्रवता राकेश टिकैत का यह कहना कि उनकी लड़ाई मिशन यूपी या मिशन उत्तराखंड नहीं बल्कि देश को बचाने के लिए है। इस बात को स्पष्ट करता है कि यदि सरकार किसानों की मांगें नहीं मानती तो यह आंदोलन लंबा चलेगा जो यूपी विधानसभा चुनाव को प्रभावित कर सकता है। राकेश टिकैत का यह कहना कि हम यहां दंगा नहीं होने देंगे। यह देश हमारा है, यह प्रदेश हमारा है, यह जिला हमारा है। देश में कैमरा और कलम पर बंदूक का पहरा है। आगे भी आंदोलन जारी रहेगा। इस दिशा की ओर संकेत कर रहा है कि अब प्रदेश में विशेषकर वेस्ट यूपी में संप्रदायिकता को बढ़ावा नहीं मिलेगा। अब से दस वर्ष पहले जो माहौल था, वह फिर से कायम हो सकेगा। जिससे गंगा जमुनी तहजीब को बढ़ावा मिलेगा। उनका यह कहना कि यह लड़ाई सिर्फ किसानों की नहीं, बल्कि नौकरीपेशा, मजदूर, मेहनतकश समेत सभी वर्गों की है। इस बात को बल दे रहा है कि किसानों इस आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन बनाया जाए, जिसमें सभी की भागेदारी हो।

दूसरी ओर सत्तारुढ़ दल भाजपा के सांसद वरुण गांधी का ट्वीट द्वारा यह कहना कि आंदोलन चला रहे किसान मजदूर अपने ही खून हैं, इस बात का तर्क है आंदोलित किसानों के साथ विपक्षी पार्टियां ही नहीं बल्कि सत्ता पक्षा के लोग भी अंदरखाने लगे हुए हैं। वह भी किसानों के साथ अंदरखाने सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। इस महापंचायत में गठवाला व बालियान खाप का एक होना इस तर्क को प्रबल कर रहा है कि किसानों की मांगों को लेकर आंदोलनकारी किसानों में एकता व भाईचारा को बढ़ावा मिलेगा। दोनों खापों की दूरियों को कम करने के लिए महापंचायत की अध्यक्षता गठवाला खाप के थाम्बेदार श्याम सिंह मलिक से कराई गई। गठवाला खाप का पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में अच्छा खासा वर्चस्व है। वेस्ट यूपी और हरियाणा में गठवाला गोत्र के गांव बहुतायत में हैं। मांगे पूरी होने तक सभी वर्ग आंदोलन को मजबूती से चलाने के लिए एकता का सुबूत देंगे। इस महापंचायत से जहां आंदोलित किसानों के साहस में वृद्धि होगी वहीं वेस्ट की सियासत में प्रभाव के इम्कान नजर आ रहे हैं।

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