भारत में फील्ड मार्शल और सीडीएस

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जनरल बिपिन रावत को सेना प्रमुख के पद से रिटायर होने के साथ ही देश का पहला सेना प्रमुख याकि‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (सीडीएस) बना ही दिया गया। साल के अंतिम दिन उन्हें इस पद पर नियुक्त किया गया। इससे पहले हम लोगों ने सेना में फील्ड मार्शल जैसा ही सर्वोच्च पद का नाम सुना था। दरअसल इसमें भी एक अलग ही कहानी है। सेना के तीनों अंग, जल, थल व वायु सेना के प्रमुखों से भी बड़ा सम्मान फील्ड मार्शल का होता है। सैन्य प्रमुख फील्ड मार्शल कहलाता है जोकि पांच सितारो वाला अधिकारी होता है।

उसे पांच सितारा जनरल भी कहते हैं। वह जीवन भर इसी पद पर बना रहता है व रिटायर नहीं होता। उसें पेंशन की जगह अपना वेतन मिलता रहता है और वह सरकारी कार्यक्रमों में अपनी वर्दी पहनकर ही आता है। हुआ यह कि 1971 में नए देश बांग्लादेश के गठन में सैम मानेकशा की अभूतपूर्व भूमिका को ध्यान में रखते हुए इंदिरा गांधी ने उन्हें फील्ड मार्शल बना दिया था। इससे पहले यह सम्मान पद केएस करियप्पा को दिया गया था। नौ-सेना के इस पद को मार्शल ऑफ द एयर चीफ व नौ-सेना में मार्शल ऑफ द नेवी कहा जाता है।

जनरल बिपिन रावत का सम्मान वैसा नहीं है मगर वे तीनों सेनाओं के प्रमुखों के ऊपर माने जाएगे। वे 65 साल की आयु में 2023 में रिटायर होंगे। वे तीन साल तक इस पद पर रहेंगे। उन्हें चार स्टार वाला जनरल कहा जाएगा। मगर चीफ ऑफ द स्टाफ होने के बावजूद वे इन सेनाओं के कमांडर इन चीफ नहीं होंगे। वे तो सेना के एक विभाग के प्रमुख के रूप में काम करेंगे। जिसे सरकार ने इसके ऐलान करने के कुछ दिन पहले ही कैबिनेट की बैठक में निर्णय करके लिया था। सरकार ने तब सीडीएस की नियुक्ति करने के साथ ही सैन्य मामलों का नया विभाग बनाया था। ताकि तीनों सेनाओं के बीच बेहतर तालमेल बैठाया जा सके और सेनाओं की भावी योजनाओं को अच्छी तरह से तैयार किया जा सके।

सेना में यह पद सृजित करने का मामला काफी पहले से विचाराधीन रहा है। कारगिल युद्ध के बाद मंत्रियों के समूह ने तीनों सेनाओं व सरकार के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने के लिए सीडीएस को बनाए जाने की सिफारिश की थी। बाद में युद्ध के कारणों का पता लगाने के लिए गठित सुब्रमण्यम समिति ने भी इस पद की सिफारिश की थी। यह फैसला 15 अगस्त को प्रधानमंत्री ने लालकिले के अपने भाषण में सुनाया।

सीडीएस का काम तीनों सेनाओं के बीच तालमेल बैठाने, उनकी जरूरतो व समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने व उनकी लड़ाकू क्षमताओं को बेहतर बनाने का होगा। इससे अब सेना किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए बेहतर रूप से तैयार हो सकेगी। सीडीएस को सामान खरीद प्रक्रिया को पूरी करने के अधिकार भी दिए गए हैं। लंबी खरीद प्रक्रिया से अब छुटकारा पाया जा सकेगा। हालांकि जरूरतों की खरीद का जिम्मा पहले की ही तरह रक्षा विभाग के पास ही रहेगा। बावजूद इसके उसमें अब सीडीएस की भूमिका भी रहेगी। जैसे कि वायुसेना के लिए कितने विमान कहां से खरीदने है यह फैसला रक्षा विभाग ही करेगा। यहां सीडीएस की भूमिका सिर्फ सलाहकार के रूप में रहेगी।

भारत के अलावा कुछ अन्य देशों में भी यह पद है। इटली में इसे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ ही कहा जाता है। जबकि फ्रांस में इसका नाम द चीफ आफ स्टाफ आफ द आर्मीज कहते हैं। स्पेन में यह पद दा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के नाम से व चीन में द चीफ ऑफ द जनरल स्टाफ के नाम से जाना जाता है। जापान में चीफ ऑप द स्टाफ व कनाडा में यह पद चीफ ऑफ द डिफेंस स्टाफ कहलाता है। ब्रिटेन में भी इसे द चीफ ऑफ द डिफेंस स्टाफ कहते हैं।

जनरल बिपिन रावत 13 दिसंबर 2016 में थलसेना कें प्रमुख बने थे। उन्हें पूर्वी सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा, कश्मीर घाटी और पूर्वोत्तर में काम करने के पर्याप्त अनुभव है। खासतौर पर देश के अशांत इलाकों में उन्हें काफी अनुभव रहा है। उनके नेतृत्व में ही सितंबर 2016 में भारतीय सेना ने पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक कर वहां चल रहे आतंकी शिविरो को नष्ट किया था। यह कार्रवाई आतंकी हमले के जवाब में गई थी। वैसे यह बताना जरूरी हो जाता है कि हमारे देश में किसी पद की कीमत व गरिमा उस पद से न होकर उस पर बैठे चीफ व्यक्ति की सत्तारूढ़ दल से संबंधों के आधार पर होती है।

आज जनरल करियप्पा का नाम कोई नहीं जानता। जब इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशा को फील्ड मार्शल बनाया था तो उस समय पूरी दुनिया में उनका नाम चमका था। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति को सरकार द्वारा बाकायदा सेना प्रमुख की तरह स्टाफ भी दिया जाना चाहिए। वे कुछ साल बाद रिटायर हो गए। जब 1973 में तीसरा वेतन आयोग बना तो उसके प्रमुख बीबी लाल. ने कहते है कि इंदिरा गांधी के कहने से फील्ड मार्शल के पद वेतन व सुविधाओं में भारी कटौती की थी। इसकी वजह उन दिनों देश में फैली यह अफवाह भी थी कि वे इंदिरा गांधी का तख्ता पलटना चाहते है। सरकार ने उनके साथ व्यवहार में कहने को फील्ड मार्शल वाला रखा। वे अपने घर लौट गए और मरने के पहले कई साल तक तमिलनाडु विलिंगटन अस्पताल में भर्ती रहे। मरने के महज एक साल पहले तत्कालीन रक्षा सचिव शेखर दत्ता ने अस्पताल जाकर उन्हें 1.10 करोड़ रुपए का चैक दिया जोकि उनके वेतन की बकाया राशि का हिस्सा था। पिछली सरकार ने फिर से बहाल कर दिया था। बताते है कि उन्होंने शेखर दत्ता से पूछा कि क्या मुझे इस राशि पर कोई टैक्स अदा करना होगा तो उन्होंने जवाब दिया कि बहुत थोड़ा सा और सरकार इसे माफ कर सकती है। अगले साल 93 साल की आयु में उनका निधन हो गया और वे शहंशाहे आलम, दिल्ली दरबार में बैगेरत से इस दुनिया से चले गए।

विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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