क्या कोरोना जानवरों में फैल सकता है? क्या कोरोना से पीड़ित जानवर इंसान के लिए खतरा हैं? हाल में जानवरों में कोरोना पाए जाने की कुछ खबरों के बाद ये सवाल सबके मन में दहशत पैदा कर रहे हैं। पशुओं में कोरोना पाए जाने की खबरों की शुरुआत चीन से हुई। वहां एक बिल्ली के कोरोना से पीड़ित पाए जाने की खबर थी। उसके बाद अमेरिका में जू के एक बाघ को कोरोना होने और हांगकांग में एक पालतू बिल्ली के संक्रमित होने जैसी कई खबरें अलग-अलग जगहों से आईं। इन खबरों ने स्वाभाविक रूप से इस चिंता को जन्म दिया कि क्या कोरोना का एक नया रूप जानवरों में देखने को मिल सकता है। हालांकि साइंस और रिसर्च से जुड़े लोग ये दावा कर रहे हैं कि जानवरों में कोरोना के फैलने का अभी तक कोई भी पुख्ता सबूत नहीं मिला है। वेट्रनरी डाइग्नोसिस में ग्लोबल लीडर आईडेक्स लैबोरेटरीज ने हाल ही साउथ कोरिया और अमेरिका में 3500 कुत्ते-बिल्ली और घोड़ों की कोविड-19 से संबंधित जांच की और किसी में भी ये वायरस नहीं मिला।
जानवरों के नमूने उन जगहों से ज्यादा उठाए गए थे जहां बहुत से लोग कोरोना पीड़ित थे। देश विदेश में हो रही ऐसी अन्य स्टडीज भी यही निष्कर्ष बता रही हैं कि अब तक कोई भी ऐसा संकेत नहीं मिला है जो बताए कि इंसान से जानवरों में कोरोना फैल सकता है। ये निष्कर्ष सुखदायक प्रतीत होते हैं, लेकिन ये इतना ही बताते हैं कि अभी तक कोई प्रमाण नहीं मिला है, यानी आगे कुछ भी होने की आशंका से इनकार नहीं किया गया है। साइंटिस्ट्स वर्ष 2002 में कोरोना की एक और प्रजाति से फैली सार्स बीमारी से बंदरों, पालतू बिल्लियों, कुत्तों और बाघ तक को संक्रमित देख चुके हैं। इसलिए सावधान तो रहना ही पड़ेगा। कुछ उदाहरण लेकर देखें तो पता चलता है कि बहुत सी ऐसी महामारियां हैं जिन्होंने इंसानों के साथ-साथ लाखों जानवरों का भी सफाया कर दिया। इबोला महामारी ने मानव को तो बहुत नुकसान पहुंचाया ही, जानवर भी इसके प्रकोप से नहीं बच पाए।
इस बीमारी ने वर्ष 2002 से 2003 के बीच गोरिल्ला की लुप्त होती प्रजाति को अपना शिकार बनाया। इसी प्रकार वेस्ट नाइल एंसेफ्लाइटिस ने अकेले अमेरिका में ही 45 फीसदी कौवों की आबादी खत्म कर दी। मच्छरों से फैलने वाला यह वायरस मच्छरों की 48 प्रजाति में मिला है और अब तक अलग-अलग चिड़ियों की 250 जातियों को संक्रमित कर चुका है। इसने यूएस, मेक्सिको और कनाडा में घोड़ों को भी अपना शिकार बनाया। प्लेग एक और खतरनाक बीमारी है जिसने लंबे समय तक मानव को तो नुकसान पहंचाया ही, कई दुर्लभ प्रजातियों के जानवरों का नामो-निशान मिटा दिया। इससे नॉर्थ अमेरिका में पाए जाने वाले ब्लैक फुट फैरेट कुत्तों की विशेष प्रजाति का 90 फीसदी तक सफाया हो गया। हाल ही हमारे गिरि के जंगलों में फैली कैनाइन डिस्टेंपर और बेबसिओसिस नामक बीमारी ने 24 शेरों की जान ले ली और कई शावकों का जीवन खतरे में डाल दिया।
इसी प्रकार जिंबाब्वे की मलिंगवे वाइल्ड रिजर्व में वर्ष 2004 में फैली एंथ्रेक्स बीमारी ने जंगली हर्बवोर्स (शाकाहारी पशुओं) की 90 फीसदी आबादी का खात्मा कर दिया था। 2010 में इसी से मिलते-जुलते इन्फेक्शन ने युगांडा मे 80 हिप्पो-गैंडों को मार दिया था। इन दिनों बड़ी तेजी से फैल रहा अफ्रीकन स्वाइन फ्लू विश्व भर में सुअरों की आबादी पर जमकर अटैक कर रहा है। हाल में इस स्वाइन फ्लू से चीन, वियतनाम, कोरिया और ईस्टन यूरोप के देशों में काफी बड़ी संख्या में सुअर मरे हैं। आज जब पूरा विश्व कोरोना से लड़ रहा है तो इन तथ्यों पर चर्चा करना इसलिए भी जरूरी है कि इंसान के बीच फैली महामारी कब कैसे, किस रूप में जानवरों को डंस ले, पता ही नहीं चल पाता। इसलिए हमें सतर्क तो रहना ही होगा क्योंकि आने वाले समय में यदि कोरोना जानवरों में फैलता है तो मानव के साथ बेजुबान जानवरों का भी सफाया होगा और वह इस दुनिया पर दोहरी मार होगी।
अनु जैन रोहतगी
(लेखिका स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)