बसपा भी परिवारवादी

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बसपा भी अब पूरी तरह परिवारवादी पार्टी हो गयी है। पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने अपने भाई अनंत कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और भतीजे आकाश आनंद को नेशनल कोआर्डिनेटर बनाकर स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी का मिशन सर्वोपरि है, पर साथ ही परिवार को लेकर सरोकार भी। इसीलिए संगठन में बरसों से पसीना बहा रहे कार्यकर्ताओं की जगह अपने परिवारी सदस्यों को जगह दी गई। दरअसल सवाल भरोसे का होता है और साथ ही पार्टी का वर्चस्व कम ना होने पाये, इसकी चिंता भी। कांग्रेस से लेकर सपा, राजद, एनसीपी और डीएमके तक, यही भरोसा और वर्चस्व की आशंका की प्रमुख भूमिका होती है। इसीलिए पार्टी किस तरह चलती या चलाई जाती है, यह उसका आंतरिक मामला होता है और फिर सवाल उठता है तो सिर्फ इसलिए कि पहले बसपा सुप्रीमो ने स्पष्ट ऐलान किया था कि पार्टी मिशन की है और मिशन के लिए है, इसलिए उनके घर का कोई भी सदस्य संगठन की कमान नहीं संभालेगा बल्कि उत्ताराधिकारी भी समाज से होगा, परिवार से नहीं।

बाद के दिनों में जब मायावती के भाई आनंद कुमार को बसपा का राष्ट्रीय उपाअध्यक्ष बनाया गया तब भीतर-बाहर परिवारवाद की चर्चा शुरू हो गई थी। दूसरी पार्टियों की तरफ से भी तंज भरे सवाल होने शुरू हो गए थे तब मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से यह कहकर हटा दिया था कि पार्टी के भीतर परिवारवाद की चर्चा चल पड़ी है जबकि उनका ऐसा कोई इरादा ना था। अब एक बार फिर भाई-भतीजे को संगठन में महत्वपूर्ण पद देकर मायावती ने पार्टी की अपनी तस्वीर भी पेश कर दी है। जाहिर है, आकाश आनंद के रूप में पार्टी को युवा चेहरा मिल गया है। पहली बार मायावती के ट्विटर पर आने का श्रेय आनंद को जाता है। सियासत में भी सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका को देखते हुए बसपा के लिए हाईटेक होना जरूरी हो गया था। युवा पीढ़ी की संगत में शायद पार्टी का सूत्र वाक्य बहुजन हितायकृ बहुजन सुखाय नये संस्मरण में सामने आये। फिलहाल तो बसपा दलित-मुखिया समीकरण को मजबूती देने की दिशा में कदम बढ़ा रही है।

हालांकि 2014 और 2017 में मायावती का यह समीकरण कारगर नहीं रहा था। पर 2019 के आम चुनाव में सपा से गठबंधन के बाद 10 सीटों पर जीती बसपा को लगता है कि सपा से अलग होकर चुनाव लडऩे का लाभ मुस्लिमों को अपने पाले में बनाये रखने से हो सकता है। इसीलिए सपा से अलग राह का ऐलान के साथ ही बसपा नेत्री यह कहना नहीं भूलीं कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव नहीं चाहते थे कि ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाएं। मायावती ने बहुत सोच-समझकर यह बात कही है। उन्हें लगता है कि हाल में सपा से दोगुना सीटें जीतने से मुस्लिमों के बीच बसपा की पैठ बढ़ गई है। बसपा नेत्री को पता है कि यूपी में मुस्लिम बिरादरी पर सपा का एकाधिकार रहा है। अब, जब सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव बीमार चल रहे हैं और यादव परिवार के बीच वर्चस्व की जंग भी जारी है। ऐसे में मुसलमानों की पसंद बसपा हो सकती है, ऐसी उम्मीद मायावती को है, इसलिए उनके निशाने पर बार-बार अखिलेश यादव हैं।

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