हमारे रक्षामंत्री राजनाथसिंह और विदेश मंत्री जयशंकर की यह अमेरिका-यात्रा दोनों देशों के संबंधों में कुछ नए आयाम जोड़ रही है। अब दोनों देश जब शस्त्र-निर्माण में आपसी सहयोग करेंगे तो गैर-सरकारी शस्त्र-निर्माताओं को वे गोपनीय तकनीकी जानकारी भी दे देंगे। यह समझौता दोनों देशों के शस्त्र-निर्माण उद्योग को नया आयाम प्रदान करेगा लेकिन भारत के कुछ विपक्षी दल कह सकते हैं कि यह समझौता मोदी सरकार ने इसलिए किया है कि वह अपने कुछ प्रिय पूंजीपतियों को विशेष लाभ पहुंचाना चाहती है। ऐसे आरोप फ्रांस के साथ हुए रक्षा-समझौते के दौरान भी लगाए गए थे। जो भी हो, इसमें शक नहीं है कि यदि शस्त्र-निर्माण का कार्य निजी क्षेत्रों में बढ़ेगा तो उम्मीद यही है कि वह बेहतर होगा और शस्त्रों की कीमतें भी यथोचित होंगी। तीसरी दुनिया के देशों को उचित कीमतों पर भारत का शस्त्र-निर्यात काफी बढ़ सकता है।
दोनों मंत्रियों को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मिलने का समय दिया, यह भी उल्लेखनीय घटना है, क्योंकि कल ही उनके विरुद्ध महाभियोग का मुकदमा अमेरिकी कांग्रेस के निम्न सदन ने पारित किया है। ट्रंप ने भारत की नीतियों का समर्थन तो किया ही, अमेरिका के रक्षा मंत्री मार्क एस्पर और विदेश मंत्री माइक पोंपिओ ने पाकिस्तान से पैदा हो रहे आतंकवाद की भी कड़ी भर्त्सना की और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन से भी उस पर दबाव डलवाने का वादा किया। उन्होंने दोनों देशों की सेनाओं के तीनों अंगों के मिले-जुले अभ्यास की बात भी कही। अमेरिकी नेताओं ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए चीन की भी कुछ आलोचना की।
लेकिन भारत बचा हो, ऐसा भी नहीं है। भारत में चल रहे नागरिकता-कानून विरोधी आंदोलन का जिक्र जरुर किया गया और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात भी पोंपिओ ने जोर देकर कही। इस यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका व्या
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं