महान नेता बाल गंगाधर तिलक ने मोहल्ले दर मोहल्ले सार्वजनिक गणेश पूजन प्रारंभ किया। सदियों से घरों में गणपति पूजा की जाती थी परंतु इसे सार्वजनिक मंच देकर तिलक ने मंच से स्वतंत्रता का अलख जगाने वाले कार्यक्रम आयोजित करने की परंपरा प्रारंभ की। मंच पर वाद-विवाद और गायन प्रतियोगिताओं के आयोजन का उद्देश्य भी यह था कि पूजा-पाठ के मंच से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का प्रारंभ किया जा सके। ब्रिटिश अधिकारी पूजा-पाठ के कार्यक्रम में हस्तक्षेप नहीं करते थे। गंगाधर तिलक ने इसी का लाभ राष्ट्रप्रेम की अलख जगाए रखने के लिए किया। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद बाल गंगाधर तिलक और दार्शनिक गोखले से मुलाकात की। गोखले ने उन्हें कहा कि स्वतंत्रता के लिए संग्राम छेड़ने के पहले वे भारत की यात्रा करके भारत के आम आदमी के सपनों और डर की जानकारी प्राप्त करें।
गणपति उत्सव का मुख्य केंद्र प्रारंभ से महाराष्ट्र रहा जैसे श्री कृष्ण की पूजा और गरबा खेलने का मुख्य केंद्र गुजरात रहा। स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभिक दौर में नेतृत्व बाल, लाल और पाल के इर्द-गिर्द घूमता रहा। बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र, लाला लाजपत राय ने पंजाब और विपिन चंद्र पाल ने बंगाल क्षेत्र में काम किया।
विपिन पाल के पुत्र निरंजन पाल क्रांतिकारी दल के सदस्य थे और उन्हें परिवार ने लंदन भेज दिया ताकि वे हिंसा से दूर रहें। निरंजन पाल ने लंदन में रंगमंच का अध्ययन करके अंग्रेजी भाषा में नाटक लिखे, जिनका मंचन भी लंदन में हुआ। लंदन में ही हिमांशु रॉय, देविका रानी और निरंजन पाल की मित्रता पनपी।
निरंजन की प्रेरणा से हिमांशु राय ने जर्मनी जाकर सिने विधा की जानकारियां प्राप्त कीं। इन तीनों ने ही भारत आकर फिल्म निर्माण कंपनी ‘बॉम्बे टॉकीज’ की स्थापना की। निरंजन पाल ने प्रारंभिक सारी फिल्में लिखीं। समाज में व्याप्त कुप्रथा के खिलाफ अशोक कुमार अभिनीत ‘अछूत कन्या’ का निर्माण हुआ। शांताराम ने कोल्हापुर में फिल्म निर्माण किया। बाद में उन्होंने पूना में प्रभात स्टूडियो की स्थापना की।
गौरतलब है कि सार्वजनिक गणेश उत्सव मुंबई के लालबाग क्षेत्र में धूमधाम से दशकों से मनाया गया है। उत्सव के समापन के बाद एक सार्वजनिक मंच पर दान पेटियों के ताले खोले जाते हैं और चढ़ावे मे आई धन राशि तथा सोने-चांदी के आभूषणों का ब्यौरा तैयार किया जाता रहा। इस धन को साधनहीन वर्ग के विकास में खर्च किया जाता रहा है। कुछ छात्रों ने इसी धन की सहायता से पढ़ाई की और समाज की सेवा की है। धार्मिक अनुष्ठान द्वारा चढ़ावे की रकम से समाज सुधार के कार्य किए गए।
महामारी के दौर के चलते इस वर्ष सार्वजनिक गणेश मंडलों को हिदायत दी गई है कि किसी तरह की भीड़-भाड़ नहीं की जाए और संयम तथा अनुशासन से पूजा-पाठ किया जाए। दरअसल आस्था क्षेत्र का आधार, नियम संतुलन और संयम ही होता है। बुद्धि के प्रतीक देवता का स्मरण मन मंदिर में किया जाना चाहिए।
कुछ फिल्मों में सार्वजनिक गणपति उत्सव और मूर्ति विर्सजन को फिल्माया गया है। फिल्म ‘दर्द का रिश्ता’ में विसर्जन का सीन ग्यारह कैमरों द्वारा शूट किया गया था। राम गोपाल वर्मा ने अपनी एक फिल्म के क्लाइमैक्स में रोंगटे खड़े कर देने वाला एक कत्ल का प्रसंग शूट किया था।
गणेश विसर्जन की भीड़-भाड़ में गोपाल ने यह दृश्य फिल्माया था यह फिल्म संगठित अपराध जगत विषय पर आधारित थी। गोया कि ‘अग्निपथ’ को दूसरी बार बनाया गया, जिसमें गणेश विसर्जन पर एक ऐसा ही दृश्य फिल्माया गया था। ज्ञातव्य है कि वेदव्यास द्वारा सुनाई गई महाभारत को श्री गणेश ने ही लिपिबद्ध किया था। ज्ञान के देवता गणेश के उपदेशों की मनमानी व्याख्या की जा रही है। इस घातक प्रवृत्ति से कोई ग्रंथ बच नहीं पा रहा है।
जयप्रकाश चौकसे
( लेखक फिल्म समीक्षक हैं ये उनके निजी विचार हैं)