ममता को बहुमत सिद्ध करने की चुनौती

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जैसे-जैसे पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं, वैसे ही वहां का सियासी पारा चढ़ रहा है। जहां भाजपा और असदुददीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम मौजूदा साारुढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस चुनाव में कूदने की तैयारी कर रहे हैं, वहीं वाममोर्चा भी ममता के लिए चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। वाम मोर्चा के नेता अदुल मन्नान का कहना कि यदि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा का अधिवेशन नहीं बुलाती हैं तो उनकी पार्टी सरकार के लिए खिलाफ आंदोलन चलाएगी। उनका मानना है कि साारुढ़ पार्टी अपना बहुमत खो चुकी है। हालांकि अभी चुनाव में तीन-चार माह का समय है लेकिन विपक्षी पार्टियां टीएमसी पर लगातार दबाव बनाने में जुटी हुई हैं। इसको देखकर लगता है कि विधानसभा चुनाव से पहले ही ममता बनर्जी कई मुश्किलों से घिरी हुई हैं। एक ओर जहां भाजपा उनके सामने मजबूत चुनौती पेश कर रही है तो वहीं कांग्रेस और वाम मोर्चा ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। वाम-कांग्रेस गठबंधन ने ममता सरकार के सामने एक और बड़ा संकट बहुमत सिद्ध करने की मांग करके खड़ा कर दिया है। मन्नान का मानना है कि टीएमसी सरकार अल्पमत है।

हालांकि पश्चिम बंगाल चुनाव में अभी भी तीन चार महीने बचे हुए हैं। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर विपक्ष लगातार दबाव बनाने में जुट गया है। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि टीएमसी फिलहाल अंदरूनी कलह से जूझ रही है। कई नेता पार्टी छोड़ चुके हैं और कई नाराज चल रहे हैं। यही कारण है कि फिलहाल तृणमूल कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व असहज महसूस कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस पर इसी दबाव को देखते हुए विपक्षी दल लगातार उस पर हमला कर रहे हैं। कांग्रेस और वाम मोर्चा के गठबंधन को उम्मीद है कि जब विश्वास मत के लिए वोट डाले जाएंगे तो टीएमसी के कई विधायक ममता बनर्जी के खिलाफ जा सकते हैं। मन्नान का कहना है कि टीएमसी के कितने विधायक पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं और कितने आ रहे हैं इसके बारे में तो वह कुछ नहीं कह सकते लेकिन जिस तरीके की बातें हो रही है उससे हम सब हैरान हैं। उनका यह कहना कि अगर तृणमूल कांग्रेस में कोई सामूहिक पलायन नहीं हुआ है तो आपको विधानसभा में विश्वास मत कराना चाहिए। इस बात का संकेत है पश्चिम बंगाल में सियासी उथल-पुथल शुरू हो चुकी है।

क्योंकि भाजपा लगातार यह दावा कर रही है कि चुनाव से पहले ऐसे कई विधायक और मंत्री है जो टीएमसी छोड़कर भगवा पार्टी में शामिल होंगे। यदि विपक्षी पार्टियों की इसी तरह की लामबंदी रही तो आने वाला समय ममता बनर्जी के लिए चुनौती पूर्ण होगा। राज्य के सियासतदां का का मानना है कि जिस तरह से विपक्षी पार्टी अपनी चुनावी तैयारी में जुटी हुई है और असदुददीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम भी इस बार चुनावी ताल ठोकने की तैयारी कर रही है उससे लग रहा है कि टीएमसी का मुस्लिम वोट बैंक खिसकने की संभावना है। हालांकि अभी हाल ही में हुई पदयात्रा के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वहां संघर्ष कर रही भाजपा को तीस सीटें ही जीतने की चुनौती दे डाली है। यह तो समय ही बताएगा कि पश्चिम बंगाल में ममता का जादू बरकरार रहेगा या विपक्र्षी पार्टियों की कोशिशें कामयाब होंगी लेकिन ऐसा लग रहा है कि पश्चिम बंगाल अब सियासत की नई हवा खाने की फिराख में है। ममता का परंपरागत वोट बैंक जितना खिसकेगा उतना ही टीमएस के लिए साा बरकरार रखने के लिए ममता को संघर्ष करना होगा।

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