भागवत और मोदी : हिम्मत का सवाल तो फिर बवाल क्यों ?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने मुसलमानों के बारे में जो हिम्मत दिखाई, यदि नरेंद्र मोदी चाहते तो वैसी हिम्मत वे चीन के बारे में भी दिखा सकते थे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे होने पर चीन के राष्ट्रपति शी जिन फिंग को अनेक राष्ट्राध्यक्षों ने बधाइयां दीं लेकिन हमारे मोदीजी चुप्पी खींच गए, हालांकि दोनों की काफी दोस्ती रही है। मोदी की मजबूरी थी, क्योंकि वे बधाई देते तो कांग्रेसी उनके पीछे पड़ जाते। वे कहते कि गलवान घाटी पर हमला बोलने वाले चीन से सरकार गलबहियां कर रही है। उधर 4 जुलाई को अमेरिका का 245 वां जन्म-दिवस था। मोदी ने बाइडन को बड़ी गर्मजोशी से बधाई दी। यह बिल्कुल ठीक किया लेकिन अब पता नहीं कि चीन के स्थापना दिवस (1 अक्तूबर) पर वे उसको बधाई भेजेंगे या नहीं ? इसी प्रकार 1 अगस्त को चीन की पीपल्स आर्मी के जन्म दिन पर क्या हमारा मौन रहेगा?

15 अगस्त के मौके पर शी जिन फिंग की भी परीक्षा हो जाएगी लेकिन इनसे भी बड़ा सवाल यह है कि ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन इस साल दिल्ली में होना है। क्या उसमें चीनी राष्ट्रपति को हम बुलाएंगे और क्या वे आएंगे ? वैसे तो पिछले दिनों हुई शांघाई-बैठक में भारत और चीन के विदेश मंत्रियों ने सद्भावनापूर्ण भाषण दिए और एक-दूसरे पर कोई छींटाकशी नहीं की। गलवान-कांड पर दोनों देशों के फौजियों की वार्ता भी ठीक-ठाक चल ही रही है तो मैं सोचता हूं कि नरेंद्र मोदी को चीन को बधाई संदेश जरुर भेजना चाहिए था और उसमें यह साफ-साफ कहा जाना चाहिए था कि चीन के राष्ट्रपतिजी आप चीन को एक भयंकर शक्ति बनाने की बजाय प्रियंकर शक्ति बनाएं। चीन और भारत मिलकर दुनिया के सबसे उत्तम और प्राचीन आदर्शों के मुताबिक एक नई दुनिया पैदा करें और 21 वीं सदी को एशिया की सदी बनाएं।

मुझे खुशी है कि मोहन भागवत ने वही बात कहने का साहस कर दिखाया, जो बात आज तक किसी सरसंघचालक ने पहले कभी नहीं कही। यही बात अटलबिहारी वाजपेयी कभी सूत्र रुप में कहा करते थे और जिसका प्रतिपादन मेरी पुस्तक ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’ में मैंने काफी विस्तार से किया है। मोहनजी के ये वाक्य कितने गजब के हैं कि यदि कोई हिंदू यह कहे कि भारत में कोई मुसलमान नहीं रहना चाहिए, वह हिंदू नहीं हो सकता। सच्चे हिंदू के लिए सभी पंथ, सभी मजहब, सभी संप्रदाय, सभी धर्म बराबर हैं। कोई हिंदू हो या मुसलमान, हम सब एक हैं। भारतीय हैं।

हिंदुत्व के नाम पर गोरक्षा के बहाने जो लोग मानव-हत्या करते हैं, वे हिंदुत्व के विरोधी हैं। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई सख्ती से होनी चाहिए। हमारा संविधान सभी को समान सुरक्षा प्रदान करता है। इसीलिए ‘इस्लाम खतरे में हैं’, यह नारा भी खोखला है। क्या मोहनजी के अमृत-वाक्यों को भारत के हिंदुत्ववादी, संघ के स्वयंसेवक, भाजपा के करोड़ों सदस्य और मुसलमान भाई भी अमल में लाएंगे?

डा. वेद प्रताप वैदिक
(लेखक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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