नासी भी लोकतंत्र में अभिमत की भिन्नता स्वाभाविक है। इससे सभी तरह के विचारों के बीच एक समझ भी पैदा होने की संभावना उभरती है। लेकिन अपने दृष्टिकोण को लेकर कोई हिंसा पर उतरे, इसकी इजाजत तो नहीं दी जा सकती। नागरिगता संशोधन कानून को लेकर देश भर में जिस तरह भय की सियासत शुरू हो गई है, वो चिंताजनक है। दिल्ली में उपद्रव फैल रहा है। यूपी समेत कई राज्यों के विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुयमंत्री ने तो कई दिन से चल रहे विरोध को नेतृत्व देकर ऐसी स्थिति बना दी है, जिससे देश के अस्तित्व पर सीधा असर पड़ता है। अजीबो गरीब स्थिति है देश के सामने अर्थव्यवस्था की गंभीर चुनौतियां हैं और सरकार इस सबके बीच नये रास्ते तलाशने में जुटी हुई है ताकि सूरते हाल बदले लेकिन विरोध के नाम पर आगजनी और पथराव जैसी घटनाएं अवरोध की भूमिका निभा रही हैं।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सियासतदां माहौल को सुधारने के बजाय उसके और बिगडऩे की राह देख रहे हैं। एक पार्टी, दूसरी पार्टी से अलग होती है लेकिन सरकार तो सबकी होती है, सबके लिए होती है। यदि केन्द्र सरकार की नीतिगत व्यवस्था को धता बताना ही विपक्ष का धर्म हो गया है तो यह मनोवृात्ति ठीक नहीं है। केन्द्र और राज्य दोनों के अन्तर्संबंध जब सामान्य होते हैं तभी किसी भी नीति व योजना का प्रतिफल सामने आता है। नागरिकता संसोधन कानून को लेकर इस बात पर रोष है कि सिर्फ एक विशेष सम्प्रदाय को क्यों छोड़ दिया गया, यह अनुच्छेद 14, जो समानता की बात करता है, का खुला उल्लंघन है। जबकि कुछ विशेष वजहों को लेकर अतीत में भी देश के भीतर शरणार्थियों को राहत देने के उपाय हुए थे। ऐसा संसद में पहली बार नहीं हुआ है। इसके अलावा यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि जिन तीन देशों-पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंयकों को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों कानून वजूद में आया है, वो यदि संविधान की आत्मा के विपरीत है तो मामला सुप्रीम कोर्ट में है।
उसकी व्याया तो सबके लिए मान्य होगी। तब तक के लिए तो प्रतीक्षा होनी ही चाहिए थी। पर देश के भीतर इस तरह की अराजकता से किसी को क्या हासिल होने वाला है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी मंगलवार झारखण्ड की एक रैली में कांग्रेस पर निशाना साधते हुए पूछा है कि वे बताएं,क्या पाकिस्तान के हर नागरिक को नागरिकता दिया जाने के हक में हैं? यदि ऐसा है तो सरकार तैयार है। कुल मिलाकर इस नये कानून को लेकर एक कटुता भरा माहौल पैदा हो गया है। इसमें आम लोग जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, वे भी प्रभावित हो रहे हैं। बीते कई दिनों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदर्शन के चलते जनजीवन प्रभावित हो गया है। राजधानी की लाइफ लाइन मेट्रो आये दिन सुरक्षा कारणों से बंद की जा रही है। यह स्थिति तो किसी के लिए भी ठीक नहीं कही जा सकती। पर कुछ हैं, जो भय की सियासत में अपने लिए राह देख रहे हैं।