मकर संक्रान्ति

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Makar-Sankranti
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भगवान सूर्य की आराधना का विशेष पर्व है मकर संक्रान्ति
धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे सूर्यदेव, सम्पूर्ण दिन रहेगा संक्रान्ति का पुण्यकाल
तिल के दान से होगा समस्त पापों का शमन

भारतीय हिन्दू सनातन धर्म में हर मास के व्रत त्यौहार का अपना खास महत्व है। मकर संक्रान्ति अपनी-अपनी रीति-रिवाज के अनुसार सम्पूर्ण भारतवर्ष में हर्ष, उमंग-उल्लस के साथ मनाने की धार्मिक मान्यता है। भगवान सूर्य की आराधना का विशेष पर्व मकर संक्रान्ति जम्मू-कश्मीक व पंजाब में लोहड़ी के नाम से जाना जाता है। जबकि दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से विख्यात है। सूर्यग्रह का धनुराशि से मकर राशि में प्रवेश होने पर यह पर्व मनाया जाता है। प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि मकर संक्रान्ति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते हैं। मकर संक्रांति का पर्व दक्षिणायन के समाप्त होने पर उत्तरायण के शुरू होने पर मनाया जाता है। दक्षिणायन देवताओं की रात्रि तथा उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है। उत्तरायण की 6 माह की अवधि उत्तम फलकारक मानी गई है। मकर संक्रान्ति के दिन तिल से बने पकवान ग्रहण करना शुभ फलदायी माना गया है। इस दिन खिचड़ी पर्व मनाया जाता है। जिसके फलस्वरूप चावल एवं काले उड़द दाल से बनी खिचड़ी खाने व दान का विशेष महत्व है। मकर संक्रान्ति पर खरमास की समाप्ति मानी जाती है। इसी दिन से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आने शुरू हो जाते हैं। जिसके फलस्वरूप रात्रि छोटे व दिन बड़े होने लगते हैं। मौसम में भी परिवर्तन शुरू हो जाता है। इस बार सूर्यग्रह 14 जनवरी, सोमवार को धनुराशि से रात्रि 7 बजकर 52 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने पर संक्रान्ति होती है। मकर संक्रांति के पर्व पर प्रयाग में संगम स्नान का बड़ा महत्व है। मंगलवार, 15 जनवरी, सोमवार को गंगा स्नान व अपने आराध्य देवी-देवता के स्मरण करने के पश्चात अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान-पुण्य आदि करना चाहिए। इस दिन प्रातःकाल तिल का तेल व उबटन लगाकर तिल मिश्रित जल से स्नान करना विशेष फलदायी माना गया है। तिल का दान व इनका उपयोग करने पर समस्त पापों का शमन होता है। मकर संक्रान्ति के दिन किए गए दान से पुनर्जन्म होने पर उसका सौगुना फल प्राप्त होता है।

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पूजा का विधान – प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि मकर संक्रान्ति के दिन भूदेव (ब्रह्मण) को तिल व गुड़ से बने व्यंजन, काले तिल, ऊनी वस्त्र, कम्बल, मिष्ठान एवं अन्य वस्तुएं आदि दान देना का विधान है। अन्य वस्तुएं दक्षिणा (नगद द्रव्य) के साथ दान करना चाहिए। दान देने से अक्षय पुण्यफल की प्राप्ति होती है। आज के दिन भगवान शिवजी के मन्दिर में तिल व चावल अर्पित करके तिल के तेल का दीपक जलाना सुख-समृद्धिकारक माना गया है। विशजी का घृत से अभिषेक करके बिल्वपत्र अर्पित करना पुण्य फलदायी रहता है। आज के दिन भगवान भास्कर को अष्टदल कमल पर आवाहन करके उनकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करने के सुख-समृद्धि खुशहाली मिलती है। भगवान सूर्यदेव की महिमा में श्रीआदिल्यह्रदय स्तोत्र, श्रीआदिल्यह्रदय श्रीसूर्यसहस्त्रमान, श्रीसूर्य चालीसा आदि का पाठ करना चाहिए। सूर्यग्रह से सम्बन्धित मन्त्रों का जप करना विशेष लाभकारी रहता है।

पौराणिक्य मान्यता के अनुसार यशोदा ने आज के दिन श्रीकृष्ण के जन्म के लिए व्रत रखा था। उसी दिन से मकर संक्रान्ति के व्रत की परम्परा शुरु हुई थी। पुराणों के अनुसार सूर्य के मकर राशि यानि उत्तरायण में होने पर यदि व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा मोक्ष को प्राप्त करती है। आत्मा को जन्म-मृत्यु के बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। महाभारत काल में अर्जुन के बाणों से घायल भीष्म पितामह ने गंगातट पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का 26 दिनोंतक इन्तजार किया था। इच्छामृत्यु का वरदान मिलने के कारण मोक्ष की प्राप्ति के लिए सूर्य के उत्तरायण होने तक जीवित रहे।

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