पिछले हफ्ते हुए भारत-पाक मुठभेड़ ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की छवि को अपने-अपने लोगों के बीच चमका दिया है। नरेंद्र मोदी की भारत में और इमरान खान की पाकिस्तान में वाहवाही हो रही है। इमरान की तारीफ दुनिया भर में भी हो रही है। उनकी भलमनसाहत और उदारता के चर्चे चीनी, अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया में भी जमकर हो रहे हैं।
मोदी के बारे में अब यह माना जा रहा है कि वे खाली-पीली बोम मारने वाले नेता नहीं हैं। उन्होंने पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकियों के सफाए की कोशिश की है। लेकिन विदेशों में यह बहस चल पड़ी है कि पाकिस्तान के बालाकोट में भारत ने जो हमला किया और उसमें 300 या 350 आतंकियों के सफाए का जो प्रचार किया, वह शुद्ध झूठ है। इसी तरह पाकिस्तान के एफ-16 विमान को भी मार गिराना झूठ है।
एफ-16 के मिसाइल की टुकड़े प्रदर्शित करके भारत ने उलट यह सिद्ध कर दिया कि एफ-16 ने अपने मिसाइल से भारतीय मिग-21 विमान को गिरा दिया लेकिन पाकिस्तानी एफ-16 का कुछ अता-पता नहीं है। पाकिस्तान का दावा है कि उसने एफ-16 उड़ाया ही नहीं। ये दावे और उल्टे दावे अब जोर पकड़ेंगे। अंदरुनी राजनीति में अब खलबली मचेगी। यदि भारत सरकार इन सवालों को उठाने वालों को देशद्रोही कहकर अपना दामन बचाना चाहेगी तो वह उसे और ज्यादा उलझा लेगी।
यदि वह अपनी और हमारी सेना की बहादुरी के प्रमाण दे दे तो इसमें कोई बुराई नहीं है। हमारा कोई गोपनीय रहस्य दुश्मन पर उजागर नहीं होने वाला है। सरकार, मोदी और फौज के सम्मान में चार चांद लग जाएंगे। इस मुठभेड़ का राजनीतिक फायदा उठाने की प्रक्रिया देश में जो शुरु हुई है, वह अजाम तक पहुंचेगी। इस मुठभेड़ पर राजनीति न करें, यह कहना वैसा ही है जैसे आप किसी दुकानदार से यह कहें कि तू मुनाफा क्यों कमा रहा है ?
भारत के पक्ष और विपक्ष के नेता, दोनों ही राजनीति कर रहे हैं। अबू धाबी के इस्लामी सहयोग संगठन ने भी जमकर राजनीति की है। भारतीय विदेश मंत्री को बुलाकर उसका भाषण करवा दिया और बाद में एक प्रस्ताव पारित करके भारत को ‘आतंकवादी राष्ट्र’ घोषित कर दिया। उसने 50 साल पुराना राग कश्मीर भी बजा दिया। इसलिए मोदी चाहे अपनी पीठ खुद ही ठोकते रहें लेकिन यह जरुरी है कि लोगों के बीच फैलते भ्रम को भी दूर करें ।
डॉ. वेदप्रताभ वैदिक
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है।)