मंदी पर अजीब तर्क

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मंदी पर विपक्ष घेर रहा है और मोदी सरकार के मंत्री ऐसे तर्कों का सहारा लेने की कोशिश कर रहे हैं जिससे इकनॉमी की फटेहाली छुपने के बजाय और उजागर हो रही है। देश की वित्तमंत्री का तर्क कुछ इसी तरह का है। उनका कहना है कि उबेर और ओला जैसे ट्रांसपोर्ट के वैकल्पिक संसाधनों के बढऩे से लोग वाहन कम खरीद रहे हैं इसीलिए ऑटो सेक्टर में वाहनों की बिक्री पर असर पड़ा है। अब इस तरह की लीपापोती की तो उम्मीद नहीं की जा सकती लेकिन यह हो रहा है तो झुठलाया भी तो नहीं जा सकता। मंदी के पीछे बेशक वैश्विक कारण है लेकिन भारत की मंदी का एक मात्र यही सच नहीं है इसे स्वीकारा जाना चाहिए। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ठीक कहा है की देश के भीतर की मंदी मानव निर्मित है तो इस पर विचार करके उन वजहों को दूर करने की दिशा में कदम बढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन हो उल्टा रहा है नित नए तर्क गढऩे की कवायद हो रही है जिससे तस्वीर अभी कई तिमाही नहीं बदलने वाली ऐसी बात अर्थशास्त्री कहते है तो उससे सचेत होने की जरूरत है न कि दांये बांये देखने की।

हालांकि पिछली कई तिमाहियों से अर्थव्यवस्था में आ रही लगातार सुस्ती के बाद मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने केंद्र सरकार की नीतियों का बचाव किया। 2019-20 की पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर घटकर 5 फीसदी के आंकड़े पर आ गई है जो साढ़े 6 साल का निचला स्तर है। इस पर सुब्रमण्यन ने कहा है कि केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था में रफ्तार लाने के लिए कई उपाय कर रही है, जो वित्त मंत्री की हालिया घोषणाओं में झलकती है। उन्होंने कहा कि सरकार पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य हासिल करने तथा अर्थव्यवस्था की सेहत को सुधारने के लिए सजग है। पस्त होती अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए 23 अगस्त को की घोषणाओं के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सरकारी बैंकों के मेगा कंसॉलिडेशन प्लान की घोषणा की। इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकार को लाभांश और अधिशेष पूंजी के रूप में 1.76 लाख करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि हस्तातंरित करने का फैसला किया।

यह पूंजी मोदी सरकार के लिए आर्थिक सुस्ती से लडऩे का उपयुक्त हथियार साबित होगी और यह निवेश बढ़ाने के साथ-साथ क्षेत्रवार प्रोत्साहन पैकेज देने में भी मददगार होगी। विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों ने कहा कि आरबीआई से मिलने वाली पूंजी का इस्तेमाल उधारी घटाने, 3.3 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत व्यय योजना के वित्तपोषण, बैंकों के पुनर्पूंजीकरण और संकट में फंसे क्षेत्रों को प्रोत्साहन पैकेज देने में किया जा सकता है। वित्त मंत्रालय ने अब तक आरबीआई के अधिशेष उपयोग का खाका नहीं बनाया है। विशेषज्ञों ने कहा कि 50,000 करोड़ रुपये के अधिशेष कोष का उपयोग बुनियादी ढांचे में निवेश करके पूंजी निर्माण करने या बैंकों का पुनर्पूंजीकरण करके उनकी ऋण देने की क्षमता को बढ़ाने में किया जा सकता है। फिलहाल यह मानने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि देश की अर्थव्यवस्था त्रासद मोड़ पर है। यदि सच्चाई से मुँह मोडऩे के बजाय सही दिशा में एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाय तो अर्थव्यवस्था पटरी पर आ सकती है। इन्फार्मल इकोनॉमी की रेंज बहुत बड़ी है इसको ध्यान में रखकर कदम उठाया जाए तो चुनौतियां थोड़ी कम हो सकती है।

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