बुआजी यह बात मानने को तैयार नहीं

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बसपा सुप्रीमों मायावती ने अखिलेश सिंह यादव के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया है। मायावती ने अखिलेश यादव पर आरोप लगाते हुए कहा कि अखिलेश अपने घर को संभाल नहीं पाए, यहां तक की अपनी पत्नी डिंपल को भी जीता नहीं पाए। जिसने मायावती को बुआ माना, उसी अखिलेश पर आरोप लगाते हुए मायावती यह कह रही हैं कि प्रदेश के यादवों ने गठबंधन का साथ नहीं दिया, बसपा का साथ नहीं दिया इसलिए वो ज्यादातर सीटें जीत नहीं पाए। मायावती की मानें तो इस बार उत्तर प्रदेश के यादवों ने ही अखिलेश यादव का साथ छोड़ दिया। यादवों ने ही यादव परिवार को धोखा दे दिया। क्या वाकई मायावती सच बोल रही हैं ?

2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई थी। इसकी तुलना में 2019 में बसपा को 10 लोक सभा सीटों पर जीत हासिल हुई। यह तो साफ-साफ नजर आ रहा है कि सपा-बसपा गठबंधन में सबसे ज्यादा फायदा मायावती को हुआ क्योंकि अखिलेश तो जस के तस ही रह गए। 2014 के लोक सभा चुनाव में अखिलेश को 5 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और इस बार भी सपा की संख्या 5 पर ही आकर अटक गई। सपा की हालत तो इतनी खराब हो गई कि अखिलेश यादव अपनी पत्नी को नहीं जिता पाए। साथ ही यादव परिवार के कई दिग्गजों को भी हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में सवाल तो यही खड़ा हो रहा है कि क्या वाक ई मायावती ने अपनी जीत का विश्लेषण किया भी है या नहीं ?

या फिर मायावती को तलाश थी एक अदद बहाने की जिसके सहारे वो गठबंधन को तोड़ सकें? क्योंकि जब बात-सपा की ताकत या सपा के वोट बैंक की आती है तो फिर इसमें सिर्फ यादवों को ही क्यों गिना जाना चाहिए? क्या मायावती जानबूझकर मुस्लिमों को छोड़ रही हैं? या फिर मुस्लिमों को संदेश देने की कोशिश कर रही हैं कि जब यादवों ने भी सपा का साथ छोड़ गिया तो मुस्लिम क्यों अब तक वफादार बने हुए हैं? साफ नजर आ रहा है मायावती ने एक बड़ा दांव खेल दिया है। एक बार फिर से मायावती मुस्लिमों पर दांव लगाने जा रही हैं। जीरों से दस पर पहुंची बुआ की नजरें अब बबुआ के मुस्लिम वोट बैंक पर जाकर टिक गई हैं। जिक्र भले ही वो यादवों का कर रही हों लेकिन लुभाने की कोशिश मुस्लिमों को कर रही हैं।

संतोष पाठक
लेखक पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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