मतवाली चाल का समय ही कहां बचा?

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तकरीबन पांच साल में जो भी मोदी सरकार ने किया वो दुनिया के सामने है लेकिन जाते-जाते आखिर बड़ा काम केवल ये बचा है कि वो पहली फरवरी को अंतरिम बजट में क्या गुल खिलाती है? देश का हाईस्कूल का बच्चा भी बता सकता है कि ये बजट भले ही तीन महीने के वास्ते हो लेकिन घोषणाएं चुनावी रास्ते को देखते हुए ही होंगी ये तय है।

मोदी सरकार के दिन गिने-चुने रह गए हैं। अगली बार जो भी जनादेश हो उसके बाद चाहे अबकी बार फिर मोदी सरकार का सपना साकार हो लेकिन मौजूदा सरकार की उल्टी गिनती चालू है। तकरीबन पांच साल में जो भी मोदी सरकार ने किया वो दुनिया के सामने है लेकिन जाते-जाते आखिरी बड़ा काम केवल ये बचा है कि वो फरवरी को अंतरिम बजट में क्या गुल खिलाती है? देश का हाईस्कुल का बच्चा भी बता सकता है कि ये बजट भले ही तीन महीने के वास्ते हो लेकिन घोषणाएं चुनावी रास्ते को देखते हुए ही होंगी ये तय है। जो बातें संसद में की जाएंगी वो अगली आने वाली सरकार के नौ महीनें पर भी निशाना साधेंगी ये भी तय है। विपक्ष भी अपनी ओर से निशाने साधेंगी ये भी तय है। विपक्ष भी अपनी ओर से निशाना साधेगा इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। जनता भी समझती है सब चुनावी खेला है तो फिर ऐसे में ये सवाल तो उठने लाजिमी हैं कि आखिर मोदी सरकार के तरकश में ऐसा कौन सा तीर बचा है जो इस बार अंतरिम बजट में उनकी चाहत में जनता पगला जाए और दनादन ईवीएम को कमल से भर डाले? चार बार के बटज में जो मोदी सरकार ने किया अगर उसका विश्लेषण ही किया जाए तो साफ झलकता है कि सोच अच्छी होने के बावजूद किस तरह योजनाओं पर पानी फेरा जाता है कोई देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली से सीखे। वो तो अच्छा है इस बार बीमारी के कारण बजट पेश नहीं कर रेह हैं वरना कम से कम देश की जनता को जेटली से तो किसी तरह की कोई आस न थी, ना है।

याद करिए पहला बजट तब सरकार ने ऐसे सब्जबाग दिखाए थे जैस देश में राम राज आने ही वाला है। बेरोजगारी, इंफ्रास्ट्रक्चर और भ्रष्टाचार के खात्मे के ढोल पीटे गए थे। इसके लिए कड़े आर्थिक सुधार की चेतावनी भी दी गई थी लेकिन सामने क्या आया? आखिर तेज विकास व गरीबी उन्मूलन का वो दवा हवाई क्यों साबित हुआ? दूसरे बजट में जेटली ने दावा किया था कि सरकार ने 9 महीनें में ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला दिया है और भारत सबसे तेज विकास व गरीबी उन्मूलन का वो दावा हवाई क्यों साबित हुआ? दूसरे बजट में जेटली ने दावा किया था कि सरकार ने 9 महीने में ही अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला दिया है और भारत सबसे तेज दौड़ने वाली अर्थव्यवस्था का देश है लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? अर्थव्यवस्था का देश है लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? अर्थव्यवस्था क्या पटरी पर है? 82 लाख से ऊपर का देश पर कर्जा। ठीक ऐसा हाल-कर्ज लेकर घी पीने की कहावत चरितार्थ। इस बजट में 12 करोड़ से ज्यादा परिवारों को आर्थिक मुख्यधारा में लाने के दावे भी किए गए थे। कितने और कौन-कौन परिवार आए सरकार के पास ब्यौरा तक नहीं। तीसरे बजट में मोदी सरकार ऐसा कोई करिश्मा नहीं कर पाई थी जिसे देखकर कहा जाता कि देश कांग्रेस के खराब शासन के बाद अब सही हाथों में है? चौथा बजट भी ऐसी कोई छाप नहीं छोड़ पाया था। नोटबंदी के बाद पेश हुआ था। जीडीपी पर भी ब्रेक लग गए थे। फिर जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने से व्यापारी तबका निराशा के भंवर में गोते लगाने लगा था। ना नोटबंदी को बेहतर ढंग से लागू किया गया और जीएसटी में तो अब तक तब्दीलियां का दौर चल ही रहा है। तो अंदाजा लगाईए, इस बार बजट में क्या होगा?

किसानों के लिए कुछ हो या ना हो लेकिन तय मानिए अंतरिम बजट पेश करते हुए ऐसी-ऐसी बातें की जाएंगी जैसे अगली बार अगर मौका नहीं मिला तो देश गर्त में चला जाएगा और इसके लिए जिम्मेदार होगी देश की जनता। तीन राज्यों की हार से तमाम रणनीतियां पार्टी की भी बदली हैं और मोदी सरकरा चाल भी बदलचा चाहती है लेकिन अब इतना वक्त ही नहीं बचा कि मतवाली चाल के लिए कोई सर्जरी ही हो सके। अब आखिरी बार अंतरिम बजट के बहाने देश को बताना भी है और जनता को बरगलाना भी है। ये बात दीगर है कि असर कितना होता है?

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