बैंक ग्राहकों का दर्द

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वाकई यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि किसी भी तरह का घोटाला होए दर्द ग्राहकों को भुकतना पड़ता है। बैंक में हुए अब तक के फ्राड का तो यही सच है। अभी हाल-फि लहाल में पंजाब-महराष्ट्र कोआपरेटिव बैंक में बड़े पैमाने पर हुए घोटाले के पर्दाफाश के बाद लाखों-करोड़ों पये उन ग्राहकों के फंस गए, जिनका कोई कसूर नहीं। ठीक है, संबंधित दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की तैयारी है। पर ग्राहकों के लिए अनिश्चितता का माहौल इसलिए है कि अभी तकना तो सरकार और ना ही आरबीआई की तरफ से प्रभावित ग्राहकों को ढांढस बंधाया गया है कि उनके फंसे पैसे का भविष्य क्या है। हालांकि पहले दस हजार पये और अनुरोध किए जाने पर 6 माह के भीतर 25 हजार रुपये तक पीएमसी निकालने की आरबीआई ने अनुमति दी है।

यह सोचने वाली बात है कि मुम्बई और महानगर कोई 4 हजार रुपये भला कैसे महीना गुजार सकता है। इसमें सबसे बुरा हाल तो सीनियर सिटीजन तबके का है, जिनके जीवन भर की कमाई बैंक में इस उम्मीद में जमा हुई कि ब्याज से जीवन की गाड़ी खिंचती रहेगी पर बदली परिस्थितियों में सामने अंधेरा दिखाई देने लगा है। छोटे कारोबारियों का तो और भी बुरा हाल है उनको अपने पारिवारिक खर्चों के साथ जुड़े कर्मचारियों को पगार देने के लाले पड़ गए हैं। पीडि़त ग्राहक पिछले दो हफ्ते से अपनी पीड़ा को लेकर सडक़ पर हैं लेकिन सरकार और आरबीआई की तरफ से अब तक कोई ठोस आश्वासन उन्हें नहीं मिल रहा जिस वजह से संकट गहराता जा रहा है। घोटाले से प्रभावित ग्राहकों का यह सवाल वाजिब है कि बीते आठ वर्षों से क्या कर रही थी।

ग्राहक तो भरोसे पर अपने जीवन भर की कमाई बैंक को सौंपते हैं। आरबीआई संरक्षक होती है लिहाजा उसकी जिम्मेदारी बनती है कि ग्राहकों के हित की सुरक्षा में आगे आये। वैसे उम्मीद की जानी चाहिए। सडक़ों पर उतरे ग्राहकों की पीड़ा सुनी जाएगी और समय रहते कोई रास्ता निकलेगा। जिससे अनिश्चितता के बादल छटेंगे। त्यौहारी मौसम में इस तरह की अप्रत्याशित पीड़ा की तीव्रता का अंदाजा लगाया जा सकता है। बहरहाल, जिस तरह बीते तीन-चार वर्षों से बैंकों के घोटाले सामने आ रहे हैं। उससे दो बातें पूरी तरह साफ हो जाती है। पहली बैंकिंग सिस्टम को जरूरत के मुताबिक और जवाबदेह व पारदर्शी बनाए जाने की आवश्यकता है। दूसरी, जो भी जिम्मेदार हैं उन्हें सजा की देहरी तक पहुंचाए जाने की जरूरत है ताकि भविष्य में ऐसे घोटालों को अंजाम देने की कोई जुर्रत ना कर सकें।

इस पर भी मंथन की आवश्यकता है कि ऐसे घोटालों के तार कही ना कहीं सत्ता के रसूख तक भी जुड़े होते है। संकेत स्पष्ट है जो सियासत में रहते ऐसे मामलों को संरक्षण प्रदान करते हैं, उन पर भी सही अर्थों में शिकंजा क सा जाना चाहिए। यह इसलिए भी जरूरी है बैंकिंग सिस्टम और उसके तौर-तरीके पर से लोगों का विश्वास खत्म हुआ तो पूरी अर्थव्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। लिहाजा विश्वास बहाली को ध्यान में रखते हुए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। मौजूदा वक्त सरकार और आरबीआई के लिए अग्निपरीक्षा लिए बूस्टर डोज स्वागत योग्य है पर इसी के साथ जिनका सीधे तौर पर पैसा डूबा है, उनके लिए भी ठोस एवं त्वरित आश्वासन की दरकार है।

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